बुद्धम् शरणम् गच्छामि’: पेड़ के नीचे की तपस्या और बने सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध
बिहार में फाल्गू नदी के किनारे स्थित बोधगया जिला भारत में ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है। यहां स्थित महाबोधि मंदिर को बेहद विशेष माना जाता है। माना जाता है कि यह मन्दिर उसी स्थान पर खड़ा है जहाँ भगवान गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। बिहार बोधगया के आध्यात्मिक महत्व के कारण यह स्थल विश्व विख्यात है। इस स्थान को बौद्ध धर्म का तीर्थ स्थान कहा जाता है। यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है। महाबोधि मंदिर बौद्ध धर्म के लोगों के लिए बेहद ही पवित्र स्थल है। यह मंदिर भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित चार सबसे पवित्र जगहों में से एक है। एक किवदंती के अनुसार ये वो स्थल है, जहां मोह-माया त्यागने के बाद गौतम बुद्ध को आत्म ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिस वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी वो आज समस्त भारत और बौद्ध धर्म के अनुयायी लोगों के लिए बेहद ही पवित्र स्थल है। कहा जाता है कि इस पेड़ के नीचे सम्राट अशोक ने एक मंदिर बनवाया था, जो गौतम बुद्ध की स्मृति में समर्पित था। इस स्थान को बौद्ध सभ्यता का केन्द्र बिंदु माना जाता है। बुद्ध की मृत्यु के पश्चात, मौर्य शासक अशोक ने यहां महाबोधि मंदिर और सैकडों मठों का निर्माण करवाया था। इस मंदिर परिसर में उन सात स्थानों को भी चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद समय व्यतीत किया था। यहां पर बुद्ध की इस अवस्था में एक मूर्त्ति बनी हुई है। इस मूर्त्ति को अनिमेश लोचन कहा जाता है। मुख्य मंदिर के उत्तर पूर्व में अनिमेश लोचन चैत्य बना हुआ है। मुख्य मंदिर का उत्तरी भाग चंकामाना नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद तीसरा सप्ताह व्यतीत किया था। अब यहां पर काले पत्थर का कमल का फूल बना हुआ है जो बुद्ध का प्रतीक माना जाता है।
महाबोधि मंदिर के उत्तर पश्चिम भाग में एक छतविहीन भग्नावशेष है जो रत्नाघारा के नाम से जाना जाता है। इसी स्थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद चौथा सप्ताह व्यतीत किया था। दन्तकथाओं के अनुसार बुद्ध यहां गहन ध्यान में लीन थे कि उनके शरीर से प्रकाश की एक किरण निकली। प्रकाश की इन्हीं रंगों का उपयोग विभिन्न देशों द्वारा यहां लगे अपने पताके में किया है।माना जाता है कि बुद्ध ने मुख्य मंदिर के उत्तरी दरवाजे से थोड़ी दूर पर स्थित अजपाला-निग्रोधा वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति के बाद पांचवा सप्ताह व्यतीत किया था। बुद्ध ने छठा सप्ताह महाबोधि मंदिर के दायीं ओर स्थित मूचालिंडा क्षील के नजदीक व्यतीत किया था। यह क्षील चारों तरफ से वृक्षों से घिरा हुआ है। इस क्षील के मध्य में बुद्ध की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति में एक विशाल सांप बुद्ध की रक्षा कर रहा है। इस मूर्ति के संबंध में एक दंतकथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार बुद्ध प्रार्थना में इतने लीन थे कि उन्हें आंधी आने का ध्यान नहीं रहा। बुद्ध जब मूसलाधार बारिश में फंस गए तो सांपों का राजा मूचालिंडा अपने निवास से बाहर आया और बुद्ध की रक्षा की। इस मंदिर परिसर के दक्षिण-पूर्व में राजयातना वृक्ष है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना सांतवा सप्ताह इसी वृक्ष के नीचे व्यतीत किया था। यहीं बुद्ध दो बर्मी व्यापारियों से मिले थे। इन व्यापारियों ने बुद्ध से आश्रय की प्रार्थना की।
