देवरहा बाबा : वो संत जिनके आगे कई प्रधानमंत्री भी हुए नतमस्तक
भारत देश की पावन भूमि पर कई ऐसे साधु-संत और सन्यासी हुए है जिन्होंने अपना पूरा जीवन जन कल्याण में लगा दिया। ऐसे ही एक महायोगी बाबा को दुनिया देवरहा बाबा के नाम से जानती है। देवरहा बाबा एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्त पुरुष थे। देवरहा बाबा का जन्म कब और कहाँ हुआ ये तो किसी को भी पता नहीं है ,पर बाबा का निवास ज्यादातर भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया में रहता था जिसके चलते ही उनका नाम देवरहा बाबा पड़ा।
मंगलवार, संवत 2047 की योगिनी एकादशी तदनुसार, 19 जून सन 1990 के दिन अपना शरीर छोड़ने वाले देवरहा बाबा की चमत्कारी शक्ति को लेकर तरह-तरह की बातें कही-सुनी जाती हैं। उनकी सही उम्र के विषय में अलग-अलग राय है। आमतौर पर सुनने में आता हैं कि देवरहा बाबा 900 साल तक जिन्दा थे। वहीँ कुछ लोग उनका जीवन काल 250 साल तो कुछ 500 साल मानते हैं। उनका वास्तविक जीवनकाल कितना था इसे लेकर अलग -अलग बातें है। कहते है उनकी आयु को लेकर पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक बार कहा था कि अपने बचपन में उन्होंने बाब के दर्शन किये थे। इसके बाद जब वे राष्ट्रपति बनने के बाद दोबारा बाबा के दर्शन को गए तब भी बाबा वैसे ही दिखते थे, जैसा उन्होंने अपने बचपन में उनको देखा था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी आपातकाल के बाद चुनाव में हार के बाद बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंची थी। इंदिरा के अतिरिक्त पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी भी बाबा के दर्शन करने पहुंचते थे।
देवरहा बाबा का पूरा जीवन मचान पर ही बीता। यमुना किनारे करीब 12 फ़ीट ऊँची मचान पर ही वे रहा करते थे। चार खंभों पर टिका मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। बाबा हमेशा निरवस्त्र रहते हुए मृग छाला ही पहनते थे। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। कहते है श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था। वे साल में करीब आठ माह देवरिया के मइल गांव में ही बिताते थे। बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे।
अपरम्पार थी बाबा की साधना की शक्ति :
देवरहा बाबा ने अपनी उम्र, तप और सिद्धियों के बारे में कभी कोई दावा नहीं किया। सहज, सरल और सादा जीवन जीने वाले बाबा देवरहा तो बिना पूछे ही सब कुछ जान लेते थे। यह उनकी साधना की शक्ति थी। कहा जाता है कि बाबा को प्लविनी सिद्धि प्राप्त थी और वे जल पर भी चलते थे। किसी भी गंतव्य पर पहुंचने के लिए उन्होंने कभी सवारी नहीं की। बाबा हर साल माघ मेले के समय प्रयाग आते थे। यमुना किनारे वृंदावन में वह आधा घंटा तक तक पानी में, बिना सांस लिए रह लेते थे। बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्टि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याद्दाश्त इतनी कि दशकों बाद मिले व्यक्ति को भी पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते। कहते है बाबा जानवरों की भाषा समझ जाते थे बाबा जानवरों की भाषा समझ जाते थे, पल भर में वे खतरनाक जंगली जानवरों को काबू कर लेते थे।
बाबा ने दिया था कांग्रेस का चुनाव चिन्ह !
देश में आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुए, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हार गईं। हार के बाद इंदिरा गाँधी भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। बाबा का आशीर्वाद देने का तरीका निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो जाता था। पर बाबा ने इंदिरा को हाथ उठाकर पंजे से आशीर्वाद दिया। कहते है ये बाबा का इशारा था जिसे इंदिरा समझ गई और वहां से लौटने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा ही तय किया। इसी चिह्न पर 1980 में कांग्रेस ने इंदिरा के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और इंदिरा फिर से देश की प्रधानमंत्री बनीं।
जार्ज पंचम भी दर्शन के लिए आये थे भारत :
बाबा के दर्शन के लिए मईल आश्रम पर 1911 में जार्ज पंचम दर्शन करने के लिए भारत आए थे। देश के महान विभूति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मदनमोहन मालवीय, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी अटल बिहारी बाजपेयी, मुलायम सिंह यादव , वीरबहादुर सिंह, विंदेश्वरी दुबे, जग्रनाथ मिश्र आदि नेताओं सहित प्रशासनिक अधिकारी बाबा का आशीर्वाद लेते थे। बाबा अपने पास आने वाले भक्तों से बड़े प्रेम से मिलते थे और उनको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे। यह किसी चमत्कार जैसा ही लगता था।