तीन महात्माओं की तपस्या पूर्ण होने पर तत्वानी में निकला था गर्म पानी का चश्मा
हिमाचल प्रदेश देव भूमि है। जाहिर है यहां चप्पे-चप्पे पर देव स्थल हैं। कई देव स्थल तो चर्चित हैं। उनके बारे में लोग भलिभांति जानते हैं, मगर कई ऐसे मंदिर और देवस्थान भी हैं जो न ज्यादा चर्चा में हैं और न ही उनके बारे में कोई ज्यादा जानता है। हालांकि ये मंदिर चमत्कारों से परिपूर्ण हैं और यहां आस्था भी बहुत ज्यादा है। जरूरत सिर्फ इनकी पहचान को उजागर करने की है। फस्र्ट वर्डिक्ट अपने प्रयासों से ऐसे देवस्थलों से लोगों को मशरूफ करने जा रहा है। आज आपको कांगड़ा जिले में स्थित तत्वानी मंदिर के बारे में बताया जाएगा। यह मंदिर धर्मशाला से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर सलोल से चार किलोमीटर की दूरी पर बिलकुल गज खड्ड के किनारे स्थापित है। यहां खासियत यह है कि यहां गर्म पानी का चश्मा है। हालांकि कुल्लू के मणिकर्ण में भी गर्म पानी का चश्मा है। मगर यहां भी गर्म पानी का चश्मा है। मगर यहां का पानी कुल्लू के मणिकर्ण चश्मे के पानी से कम गर्म है। फव्वारे की नीचे खड़े होकर आसानी से स्नान किया जा सकता है। मंदिर भोलेनाथ को समर्पित है। यहां शिव भोले की पूजा-अर्चना होती है। इस मंदिर के पुजारी शिव गोस्वामी हैं। उन्होंने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया कि प्राचीन समय में यहां घना जंगल हुआ करता था। इसी स्थान पर तीन महात्माओं ने घोर तपस्सया की थी। उनमें से एक महात्मा का नाम गोपाल गिरि था, जबकि दो अन्य महात्माओं का नाम पता नहीं है। जब उनकी तपस्या पूर्ण हुई और प्रभु ने उन्हें अपने साक्षात दर्शन दिए तो इन महात्माओं से कुछ मांगने के लिए कहा। इस पर तीनों महात्माओं ने भगवान से पानी की मांग की। इस भगवान ने उन्हें गर्म पानी दिया। इसी कारण यहां गर्म पानी का चश्मा फूट निकला। इसी स्थान पर उन तीन महात्माओं के मंदिर बने हैं जिनकी आज भी पूजा की जाती है। कालांतर में गुलेर के राजा ने अपनी बेटी की शादी चंबा के राजा के बेटे के साथ कर दी। उस समय यातायात नहीं था तो पैदल ही यात्रा की जाती थी। उस समय गुलेर और चंबा के लिए जाने का यही रास्ता शार्टकट था। अत: एक बार रानी चंबा से पालकी में अपने मायके गुलेर रियासत जा रही थी। इसी स्थान पर कहारों ने उनकी पालकी को विश्राम दिया। तब महारानी की नजर इस चश्मे पर पड़ी। उन्होंने राजा से कह कर इसे बावड़ी के रूप में निर्माण करवा दिया। वहीं रानी ने इसी रास्ते में कई अन्य बावडिय़ों का भी निर्माण करवाया ताकि राहगीर पानी पी सकें। कुछ साल पहले यहां एक बावा सोमगिरि ने भी अपनी कुटिया बनाई थी। वह यहां लगभग 25 वर्ष तक रहे। सोमगिरि बावा ने यहां फलों का बागीचा भी लगाया था। मगर अब यहां कोई नहीं रहता है। वहीं मंदिर के पुजारी शिवदत गोस्वामी ने बताया कि यहां गर्म पानी के चश्में में स्नान करने के बाद अगर कोई शीश नवाकर मन्नत मांगता है तो वह अवश्य पूर्ण होती है। वहीं यहां गणमान्य देवेंद्र गुलेरिया ने डीसी से मंदिर के लिए सोलर लाइट की मंजूरी भी दिलवाई है। मंदिर कब का बना है इसकी सटीक जानकारी नहीं है, मगर मंदिर प्राचीन शैली में बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यह पुराने राजाओं और महाराजाओं द्वारा ही निर्मित किया गया होगा। यहां प्राचीन शैली में निर्मित कुछ बावडिय़ां भी बनी हुई हैं। माना जाता है कि ये बावडिय़ां भी राजाओं और महाराजाओं के समय की ही बनी हुई हैं। यहां आने पर आदमी स्वत: ही भोलेनाथ की भक्ति में रम जाता है और एक असीम मानसिक सुकून की अनुभूति होती है। मंदिर में प्राचीन शैली में नंदी, शिव भोले नाथ और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। जहां गर्म पानी का चश्मा है वहां एक बावड़ी बनाई गई है और जिस जगह से गर्म पानी निकलता है वहां शेर का मुंह बनाया गया है। यह आकृति बहुत ही सुंदर ढंग से बनाई गई है। इसे देखने पर भक्त स्वत: ही कला के सौंदर्य की दाद देने को मजबूर हो जाता है। यह एक ऐतिहासिक स्थान है, मगर इसे हमेशा ही नजरअंदाज किया गया है। यहां आने के लिए सलोल के तहत परेई नामक स्थान पर बस से उतरना पड़ता है और उसके बाद गज खड्ड को पार करना पड़ता है। हालांकि गर्मियों में पानी का बहाव इतना ज्यादा नहीं होता, मगर बरसात में यहां बहुत ज्यादा पानी आता है। शिवरात्रि वाले दिन यहां बहुत बड़ा मेला लगता है और यहां स्थानीय भक्तों के अलावा अन्य स्थानों से भी भक्त शीश नवाने आते हैं। मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने पर हाल में पूरी होती है और शिवभोलेनाथ अपना आशीर्वाद अवश्य देते हैं। गज खड्ड में पुल न होने के कारण स्थानीय लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसके लिए कई बार मांग भी उठाई गई कालांतर में सरकारों ने कोई ध्यान नहीं दिया। मंदिर के ठीक ऊपर लंघाणा गांव भी है जहां के वाशिंदे बहुत टफ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यहां सुविधाओं का अभाव है। विकास नाममात्र हुआ है। यहां के लोग बहुत मेहनती और मिलनसार हैं। विकास की बयार न होने पर भी उनके माथे पर कभी शिकन तक नहीं देखी गई। हालांकि लोगों को रंझ जरूर है कि इस गांव के विकास की ओर सरकारें ध्यान नहीं देती। यदि गज खड्ड पर पुल का निर्माण हो जाए तो इन लोगों को बहुत सुविधा होगी। बरसात के दिनों में खड्ड में पानी बहुत ज्यादा होने से इन लोगों को मीलों पैदल सफर कर अपने घरों तक पहुंचना पड़ता है। कई लोग तो इन्हीं असुविधाओं की वजह से अपने आशियाने कहीं और जगह बना रहे हैं। वहीं मंदिर के साथ एक पक्का रोड बनाया गया है जो झीरबल्ला से मिलता है। यहीं से एक रोड सलोल के लिए जाता है तो दूसरा रैत-शाहुपर के लिए निकलता है।