द्रविड़ शैली में बने नायाब मंदिर में विराजमान है श्री तिरुपति बालाजी
भारत की प्राचीन स्थापत्य कला में मंदिरों का विशिष्ट स्थान है। अपनी अनूठी वास्तुकला और अद्धितीय शिल्पकारी के लिए कई मंदिर मशहूर है, लेकिन दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अनूठा नमूना है तिरुपति बालाजी मंदिर। यह मंदिर आंध्रप्रदेश की तिरुमाला की दिव्य सात पहाड़ियों के सातवें वेकेटाद्री नामक शिखर पर स्थित है, इन पहाड़ियों में नारायणाद्री, अंजनद्री, नीलाद्री, शेषाद्रि, गरुदाद्री, वृशाभद्री, और वेंकटचला शामिल हैं। तिरुपति बालाजी मंदिर विश्व के सबसे प्रसिद्ध और अमीर धार्मिक स्थलों में शामिल है। ऐसा माना जाता है कि ये सात चोटियां भगवान विष्णु के सात सिर का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह भगवान विष्णु जी को समर्पित एक पवित्र धाम है। बालाजी और भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इसलिए इस मंदिर को श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि भगवान वेंकटेश्वर को श्रीनिवास और गोविंदा के नाम से भी जाना जाता है। तिरुमाला की पहाड़ियों में बना यह भव्य मंदिर भगवान विष्णु के 8 स्वयंभू मंदिरों में से एक है। यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर द्रविड़ वास्तु शैली में बनाया गया है, वहीं भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का एक नायाब नमूना है, जिसके दर्शन के लिए दुनिया के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर का अपना एक अलग धार्मिक महत्व और मान्यताएं हैं, यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोगों की इस मंदिर से गहरी आस्था जुड़ी हुई हैं। वहीं श्री वेंकटेश्वर मंदिर में बड़े-बड़े राजेनता, कारोबारियों, फिल्म स्टार आदि के द्वारा हर साल लाखों-करोड़ों रुपए का बेहिसाब चढ़ावा चढ़ाया जाता है।
12 साल के बंद किया गया था कपाट
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी से आरम्भ हुआ था। जब करांचीपुरम के शासक वंशपल्ल्वियों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। किन्तु 15वीं शताब्दी में तिरुमाला की सातवीं पहाड़ी में स्थित इस प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर को प्रसिद्धि मिली है। इस प्रसिद्ध मंदिर का कार्यभार 1843 ईसवी से लेकर 1933 ईसवी तक हाथीरामजी मठ के महंत ने संभाला था। इसके बाद 1933 में मंदिर की देखरेख का जिम्मा मद्रास सरकार ने ले लिया था, फिर बाद में इस मंदिर का प्रबंधन की जिम्मेदारी एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति तिरुमाला-तिरुपति को सौंप दी गई थी। इसके बाद जब आंध्रप्रदेश राज्य का गठन हुआ था, उसके बाद एक तिरुपति बोर्ड बनाया गया जो कई शहरों और कस्बों में मंदिरों का संचालन करता है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि जब 18वीं सदी में 12 साल के लिए इस मंदिर के पट को बंद किया गया था, तब किसी शासक ने 12 लोगों को मौत के घाट उतारकर दीवार पर लटका दिया था। उस समय विमान में प्रभु वेंकटेश्वर प्रकट हुए थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु जी ने कलियुग में मानव जाति को विपत्तियों से बचाने के लिए वेंकटेश्वर जी का अवतार लिया था। वहीं इस मंदिर में वेंकटेश्वर भगवान की स्वयं प्रकट हुई मूर्ति विराजमान है, जिसे आनंद निलायम भी कहा जाता है, इसमें भगवान श्रीवनिवास जी की बेहद आर्कषक और सुंदर प्रतिमा भी है।
तिरुपति बालाजी से जुड़ी पौराणिक कथाएं एवं धार्मिक मान्यताएं
