अष्टविनायक : जहाँ स्वयं प्रकट हुए श्री गणेश
हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है। श्री गणेश आदि सनातन धर्म के प्रमुख आदिपंच देवों में भी शामिल हैं। देश के प्रमुख गणेश मंदिरों में अष्ठविनायक का विशिष्ट स्थान है। दरअसल पुणे के विभिन्न इलाकों में श्री गणेश के आठ मंदिर हैं, इन्हें अष्टविनायक कहा जाता है। इन मंदिरों को स्वयंभू मंदिर भी कहा जाता है। स्वयंभू का अर्थ है कि यहां भगवान स्वयं प्रकट हुए थे यानि किसी ने उनकी प्रतिमा बना कर स्थापित नहीं की थी। इन मंदिरों का जिक्र विभिन्न पुराणों जैसे गणेश और मुद्गल पुराण में भी किया गया है। इन मंदिरों की दर्शन यात्रा को अष्टविनायक तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है।
अष्ठविनायक मंदिर के संबंध में मान्यता है कि तीर्थ गणेश के ये आठ पवित्र मंदिर स्वयं उत्पन्न और जागृत हैं। पुराणों व धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रह्माजी ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में श्रीगणेश विभिन्न रूपों मे अवतरित होंगे। सतयुग में विनायक, त्रेता युग में मयूरेश्वर, द्वापर युग में गजानन व धूम्रकेतु नाम से कलयुग के अवतार लेंगे। भगवान गणेश के आठों शक्तिपीठ महाराष्ट्र में ही हैं। इन आठ पवित्र तीर्थ में 6 पुणे में हैं और 2 रायगढ़ जिले में हैं। सबसे पहले मोरेगांव के मोरेश्वर की यात्रा करनी चाहिए और उसके बाद क्रम में सिद्धटेक, पाली, महाड, थियूर, लेनानडरी, ओजर, रांजणगांव और उसके बाद फिर से मोरेगांव अष्टविनायक मंदिर में यात्रा समाप्त करनी चाहिए। पूरी यात्रा 654 किलोमीटर की होती है।
1.मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर
मयूरेश्वर विनायक का मंदिर पुणे के मोरगांव क्षेत्र में है। इस मंदिर में चार द्वार =हैं जिन्हें सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग चारों युग का प्रतीक माना जाता हैं। यहां भगवान गणेश जी की मूर्ती बैठी मुद्रा में है और उसकी सूंड बाई है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं। यहां नंदी की भी मूर्ती है। कहते हैं कि इसी स्थान पर गणेश जी ने सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध मोर पर सवार होकर उससे युद्ध करते हुए किया था।
2. सिद्धिविनायक मंदिर
सिद्धिविनायक मंदिर करजत तहसील, अहमदनगर में है। ये मंदिर पुणे से करीब 200 किमी दूर भीम नदी पर स्थित है। यह मंदिर करीब 200 साल पुराना बताया जाता हैऔर एक पहाड़ की चोटी पर सिद्धिविनायक मंदिर बना हुआ है। इसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है। इस मंदिर की परिक्रमा करने के लिए पहाड़ की यात्रा करनी होती है। सिद्धिविनायक मंदिर में गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है। यहां गणेश जी की सूंड सीधे हाथ की ओर है।
3. बल्लालेश्वर मंदिर
पाली गांव, रायगढ़ स्थित इस मंदिर का नाम गणेश जी के भक्त बल्लाल के नाम पर रखा गया है। बल्लाल की कथा के बारे में कहते हैं कि इस परम भक्त को उसके परिवार ने गणेश जी की भक्ति के चलते उनकी मूर्ती सहित जंगल में फेंक दिया था, पर उसने केवल गणपति का स्मरण करते हुए समय बिता दिया था। प्रसन्न होकर भगवान श्री गणेश जी ने उसे इस स्थान पर दर्शन दिया और कालानंतर में बललाल के नाम पर उनका ये मंदिर बना।
4.वरद विनायक मंदिर
रायगढ़ के कोल्हापुर में वरदविनायक मंदिर। एक मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी कामनों को पूरा होने का वरदान देते हैं। एक कथा ये भी है कि इस मंदिर में नंददीप नाम का दीपक है जो कई वर्षों से लगातार जल रहा है।
5. चिंतामणी मंदिर
भीम, मुला और मुथा नदियों के संगम पर स्थित थेऊर गांव में स्थित है चिंतामणी मंदिर। ऐसी मान्यता है कि विचलित मन के साथ इस मंदिर में जाने वालों की सारी परेशानियां दूर हो कर उन्हें शांति मिल जाती है। इस मंदिर से भी जुड़ी एक कथा है कि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को शांत करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।
6. गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर
लेण्याद्री गांव में गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर स्थित है, जिसका अर्थ है गिरिजा के आत्मज यानी माता पार्वती के पुत्र अर्थात गणेश। पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर स्थित ये मंदिर लेण्याद्री पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है। इस पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं जिसमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है। इन गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है।
7. विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर
पुणे के ओझर जिले के जूनर क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है।एक किंवदंती के अनुसार विघनासुर नाम का असुर जब संतों को प्रताणित कर रहा था, तब भगवान गणेश ने इसी स्थान पर उसका वध किया था। तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है।
8. महागणपति मंदिर
महागणपति मंदिर राजणगांव में स्थित है। इस मंदिर को 9-10वीं सदी के बीच का माना जाता है। पूर्व दिशा की ओर मंदिर का बहुत विशाल और सुन्दर प्रवेश द्वार है। यहां गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा करने के लिए इस मंदिर की मूल मूर्ति को तहखाने में छिपा दिया गया है।