सम्राट अशोक ने बोधगया में लगवाया था हीरों से बना राजसिहांसन
महाबोधि मंदिर का निर्माण कब हुआ इसकी कोई स्पष्ट तिथि किसी को भी नहीं मालूम है लेकिन, यह मंदिर लगभग 2 हज़ार सालों से भी अधिक समय से हिन्दु और बौद्ध धर्म के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल रहा है। इस मंदिर और इसके आसपास की जगहों पर महान सम्राट अशोक के काल के कुछ शिलालेख मिले थे जिससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि यह मंदिर 232 ईसा पूर्व से भी अधिक प्राचीन है। इस मंदिर को किसने बनवाया इसके बारे में भी किसी का नाम स्पष्ट नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में इस स्थान पर सम्राट अशोक ने हीरों से बना राजसिहांसन लगवाया था और जिसे पृथ्वी का नाभि केंद्र कहा गया। जताकास के अनुसार, दुनिया में कोई भी दूसरी जगह बुद्धा के भार को सहन नहीं कर सकती। बुद्ध लिपिकों के अनुसार जब इस पूरी दुनिया का विनाश होगा तब बोधिमंदा धरती से गायब होने वाली अंतिम जगह होगी। परंपराओ का यह भी कहना है कि वहाँ आज भी कमल खिलते है। बोधगया में बुद्ध जयन्ती के अवसर पर विशेष आयोजन होते हैं। नये साल के अवसर पर यहां महाकाली पूजन कर मठों को पवित्र किया जाता है।
अनूठे वास्तुकला के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है महाबोधि मंदिर
बिहार में स्थित महाबोधि मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। मुख्य मंदिर के पीछे बुद्ध की 7 फीट ऊंची विजरासन मुद्रा में मूर्ति है। इस मूर्ति के चारों ओर विभिन्न रंगों के पताके लगे हुए हैं जो इस मूर्ति को एक विशिष्ट आकर्षण प्रदान करते हैं। राजा अशोक को महाबोधि मन्दिर का संस्थापक माना जाता है। महाबोधि मंदिर की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थापित स्तूप के समान है। निःसन्देह रूप से यह सबसे पहले बौद्ध मन्दिरों में से है जो पूरी तरह से ईंटों से बना है और वास्तविक रूप में अभी भी खड़ा है। महाबोधि मन्दिर की केन्द्रीय लाट 55 मीटर ऊँचा है और इसकी मरम्मत 19वीं शताब्दी में करवाई गयी थी। इसी शैली में बनी चार छोटी लाटें केन्द्रीय लाट के चारों ओर स्थित हैं। मंदिर के चारों ओर पत्थर की नक्काशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। महाबोधि मन्दिर चारों ओर से पत्थरों की बनी 2 मीटर ऊँची चहारदीवारी से घिरा है। कुछ पर कमल बने हैं जबकि कुछ चहारदीवारियों पर सूर्य, लक्ष्मी और कई अन्य हिन्दू देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनी हैं। मंदिर समूह में सुबह के समय घण्टों की आवाज और बुद्धम शरणम गच्छामि के मंत्र से मन शांत होता है।
सिद्धार्थ गौतम के जीवन से जुड़ा है बोधि वृक्ष
बोधि वृक्ष महाबोधि मंदिर और बोधगया का महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक वृक्ष या स्थान है जो सिद्धार्थ गौतम के जीवन से सीधे जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यतानुसार कहा जाता है कि जब राजा सिद्धार्थ गौतम ने देखा की संसार मे बहुत पाप बढ़ गये हैं। धरती पर लोग दुःखो से ग्रसित है तो उन दुखों को समाप्त करने के लिए वह फाल्गु नदी के किनारे पर पहुंचे, जो बिहार के गया शहर से होकर बहती है। वही पर वे एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान की अवस्था में बैठे और तीन रात और तीन दिन तक गहन ध्यान अवस्था में रहने के बाद सिद्धार्थ गौतम ने आत्मज्ञान प्राप्त किया जिसके बाद पीपल वृक्ष को बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाने लगा। यहीं पर सम्राट अशोक ने एक मंदिर बनवाया था, जो महान गौतम बुद्ध की स्मृति में समर्पित था।