मंदिर से जुड़ी प्रख्यात पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार पृथ्वी पर जब विश्व कल्याण के लिए यज्ञ का आयोजन किया गया था, तब इस यज्ञ का फल ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों भगवान में किसे अर्पित किया जाए। इसे जानने के लिए इसकी जिम्मेदारी अपने क्रोध के लिए पहचाने जाने वाले भृगु ऋषि को सौंपी गई थी, क्योंकि भृगु ऋषि ही देवताओं की परीक्षा लेने का साहस कर सकते थे। जिसके बाद ऋषि भृगु सबसे पहले ब्रहा् जी के पास गए, लेकिन ब्रह्रा जी वीणा की धुन में लीन थे और उन्होनें भृगु ऋषि पर ध्यान नहीं दिया। क्रोधित होकर भृगु ऋषि वहां से चले गए। इसके बाद ऋषि भृगु भगवान शिव के पास गए, जहां भगवान शिव-पार्वती वार्तालाप में लीन थे और उन्होंने भी ऋषि भृगु की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, क्रोधित ऋषि भृगु ने भगवान शिव को श्राप दिया कि उनके केवल लिंग की पूजा होगी। वहीं जब ऋषि भृगु ने यज्ञ का फल देने के लिए ब्रह्रा और महेश भगवान को ठीक नहीं समझा तब वे सबसे आखिरी में विष्णु भगवान के पास गए। जहां भगवान विष्णु भी उस वक्त अपनी शैया पर आराम कर रहे थे। ऋषि भृगु ने उन्हें कई आवाजें दी लेकिन भगवान विष्णु ने जब उनकी एक भी आवाज नहीं सुनी तब क्रोधित होकर ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु के सीने पर लात मार दी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने क्रोध करने की बजाय ऋषि भृगु का पैर पकड़ लिया और मालिश करते हुए ऋषि से पूछा कि कहीं उनको चोट तो नहीं लगी। जिससे प्रसन्न होकर ऋषि भृगु ने विष्णु जी को यज्ञ का पुरोहित बना दिया। इस हरकत से माँ लक्ष्मी क्रोधित हुई, क्योंकि भगवान विष्णु जी का वक्षस्थान माता लक्ष्मी का निवास स्थान है और वहां ऋषि भृगु को लात मारने का दुस्साहस किया। साथ ही माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु पर भी गुस्सा आया कि ऋषि भृगु को दंड देने की बजाय विष्णु जी ने ऋषि के पैर पकड़कर माफी मांग ली। कहा जाता है कि जिसके बाद क्रोधित माता लक्ष्मी जी वैकुंठ धाम में विष्णु जी को छोड़कर चली गईं। इसके बाद उन्होंने माता लक्ष्मी की बहुत खोज की औऱ जब वे कहीं नहीं मिली तो तब उन्होंने धरतीलोक पर आंध्रप्रदेश की एक पहाड़ी पर शरण ली, जो वर्तमान में वेंकटाद्री के पवित्र पहाड़ी के नाम से जानी जाती है। श्रद्धालुओं की अटूट आस्था इस मंदिर से जुडी है।
वेंकटेश्वर की मूर्ति में चोट का निशान
जब ब्रह्म और भगवान शिव ने विष्णु जी का दर्द देखा तब ब्रह्म जी गाय का और शंकर जी ने बछड़े का रुप धारण कर धरती पर प्रकट हुए। जिन्हें चोल देश के एक शासक ने खरीद लिया और वे उन्हें वेंकट पहाड़ी के खेतो में चरने के लिए रोजाना भेजते हैं। लेकिन जब एक दिन गाय ने उन्हें दूध देना बंद कर दिया तब उन्होंने गाय पर नजर रखने के लिए एक दास को दायित्व दिया। तो उस दास ने देखा कि गाय वेंकट पहाड़ी पर अपना सारा दूध गिरा देती है। जिसे देख गाय पर नजर रख रहे आदमी ने क्रोधित होकर गाय को कुल्हाड़ी फेंक कर मारी तब भगवान विष्णु प्रकट हो गए, और वो कुल्हाड़ी विष्णु जी के माथे पर लग गई। वहीं उस चोट का निशान आज भी भगवान वेंकटेश्वर की मूर्तियों में दिखता है। कुल्हाड़ी लगने के बाद भगवान विष्णु ने पहले तो चौल वंश के शासक को असुर बनने का श्राप दिया, लेकिन फिर बाद में राजा के द्वारा माफी मांगने पर विष्णु जी ने उस राजा को एक पद्मवती नाम की पुत्री होने का वरदान दिया और वह अपनी बेटी का विवाह श्रीनिवास से करेगा। इस तरह भगवान विष्णु श्रीनिवास का रुप धारण कर वराह में रहने लगे। इसके कुछ सालों बाद भगवान विष्णु के अवतार श्रीनिवास और माता लक्ष्मी के अवतार पद्मावती दोनों का विवाह हो गया।
कर्ज का करते है भुगतान
पौराणिक कथाओं के मुताबिक ऐसी भी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने विवाह का खर्चा उठाने के लिए यह कहकर धन कुबेर से उधार लिया कि वे उनके ऋण को कलियुग के अंत तक चुका देंगे। वहीं भगवान विष्णु के कर्ज में डूबे होने के कारण ऐसी मान्यता है कि कोई भी भक्त तिरुपति बालाजी के मंदिर में अपनी श्रद्धा से जो कुछ भी चढ़ाता है तो वह भगवान विष्णु के ऊपर कुबेर के कर्ज को चुकाने में मदद करता है वहीं इस मान्यता की वजह से बड़े उद्योगपति और धनवान लोग यहां खूब चढ़ावा चढ़ाते हैं, यही वजह है कि यह मंदिर विश्व के सबसे अमीर मंदिरों में शुमार है।
केशदान करते है श्रद्धालु
