पुष्कर में है ब्रह्मा जी का एकलौता मंदिर, जाने क्यों नहीं होती अन्य जगह पूजा
वेद और पुराणों के अनुसार हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी-देवता हैं जिन्हें कुछ लोग 33 करोड़ मानते हैं तो कुछ कोटि को प्रकार समझते है। इनमें से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की महत्ता सबसे ज्यादा मानी गई है। भगवान विष्णु संसार के पालनहार है, महादेव संसार के संहारक है और ब्रह्मा सृष्टि के रचनाकार हैं। भगवान विष्णु और महादेव के कई मंदिर हैं, पर परमपिता ब्रह्मा जी का भारत में केवल एक ही मंदिर है। ब्रह्मा जी से ही वेद ज्ञान का प्रचार हुआ। उनके चार चेहरे, चार भुजाएं और प्रत्येक भुजा में एक-एक वेद है परन्तु बहुत ही कम सम्प्रदाय हैं जो उनकी आराधना करते हैं। उनका इकलौता मंदिर राजस्थान की तीर्थ नगरी पुष्कर में स्थित है। पद्म पुराण के अनुसार, एक बार धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। उसके उत्पात से पूरी पृथ्वी पर त्राहि -त्राहि मची थी। ऐसे में उसके अत्याचारों से निजात दिलवाने के लिए परमपिता ब्रह्मा जी को उसका वध करना पड़ा। कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी उसका वध कर रहे थे तब उनके हाथों से तीन जगहों पर कमल का पुष्प गिरा। जहां-जहां तीन कमल गिरे वहां पर तीन झीलें बन गईं। इसी कारण इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ा। तदोपरांत जग कल्याण हेतु ब्रह्मा जी ने उक्त स्थान पर महायज्ञ करने का फैसला किया। यज्ञ करने के लिए ब्रह्मा जी पुष्कर पहुंच गए पर उनकी पत्नी देवी सावित्री समय पर नहीं पहुंच पाईं। पर यज्ञ की सफलता के लिए सावित्री का होना बेहद जरूरी था। ऐसे में जब सावित्री नहीं आईं तो ब्रह्मा जी गायत्री से विवाह कर लिया। देवी गायत्री को लेकर दो अलग -अलग कथाएं है। एक मान्यता ये है कि वे गुर्जर समुदाय की एक कन्या थी, जबकि दूसरी मान्यता ये है कि ब्रह्माजी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया। जब ब्रह्मा जी और गायत्री का विवाह हो ही रहा था तभी देवी सावित्री भी वहां पहुँच गई। जब उन्होंने गायत्री को ब्रह्मा के बगल में बैठा देखा तो वह क्रोधित हो गईं और ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि वो एक देवता जरूर हैं लेकिन उनकी पूजा फिर भी कभी नहीं की जाएगी। देवी सावित्री का श्राप सुन सभी देवता डर गए और उन्होंने विनती की कि वो इस श्राप को वापस ले, लेकिन वे नहीं मानी। पर जब देवी सावित्री का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी। अगर कोई दूसरा व्यक्ति आपका मंदिर बनाएगा तो उस मंदिर का विनाश हो जाएगा। ऐसे में पुष्कर में ही ब्रह्मा जी का एक मंदिर है। ब्रह्मा जी का पुष्कर में स्थित ये मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और अजमेर आने वाले सभी हिन्दू पुष्कर में ब्रह्मदेव के मंदिर और वहां स्थित तालाब के दर्शन करने अवश्य आते हैं।
भगवान श्री विष्णु को भी मिला शाप
मान जाता है कि यज्ञ के आयोजन में भगवान विष्णु ने भी ब्रह्मा जी की मदद की थी। इसलिए देवी सावित्री ने विष्णु जी को भी श्राप दिया था कि उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। इसी कारण राम (भगवान विष्णु का मानव अवतार) को जन्म लेना पड़ा और पत्नी से अलग रहना पड़ा था।
पहाड़ों की चोटी पर विराजती हैं देवी सावित्री
