सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
कुरुक्षेत्र जैसा अध्भुत उपन्यास लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 में हुआ। आज बात करेंगे दिनकर के राष्ट्रनिर्माण में योगदान व उनके साहित्य की। दिनकर का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में एक सामान्य किसान 'रवि सिंह' तथा उनकी पत्नी 'मनरूप देवी' के पुत्र के रूप में हुआ। दिनकर ने संस्कृत, बंगला, अंग्रेज़ी व उर्दू भाषा पर गहन अध्ययन किया।
रामधारी सिंह दिनकर 1947 तक एक विद्रोही कवि व उसके बाद राष्ट्रकवि के रूप में पहचाने गए। दिनकर की विद्रोही सोच का एक उदाहरण उनकी कविता "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" में भी देखने के लिए मिलता है। उनकी जादूगरी उनकी मृत्यु के सालों बाद भी उनके साहित्य के रूप में जिंदा है।
जब वे मोकामा हाई स्कूल के छात्र थे तब स्कूल के बंद होने तक, चार बजे तक स्कूल में रहना उनके लिए संभव नही था। इसीलिए वे बीच की छुट्टी में ही स्कूल छोड़कर वापिस घर आ जाते थे। हॉस्टल में रहना उनके लिए आर्थिक रूप से संभव नहीं था और इसीलिए वे स्कूल खत्म होने तक स्कूल में नही रुकते थे। बाद में उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से गरीबी के प्रभाव को समझाया।
रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि होने के साथ-साथ राज्य सभा के सदस्य भी थे। राजनीति के इतने पास रहने के बावजूद दिनकर ने दिलों पर राज किया। उनकी कही कई बातों को आज भी दौहराया जाता है। दिनकर कांग्रेस से जुड़े तो रहे परन्तु उन्होंने कभी किसी एक का समर्थन नहीं किया।
उन्होंने लिखा -
"अच्छे लगते मार्क्स, किंतु है अधिक प्रेम गांधी से।
प्रिय है शीतल पवन, प्रेरणा लेता हूं आंधी से।"
कहा जाता है कि एक बार दिनकर व जवाहरलाल नेहरू एक समागम में साथ थे। जब नेहरू स्टेज पर जा रहे थे तो उनके कदम डगमगाए व वह फिसलने लगे तभी दिनकर ने उन्हें सम्भाला। नेहरू के शुक्रिया अदा करने पर दिनकर ने कहा-
"कोई बात नहीं नेहरू जी, जब-जब देश की राजनीति डगमगाएगी साहित्य उसे संभालता रहेगा।"
दिनकर का राष्ट्र निर्माण में व हिंदी भाषा को उसकी पेहचान दिलवाने में भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वे कहा करते थे कि -
"जिस भाषा का प्रयोग नेता फाइलों में करते हैं उसी में वोट मांगेंगे तो एक वोट भी नहीं मिलेगा।"
उन्होंने जो भी लिखा हिंदी में ही लिखा। उनकी पहली रचना 'रेणुका' 1935 से प्रकाशित हुई। उनके लिखे सभी उपन्यासों में रश्मिरथी व कुरुक्षेत्र के एक अलग स्थान है। उनकी रचना 'उर्वशी' भी बहुचर्चित रही। दिनकर द्वारा रचित रश्मिरथी, हिन्दू महाकाव्य महाभारत का सबसे बेहतरीन हिंदी वर्णन माना जाता है। उन्हे साहित्य में उनके योगदान के लिए सदैव याद रखा जाएगा।