गोपनीय शक्ति है शत्रुनाशिनी मां बगलामुखी
देव भूमि हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जनपद के कोटला क़स्बा में स्थित है मां बगलामुखी मंदिर। प्रकृति की गोद में स्थित ये शक्तिपीठ हिन्दू धर्म के लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है। पांडुलिपियों में मां के जिस स्वरूप का वर्णन है, मां उसी स्वरूप में यहां विराजमान हैं। माता बगलामुखी पीतवर्ण के वस्त्र, पीत आभूषण तथा पीले रंग के पुष्पों की ही माला धारण करती हैं। माता बगलामुखी का दस महाविद्याओं में 8वां स्थान है तथा इनकी आराधना विशेषकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है। ये गोपनीय शक्ति है और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता बगलामुखी की आराधना सर्वप्रथम ब्रह्मा एवं विष्णु ने की थी। इसके उपरांत भगवान परशुराम ने माता बगलामुखी की आराधना करके अनेक युद्धों में शत्रुओं को परास्त करके विजय पाई थी। त्रेतायुग में रावण ने विश्व पर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। भगवान श्री राम ने भी रावण पर विजय प्राप्ति के लिए मां बगलामुखी की आराधना की, इसीलिए मां को शत्रुनाशिनी माना जाता है। नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी प्राय: इस मंदिर में आकर माता बगलामुखी की आराधना किया करते थे, जिनके आशीर्वाद से उन्होंने कई युद्धों में विजय पाई थी। तभी से इस मंदिर में अपने कष्टों के निवारण के लिए श्रद्धालुओं का निरंतर आना आरंभ हुआ और श्रद्धालु नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति सर्व कष्टों के निवारण के लिए मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं। पीला रंग मां का प्रिय रंग है। मंदिर की हर चीज पीले रंग की है, यहां तक कि प्रसाद भी पीले रंग का ही चढ़ाया जाता है। बगलमुखी शब्द बगल और मुख से आया है जिनका मतलब क्रमशः लगाम और चेहरा है। इस प्रकार, व्युत्पत्तिशास्त्र द्वारा इस नाम का अर्थ है ‘एक चेहरा जो शासन की शक्ति है’। भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न प्रणब मुखर्जी भी मां बगलामुखी की आराधना करने यहां आ चुके है। मुखर्जी 40 मिनट तक माता बगलामुखी परिसर में रुके थे और उन्होंने लगभग आधे घंटे तक मंदिर के गर्भ गृह में पूर्ण विधि-विधान से मां बगलामुखी की पूजा-अर्चना की। वर्ष 1977 में चुनावों में हार के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान करवाया था। उसके बाद वह फिर सत्ता में आईं और 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनी।
ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई मां बगलामुखी की उत्पति
मान्यता है कि एक राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे जल में कोई मनुष्य या देवता न मार सके। तदोपरांत उक्त राक्षस ब्रह्मा जी का ग्रथं ले कर भाग गया और पानी में छिप गया। तभी ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया और ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद मां की उत्पत्ति हुई थी। इसके बाद माता ने बगुले का रूप धारण किया और जल के अंदर ही राक्षस का वध कर दिया। मां बगलामुखी को नौ देवियों में 8वां स्थान प्राप्त है।
अज्ञातवास में पांडवों ने की थी स्थापना
यह माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की गई थी। कहा जाता है कि अर्जुन एवं भीम द्वारा युद्ध विजय हेतु शक्ति प्राप्त करने के लिए माता की विशेष पूजा की गई थी। कालांतर से ही यह मंदिर लोगों की आस्था व श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। वर्ष भर असंख्य श्रद्धालु, जो ज्वालामुखी, चिंतापूर्णी, नगरकोट इत्यादि के दर्शन के लिए आते हैं, वे सभी इस मंदिर में आकर माता का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहां लोग माता के दर्शन के उपरांत शिवलिंग पर अभिषेक करते हैं।
बगलामुखी जयंती पर हवन करवाने का है विशेष महत्व
'बगलामुखी जयंती' पर मंदिर में मेले का आयोजन भी किया जाता है। 'बगलामुखी जयंती' पर हर वर्ष हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से लोग आकर अपने कष्टों के निवारण के लिए हवन, पूजा-पाठ करवाकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बगलामुखी जयंती पर मंदिर में हवन करवाने का विशेष महत्व है, जिससे कष्टों का निवारण होने के साथ-साथ शत्रु भय से भी मुक्ति मिलती है। बगलामुखी जयंती वैशाख के महीने में शुक्ल पक्ष के 8 वें दिन (अष्टमी तिथि) को मनाई जाती है।
चुनाव लड़ने वाले कई नेता करवा चुके है यहां अनुष्ठान
राजयोग, शत्रुनाश, शत्रुभय, मुकदमा विजय एवं सर्व सिद्धि के लिए मां बगलामुखी सिद्ध पीठ में देश–विदेश से श्रद्धालु आते हैं। मां बगलामुखी मंदिर अनेक नेताओं की आस्था का केंद्र भी रहा है। चुनाव लड़ने वाले कई नेता यहां रात के अंधेरे में तांत्रिक अनुष्ठान करवा चुके है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल सहित केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा भी माता बगलामुखी में काफी श्रद्धा रखते हैं और इनके अतिरिक्त भी कई बड़े नेता मंदिर में आकर अपनी जीत का आशीर्वाद लेते है। मान्यता है कि कांगड़ा जिला में मौजूद शत्रुनाशिनी देवी मां बगलामुखी के दर किया गया तांत्रिक अनुष्ठान दस लाख गुना अधिक फलदायिनी है। ऐसे में कई नेता जीत की आस लगाए शत्रुनाशिनी देवी के दरबार हाजरी भी भर चुके है।