विश्व में सबसे बड़ा आस्था का संगम है कुंभ मेला
कुंभ मेला आस्था का संगम है। विश्व में कुंभ पर्व से बड़ा कोई और दूसरा धार्मिक आयोजन नहीं मनाया जाता है। कुंभ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है। हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं। मेले का इतिहास 850 साल से भी पुराना है। कथाओं के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया इस मंथन के दौरान कई रत्न,अप्सराएं, जानवर, विष और अमृत आदि निकला था। अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में संघर्ष शुरू हो गया था। जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां-वहां धार्मिक स्थल बने और कुंभ का आयोजन किया गया। इस संघर्ष के बीच अमृत की कुछ बूंदें प्रयाग, हरिद्वार,नासिक और उज्जैन में गिरी थीं। महाकुंभ का मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इस मेले का आयोजन हरिद्वार,प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में किया जाता है। कुंभ में शामिल होने के लिए 14 अखाड़ों की पेशवाई भी निकाली जाती है। पेशवाई यहां अखाड़ों के कुंभ में धूमधाम से पहुंचने को कहते है। अब तक कुंभ में 13 अखाड़े शामिल होते थे लेकिन इस बार एक नए अखाड़ा को शामिल किया गया है। पहली बार किन्नर अखाड़ा शामिल हुआ है जो इस बार आकर्षण का केंद्र बना।
1.जूना अखाड़ा
जूना अखाड़ा की स्थापना 1145 में उत्तराखण्ड के कर्णप्रयाग में हुई थी। जूना अखाड़ा पहले भैरव अखाड़े के रूप में जाना जाता था। दरअसल, उस वक्त इनके इष्टदेव भैरव थे। भैरव भगवान शिवजी के रूप हैं। वर्तमान में इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय हैं, जो कि रुद्रावतार हैं। इसका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर माना जाता है। इस अखाड़े के अंतर्गत आवाहन, अलखिया व ब्रह्मचारी भी हैं।इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं।
2.श्रीनिरंजनी अखाड़ा
श्रीनिरंजनी अखाड़ा की स्थापना 826 ई. में गुजरात के मांडवी मे हुई थी। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान कार्तिकेय हैं, जो देवताओं के सेनापति हैं। इनमें दिगंबर, साधु, महंत व महामंडलेश्वर होते हैं। इनकी शाखाए इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर व उदयपुर में हैं।
3.महानिर्वाणी अखाड़ा
श्रीमहानिर्वाण अखाड़ा की स्थापना 671 ई में हुई थी। कुछ लोगों का मत है कि इसका जन्म बिहार-झारखण्ड के बैजनाथ धाम में हुआ था। जबकि कुछ हरिद्वार में नीलधारा के पास मानते हैं। इतिहास के अनुसार, सन् 1260 में महंत भगवानंद गिरी के नेतृत्व में 22 हजार नागा साधुओं ने कनखल स्थित मंदिर को आक्रमणकारी सेना के कब्जे से छुड़ाया था। निर्वाणी अखाड़े का केंद्र हिमाचल प्रदेश के कनखल में है। इस अखाड़े की अन्य शाखाएं प्रयाग, ओंकारेश्वर, काशी, त्रयंबक, कुरुक्षेत्र, उज्जैन व उदयपुर में है। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भस्म चढ़ाने वाले महंत निर्वाणी अखाड़े से ही संबंध रखते हैं।
4.आवाहन अखाड़ा
यह अखाड़ा जूना अखाड़े से सम्मिलित है। इस अखाड़े की स्थापना 646 में हुई थी और 1603 में पुनर्संयोजित किया गया। इस अखाड़े का केंद्र दशाश्वमेघ घाट, काशी में है। इस अखाड़े के संन्यासी भगवान श्रीगणेश व दत्तात्रेय को अपना इष्टदेव मानते हैं।
5.अटल अखाड़ा
इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान श्रीगणेश हैं। इनके शस्त्र-भाले को सूर्य प्रकाश के नाम से जाना जाता है। इस अखाड़े की स्थापना गोंडवाना में सन् 647 में हुई थी। इसका केंद्र काशी में है। इस अखाड़े का संबंध निर्वाणी अखाड़े से है।
6.आनंद अखाड़ा
श्री आनंद अखाड़े की स्थापना 855 ई. में मध्यप्रदेश के बेरार में हुई थी। इस अखाड़े के इष्टदेव सूर्य हैं। इसका केंद्र भी वाराणसी है। इसकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन में हैं।
7.श्री पंचाग्नि अखाड़ा