महा बोधि मंदिर के आस पास है कई दर्शनीय सथल
थाई मठ: बोधगया में थाई मठ, भगवान बुद्ध की एक सुंदर नक्काशीदार विशाल कांस्य प्रतिमा का घर है, जिसे 1956 में थाईलैंड के सम्राट ने बनाया था। थाई मठ भारत में एक अनूठा और एकमात्र थाई मंदिर है, जिसे भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर थाईलैंड के सम्राट ने बनाया था। मठ एक ढलान और घुमावदार छत के साथ सुशोभित है जो सुनहरी टाइलों से ढका है। मठ का अंदर का वातावरण काफी शांत और निर्मल है।
रॉयल भूटानी मठ: रॉयल भूटान मठ क्षेत्र में सबसे शानदार मठों में से एक है, जिसे भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि के रूप में भूटान के राजा द्वारा बनाया गया था। इस मठ में मिट्टी की नक्काशी के साथ भगवान बुद्ध के जीवन का चित्रण है, जिसे सजावटी स्थापत्य शैली से सजाया गया है। मठ के अंदर, भगवान बुद्ध की सात फीट ऊंची प्रतिमा है, जिसे बौद्ध प्रतीकों और शास्त्रों के साथ उकेरा गया है।
बुद्ध की ऊंची प्रतिमा: यह स्थित विशालकाय बुद्ध प्रतिमा बौद्ध तीर्थ और पर्यटन मार्गों में से एक है। यह बुद्ध मुर्ति ध्यान मुद्रा में 25 मीटर ऊँची खुली हवा में एक कमल पर विराजमान है। इस प्रतिमा को पूरा करने के लिए 12,000 राज मिस्त्रियों को सात साल लग गए थे। यह प्रतिमा बलुआ पत्थर ब्लॉक और लाल ग्रेनाइट का एक मिश्रण है।
जापानी मंदिर: इंडोस निप्पन जापानी मंदिर बोधगया में सुंदर और लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। यह मंदिर जापानी संस्कृति में बौद्ध धर्म की उपस्थिति को दर्शाता है। इंडोसन निप्पन जापानी मंदिर बोधगया में सबसे अधिक देखा जाने वाला मंदिर है, जिसे 1972 के वर्ष में बनाया गया था। मंदिर का मुख्य उद्देश्य बौद्ध धर्म और भगवान बुद्ध के विचारों का संरक्षण और प्रसार करना है। यह मंदिर जंगल की खूबसूरती से उकेरा गया है, इसलिए इस मंदिर का मुख्य आकर्षण इसकी लकड़ी की नक्काशी है जो इसे एक अनोखा आकर्षण प्रदान करती है।
आर्कियोलॉजिक म्यूजियम: आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम एक छोटा सा संग्रहालय है जिसमें केवल तीन हॉल हैं। इस संग्रहालय में हिंदू और बौद्ध धर्म की कई मूर्तियां और कलाकृतियां हैं। साथ ही इसके अलावा खुदाई में मिली कुछ अन्य चीजें भी रखी गई हैं। जो देखने लायक है।
मुचलिंडा झील: सुंदर मुचलिंडा झील बिहार में एक ऐतिहासिक स्थल है, जो प्रसिद्ध महाबोधि मंदिर के दाईं ओर स्थित है, जिसे लोटस पॉन्ड के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ भगवान बुद्ध की एक सुंदर प्रतिमा है, जो झील के केंद्र में रखे हुड द्वारा संरक्षित एक सांप के कुंडल पर ध्यान लगा रही है। ऐसा माना जाता है कि बुद्ध के ध्यान के छठे सप्ताह के दौरान, झील में एक बहुत बड़ा तूफान आया था, जबकि बुद्ध ध्यान कर रहे थे, तब मुचलिंडा भगवान बुद्ध को तूफान के उत्पात से बचाने के लिए झील के नीचे से बाहर आया था।
चीनी मंदिर: चीनी मंदिर महाबोधि मंदिर के पास स्थित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। वास्तुकला का यह प्रभावशाली टुकड़ा चीनी भिक्षुओं द्वारा बनाया गया है। इस चीनी मंदिर में भगवान बुद्ध की तीन आकर्षक स्वर्ण मूर्तियाँ हैं जिन्हें इस स्थान के प्राथमिक आकर्षणों में गिना जाता है। हर साल बुद्ध जयंती भगवान बुद्ध के जन्म का सम्मान करने के लिए यहां मनाया जाता है, हर साल बुद्ध जयंती मनाने के लिए दुनिया भर के लोग यहां आते हैं।