तुंगनाथ: जहां देवों के देव महादेव और श्रीराम दोनों की बरसती है कृपा

देवों के देव महादेव के पंच केदारों में से एक है तुंगनाथ। ये अन्य केदारों की तुलना में विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह स्थान भगवान राम से भी जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि यहां श्री रामचंद्र ने अपने जीवन के कुछ क्षण एकांत में बिताए थे। तुंगनाथ एक ऐसा दिव्य स्थान है जहां शिव और राम दोनों की कृपा बरसती है। मान्यता है कि तुंगनाथ क्षेत्र में माता पार्वती ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। मंदिर का इतिहास एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। महादेव शिव के पंच केदार में केदारनाथ, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, मध्येश्वर, कल्पेश्वर शामिल है। इनमें से तुंगनाथ सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है। ये दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिरों में माना जाता है।
पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम प्रसिद्ध तुंगनाथ की स्थापना के संदर्भ में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपनों का वध करने के उपरांत बाद व्याकुल थे। इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वे महर्षि व्यास के पास गए। तब महर्षि व्यास ने उनका मार्गदर्शन किया और कहा कि अपने भाइयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं। उन्हें सिर्फ महादेव शिव ही बचा सकते हैं, इसलिए उन्हें महादेव की शरण में जाना चाहिए। सो महर्षि व्यास की सलाह पर पांडव महादेव शिव की शरण में हिमालय पर्वत पहुंचे। पर भगवान शिव महाभारत के युद्ध के कारण पांडवों से रुष्ट थे और पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे। इसलिए महादेव पांडवों को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा का रूप धारण कर वहां से निकल गए। यही कारण है कि भगवान शिव को महेश के नाम से भी जाना जाता है। पर पांडव नहीं माने और भीम ने भैंसे बने महादेव का पीछा किया। तब भगवान शिव के अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े और ये स्थान केदारधाम अर्थात पंच केदार कहलाए। पांडवों ने इन प्रत्येक स्थान पर भगवान शिव के मंदिरों का निर्माण कर उनकी पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया। इन मंदिरों को भगवान शिव के शरीर के हर एक भाग से पहचाना जाता है। तुंगनाथ की पहचान उस जगह के रूप में की जाती है जहां उनकी बाहु (हाथ) देखा गया था। केदारनाथ में उनका कूबड़ देखा गया था। रुद्रनाथ में सिर दिखाई दिया। मध्यमहेश्वर में उनकी नाभि और पेट उभरा तथा कल्पेश्वर में उनके जटा (बाल या ताले) उभरे। तुंगनाथ मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है।
पांडवों ने किया तुंगनाथ का मंदिर का निर्माण
कहा जाता है कि पांडवों ने ही तुंगनाथ मंदिर की स्थापना की थी। पंचकेदारों में यह मंदिर सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है। तुंगनाथ की चोटी तीन धाराओं का स्रोत है, जिससे अक्षकामिनी नदी बनती है। मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है और चोपता से तीन किलोमीटर दूर स्थित है।
भगवान राम से भी जुड़ा है तुंगनाथ
पुराणों में कहा गया है कि रामचंद्र शिव को अपना भगवान मानकर पूजते थे। कहते हैं कि लंकापति रावण का वध करने के बाद रामचंद्र ने तुंगनाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर चंद्रशिला पर आकर ध्यान किया था। रामचंद्र ने यहां कुछ वक्त बिताया था। चौदह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित चंद्रशिला पहुंचकर हिमालय की सुंदर छटा का आनंद लिया जा सकता सकता हैं। चंद्रशिला प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर की मेजबानी करने वाले रिज की चोटी है। यह समुद्र तल से लगभग 4,000 मीटर (13,000 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह चोटी नंदादेवी, त्रिशूल, केदार शिखर, बंदर पंच और चौखम्बा चोटियों सहित हिमालय के मनोरम द्रश्य के साथ मंत्रमुग्ध कर देती है। इस जगह के साथ विभिन्न किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। ऐसी ही एक पौराणिक कथा के अनुसार यहाँ चंद्रमा (भगवान चंद्र) ने तपस्या की थी।
जिसने चोपता नहीं देखा, उसका जीवन व्यर्थ है
सर्दियों के वक्त बर्फ पड़ने की वजह से शिवलिंग को यहां से चोपता लाया जाता है। इस दौरान ग्रामीण पूरे ढोल के साथ शिव को ले जाते हैं और गर्मियों में वापस रखते हैं। ब्रिटिश शासनकाल में कमिश्नर एटकिन्सन ने कहा था कि जिसने अपने जीवन में चोपता नहीं देखा, उसका जीवन व्यर्थ है। समुद्रतल से तुंगनाथ मंदिर की ऊंचाई करीब 12000 फीट है। इसी वजह से ये मंदिर ट्रैकिंग के शौकीनों की पसंद है। हर साल यहां हजारों पर्यटक देशभर से पहुंचते हैं।
कंचुला कोरक कस्तूरी मृग अभयारण्य
कंचुला कोरक कस्तूरी मृग अभयारण्य प्रसिद्ध कस्तूरी मृग का घर है। इस जगह पर हरे-भरे वनस्पतियों की बहुतायत है, जिनमें से कई किस्मों का चमत्कारी दावा स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है परन्तु अभी तक वैज्ञानिक रूप से इसको वर्गीकृत नहीं किया गया है। चोपता से 7 किमी दूर स्थित यह स्थान - गोपेश्वर सड़क से 5 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह पशु प्रेमियों और दुर्लभ हिमालयी वन्यजीवों की तलाश करने वालों के लिए एक आदर्श स्थान है।
तुंगनाथ महादेव मंदिर तक कैसे पहुंचे
फ्लाइट द्वारा: यहाँ तक पहुंचने के लिये सबसे निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट, देहरादून है, जहां से यह स्थान 232 किलोमीटर की दूरी पर है।
ट्रेन द्वारा: सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, ऋषिकेश है, जो यहाँ से 215 किलोमीटर की दूरी पर है।
सड़क मार्ग से : तुंगथ कुंड-गोपेश्वर मार्ग द्वारा चोपता तक पहुंचा जा सकता है, जो 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके लिये ऋषिकेश से चमोली-गोपेश्वर-चोपता मार्ग से जाया जा सकता है। यहाँ तक पहुंचने के लिये बस और टैक्सी आसानी से मिल जाती है। चोपता से तुंगनाथ मंदिर 3 कि.मी. दूर है।