इस अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी।इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इसका केंद्र गिरनार की पहाड़ी पर है। इस अखाड़े के साधु नर्मदा-खण्डी, उत्तरा-खण्डी व नैस्टिक ब्रह्मचारी में विभाजित है। परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में हैं।
8.दिगंबर अखाड़ा
इस अखाड़े की स्थापना अयोध्या में हुई थी। यह अखाड़ा लगभग 260 साल पुराना है। सन 1905 में यहां के महंत अपनी परंपरा में 11वें थे। दिगंबर निम्बार्की अखाड़े को श्याम दिगंबर और रामानंदी में यही अखाड़ा राम दिगंबर अखाड़ा कहा जाता है।
9.श्री नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा
गोरखनाथ अखाड़े की स्थापना 866 ई. में अहिल्या-गोदावरी संगम पर हुई थी। इस अखाड़े के संस्थापक पीर शिवनाथजी हैं। इनके मुख्य देवता गोरखनाथ हैं और इनमें बारह पंथ शामिल हैं। यह संप्रदाय योगिनी कौल नाम से प्रसिद्ध है और त्र्यंबकेश्वर शाखा त्र्यंबकंमठिका नाम से प्रसिद्ध है।
10.श्री वैष्णव अखाड़ा
बालानंद अखाड़ा ई. 1595 में दारागंज में श्री मध्यमुरारी में स्थापित हुआ। समय के साथ इनमें निर्मोही, निर्वाणी, खाकी आदि तीन संप्रदाय बने। इनका अखाड़ा त्र्यंबकेश्वर में मारुति मंदिर के पास था।1848 तक शाही स्नान त्र्यंबकेश्वर में ही हुआ करता था परंतु 1848 में शैव व वैष्णव साधुओं में पहले स्नान कौन करे इस मुद्दे पर विवाद हुआ। श्रीमंत पेशवाजी ने यह झगड़ा मिटाया। उस समय उन्होंने त्र्यंबकेश्वर के नजदीक चक्रतीर्थ पर स्नान किया। 1932 से ये नासिक में स्नान करने लगे। आज भी नासिक में ही इनका स्नान होता है।
11.श्रीउदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा
उदासीन अखाड़े की स्थापना सन् 1910 में हुई थी। इस संप्रदाय के संस्थापक श्रीचंद्रआचार्य उदासीन हैं। इनमें उदासीन साधु, मंहत व महामंडलेश्वरों की संख्या ज्यादा है। इस अखाड़े की शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, त्र्यंबकेश्वर, भदैनी, कनखल, साहेबगंज, मुलतान, नेपाल व मद्रास में हैं।
12.निर्मल अखाड़ा
निर्मल अखाड़ा की स्थापना सन् 1784 में हुई थी। इस अखाड़े की स्थापना सिख गुरु गोविंदसिंह के सहयोगी वीरसिंह ने की थी। इनकी ईष्ट पुस्तक श्री गुरुग्रन्थ साहिब है। ये सफेद कपड़े पहनते हैं। इसके ध्वज का रंग पीला या बसंती होता है और ऊन या रुद्राक्ष की माला हाथ में रखते हैं। इनकी शाखाएं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और त्र्यंबकेश्वर में हैं।
13.निर्मोही अखाड़ा
निर्मोही अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। इस अखाड़े के मठ और मंदिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश राजस्थान, गुजरात और बिहार में हैं। माना जाता है कि प्राचीन काल में लोमश नाम के ऋषि थे, जिनकी आयू अखंड है कहते है जब एक हजार ब्रह्मा समाप्त होते हैं तो उनके शरीर का एक रोम गिरता है। आचार्य लोमश ऋषि के ने भगवान शंकर के कहने पर गुरू परंपरा पर तंत्र शास्त्र पर आधारित सबसे पहले आगम अखाड़े की स्थापना की। इस अखाडे के साधू बहुत ही रहस्यमयी होते है, पूजा-ध्यान करते हुऐ वो भूमि का त्याग कर अधर मे होते हैं।
14.किन्नर अखाड़ा
हरिद्वार के कुंभ मेले में पहली बार किन्नर अखाड़ा भी शामिल हुआ है। किन्नर अखाड़ा के अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने साल 2013 में अखाड़े का गठन किया था। किन्नर अखाड़ा सबसे पहले उज्जैन फिर प्रयागराज और अब तीसरी बार हरिद्वार के कुंभ मेले में शामिल हुआ है। किन्नर अखाड़ा नागा सन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े जूना अखाड़े के साथ पेशवाई में शामिल हुआ।
शाही स्नान का होता है विशेष महत्व
हिंदू धर्म में कुंभ स्नान का महत्व बेहद विशेष बताया गया है। मान्यता है कि अगर व्यक्ति कुंभ स्नान करता है तो व पापमुक्त हो जाता है। साथ ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में पितृ का बहुत महत्व है। ऐसे में कहा जाता है कि अगर कुंभ स्नान किया जाए तो इससे पितृ भी शांत हो जाते हैं। इससे व्यक्ति पर आशीर्वाद बना रहता है।