मान्यता है कि क्रोध शांत होने के पश्चात देवी सावित्री पुष्कर के समीप स्थित एक पहाड़ी पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं और आज भी वहां उपस्थित हैं और अपने भक्तों का कल्याण करती हैं। पुष्कर में जितनी अहमियत ब्रह्माजी की है, उतनी ही सावित्री की भी है। सावित्री को सौभाग्य की देवी माना जाता है। यह मान्यता है कि यहां पूजा करने से सुहाग की लंबी उम्र होती है। महिलाएं यहां आकर प्रसाद के तौर पर मेहंदी, बिंदी और चूड़ियां चढ़ाती हैं और देवी सावित्री से पति की लंबी उम्र मांगती हैं।
चांदी के सिक्कों से सजा है ब्रह्मा मंदिर
पुष्कर में स्थित परमपिता ब्रह्मा जी का मंदिर किसने बनाया और कब बनाया, इसकी जानकारी फिलहाल नहीं है। मान्यता है कि तकरीबन एक हज़ार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक शासक को एक स्वप्न आया था कि इस जगह पर एक मंदिर है। ब्रह्माजी के मंदिर का प्रवेश द्वार संगमरमर का और दरवाजे चांदी के बने हैं। मंदिर का निर्माण संगमरमर पत्थर से हुआ तथा इसे चांदी के सिक्कों से सजाया गया है। इन सिक्कों पर दानदाता के नाम खुदे हैं। यहां मंदिर की फर्श पर एक रजत कछुआ है। देवी सरस्वती के वाहन मोर के चित्र भी शोभा बढ़ाते हैं। ब्रह्मा जी की चार मुखों वाली मूर्ति को चौमूर्ति कहा जाता है। यहां भगवान शिव को समर्पित एक छोटी गुफा भी बनी है।
पुष्कर में 500 मंदिर और 52 घाट
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान ब्रह्मा त्रिदेवों में से एक देव हैं। तीनों देवों का कार्य, जीवन चक्र (जन्म,पालन,विनाश) के आधार पर विभाजित है। ब्रह्मा जी का कार्य जन्म देना है। मान्यता है कि पुष्कर झील में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। झील के चारों ओर 52 घाट हैं। इनमें गऊघाट, वराह घाट, ब्रह्म घाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है। पुष्कर में छोटे-बड़े करीब 500 मंदिर बने हैं। इसलिए इसे मंदिर नगरी भी कहा जाता है ।
त्रेता और द्वापर युग से नाता
मान्यता है कि पुष्कर शताब्दियों पुराना धार्मिक स्थल है। महाभारत के वनपर्व के अनुसार श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। वाल्मीकि रामायण में विश्वामित्र के तप करने की बात भी कही गई है। इसका उल्लेख चौथी शताब्दी में आये चीनी यात्री फाह्यान ने भी किया है।
सर्वधर्म समभाव की नगरी है पुष्कर
पुष्कर का महत्व सर्वधर्म समभाव नगर के रूप में भी है। यहां कई धर्मों के देवी-देवताओं के आस्था स्थल हैं। जगतगुरु रामचन्द्राचार्य का श्रीरणछोड़ मंदिर, निम्बार्क सम्प्रदाय का परशुराम मंदिर, गायत्री शक्तिपीठ, महाप्रभु की बैठक, जोधपुर के बाईजी का बिहारी मंदिर, तुलसी मानस व नवखंडीय मंदिर, गुरुद्वारा और जैन मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं। जैन धर्म की मातेश्वरी पद्मावती के जमींदोज हो चुके मंदिर के अवशेष आज भी हैं। नए और पुराने रंगजी का मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है।
कार्तिक पूर्णिमा पर लगाता है पुष्कर मेला
भगवान ब्रह्मा ने पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन यज्ञ किया था। यही कारण है कि हर साल अक्टूबर-नवंबर के बीच पड़ने वाले कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पुष्कर मेला लगता है। मेला के दौरान ब्रह्मा जी के मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। इन दिनों में भगवान ब्रह्मा की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है।