इस मंदिर की खास बात यह भी है कि श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं। इसका अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना अहंकार ईश्वर को समर्पित करते हैं। पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई द्वारा संपन्न किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित कल्याण कट्टा नामक स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। कई श्रद्धालु यहाँ आकर भगवान् को अपने बाल भेंट स्वरुप देते है, जिसे “मोक्कू” कहा जाता है। रोज़ इन बालो को जमा किया जाता है और बाद में मंदिर की संस्था द्वारा इसे नीलाम कर बेच दिया जाता है। कुछ समय पहले ही मंदिर की संस्था ने बालो को बेचकर 6 मिलियन डॉलर की कमाई की थी। मंदिर में किसी भी स्त्रोत से आने वाली यह दूसरी सबसे बड़ी कमाई मानी जाती है।
कई चमत्कार, कई रहस्य
बालाजी की पीठ रहती है गीली, मूर्ति को आता है पसीना
विश्व प्रसिद्ध इस श्री वेंकटेश्वर मंदिर से जुड़ी एक यह भी मान्यता है कि इस मंदिर में विराजित बालाजी की प्रतिमा पर पसीना आता है और उनकी पीठ को कई बार कपड़े से पोछने पर भी इस पर नमी बनी रहती है। ऐसा क्यों होता है इसका जवाब आज तक किसी को नहीं मिल पाया है। इसके अलावा चमत्कारी तिरुपति बालाजी मंदिर में बालाजी की प्रतिमा पर जो भी फूल-मालाएं आदि चढ़ाईं जाती हैं उन्हें मूर्ति के पीछे फेंक दिया जाता है, इनको देखना अशुभ और पाप माना जाता है। इसके आलावा भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश हैं, और उनमें गुत्थिया नहीं आती और वह हमेशा सुलझे रहते है। अति आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े दिखते हैं लेकिन, वे दाई तरफ के कोने में खड़े हैं बाहर से देखने पर ऎसा लगता है। बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है।
हमेशा जलता रहता है दीपक
लाखों भक्तों की आस्था से जुड़े इस तिरुपति बालाजी मंदिर में एक दीपक बिना तेल और घी डाले ही हमेशा जलता रहता है, जो अपने आप में एक चमत्कार माना जाता है। वहीं इस दीपक के जलने के रहस्य का आज तक पता नहीं लगाया जा सका है। तिरुपति बालाजी मंदिर में होने वाले कुछ चमत्कारों की वजह से ऐसा माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर जी यहां साक्षात विराजित हैं। वहीं इस मंदिर में हर गुरुवार के दिन जब बालाजी का पूरा श्रंगार उतारकर उन्हें स्नान करवाकर चंदन का लेप लगया जाता है, तब बालाजी के ह्रदय पर लगे चंदन में माता लक्ष्मी की अनोखी छवि दिखती है।
मूर्ति पर लगाया जाता है पचाई कपूर
श्री वेंकटेश्वर भगवान जी की प्रतिमा पर बेहद खास तरह का पचाई कपूर भी लगाया जाता है, वहीं वैज्ञानिकों की माने तो यह कपूर जिस भी पत्थर पर लगाया जाता है, तो वह कुछ समय बाद ही चटक जाता है, लेकिन वेंककटेश्वर जी की प्रतिमा पर पचाई कपूर लगाने का कोई असर नहीं होता है। इसके पीछे क्या कारण है यह भी रहस्य है।
विश्व का सार्वधिक धनी और समृद्ध मंदिर के रुप में तिरुपति बालाजी मंदिर
सप्तगिरी की पहाड़ियों पर बना हुआ यह अद्भुत मंदिर विश्व के सबसे समृद्ध और अमीर मंदिरों में से एक है, इस मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है, इसलिए यहां बड़े-बड़े उद्योगपति, राजनेता एवं फिल्मस्टार करोड़ों रुपए का चढ़ावा चढ़ाते हैं। यहां रोजाना 50 हजार से करीब 1 लाख तक लोग दर्शन के लिए आते हैं। वहीं इस मंदिर के ट्रस्ट के खजाने में करीब 50 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की संपत्ति है।
पुरानी पारंपरिक विधि से बनता है प्रसाद
यहां की गुप्त रसोई (पोटू) में रोज प्रसाद के लिए 3 लाख लड्डू बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को बनाने के लिए यहां के कारीगर 300 साल पुरानी पारंपरिक विधि का प्रयोग करते हैं। खास बात यह है कि ये लड्डू केवल पुंगनूर प्रजाति की गाय के दूध से बने मावे से ही बनाए जाते हैं और ऐसा सालों से होता आ रहा है। वहीं मंदिर में रोजाना तीन बार प्रसाद तैयार होता है। लड्डू के अलावा बाकी प्रसाद निःशुल्क दिया जाता है। तीनों समय चावल के साथ प्रसाद बनता है।