आस्था व कला का बेजोड़ नमूना है मोनोलिथिक टेम्पल ऑफ कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे मंदिर है जिसकी भव्यता और प्राचीनता आस्था के जड़ों को मजबूत करती है, ऐसा ही एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है, जिला काँगड़ा का मसरूर मंदिर। यह कांगड़ा से लगभग 32 किमी और धर्मशाला से 47 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पवित्र मंदिर एकल-रॉक-'कट मोनोलिथिक मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि मसरूर मंदिर 6ठी और 8वीं शताब्दी के बीच बनाया गया था। यह मंदिर देश के तमिलनाडु के महाबलीपुरम, महाराष्ट्र में एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर और राजस्थान में धमनार की गुफाओं के बराबर है। मसरूर मंदिर परिसर में 15 इंडो आर्यन शैली अखंड रॉक कट मंदिरों का एक समूह है। ठाकुरद्वारा कहे जाने वाले मुख्य मंदिर में राम, लक्ष्मण और सीता की तीन विशाल नक्काशीदार काले पत्थर के मूर्तियां है। यह माना जाता है कि मंदिर भगवान शिव भक्त, राजा यशोवर्धन द्वारा बनाया गया था। द्वार में भगवान शिव की आकृति की उपस्थिति भी मजबूत संकेत देती है कि यह मंदिर मूल रूप से महादेव को समर्पित था। यह ऐतिहासिक मंदिर आंशिक रूप से 1905 में एक बड़े भूकंप के कारण खंडहर में बदला लेकिन आज भी इसकी खूबसूरती बरकरार है। मसरूर स्थित एकाश्म शैलकृत मंदिर मूल रूप से उन्नीस स्वतंत्र मुक्त खड़ी संरचना वाले मंदिरों का समूह था। तथापि, वर्तमान में उनमें से कुछ शेष हैं जिन पर वर्ष 1905 के विनाशकारी भूकंप के चिह्न देखे जा सकते हैं। नागर (उत्तर भारतीय) शैली में बने मुख्य मंदिर में गर्भगृह, प्रकोष्ठ, प्रार्थना हाल और प्रवेश मंडप शामिल हैं। गर्भगृह में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां हैं जो प्रस्तर के प्लेटफार्म पर खड़ी हैं जिसे कालांतर में जोड़ा गया है। उन्नीस में से सोलह मंदिर प्रस्तर की एक ही शिला को तराशकर बनाए गए थे जबकि दो मंदिर मुख्य परिसर के दोनों ओर स्वतंत्र रूप से खड़े थे। मसरुर स्थित मंदिर परिसर उत्कृष्ट मूर्तियों की आभासी दीर्घा है जो समकालीन मूर्ति कला से भरपूर है। मुख्य मंदिर शिला में गुफा के रूप में बाहर निकला हुआ था तथा दरवाजों के साथ बाहरी हिस्सा उच्च सजावटी नक्काशियों से अलंकृत है। मंदिर का मुख उत्तर पूर्व दिशा की ओर है। मुख्य मंदिर के द्वार पर उत्कीर्ण शिव की मूर्ति से यह माना जा सकता है कि यह मंदिर शिव को समर्पित था। बाहरी हिस्से में बने आलों में वैकुंठ के रूप में विष्णु, दिक्पाल (दिशाओं के संरक्षक), सूर्य, अग्रि. शिव, पार्वती (देवी) और स्कंद-कार्तिकेय (योद्धा भगवान) की मूर्तियां लगाई गई हैं। शिव के विभिन्न भावों को दर्शाते मंदिर के गगनचुम्बी शिखर चैत्य गवाक्ष से सुसज्जित हैं। अन्य रूपांकन प्रतिहार शैली के अनुरूप हैं, जिसमें कमल की जटिल आकृति, कल्पलता (इच्छा पूर्ति लता), कल्पवृक्ष (जीवन वृक्ष) और रख (हीरा) शामिल हैं। मंदिर परिसर एक पहाड़ी पर स्थित है और इसमें एक बड़ा आयताकार तालाब है जो पूरे साल पानी से भरा रहता है। इस स्मारक की अद्वितीय वास्तुकला और सौन्दर्यात्मक महत्ता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक घोषित किया गया है।
कई रहस्य, कई किवदन्तियां
आपदा से पहले मुख्य मंदिर शिव मंदिर था, पर अभी यहां श्री राम, लक्ष्मण व सीता जी की मूर्तियां स्थापित हैं। एक लोकप्रिय पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इसी जगह पर निवास किया था और इस मंदिर का निर्माण किया। यह एक गुप्त निर्वासन स्थल था इसलिए वे अपनी पहचान उजागर होने से पहले ही यह जगह छोड़ कर कहीं और स्थानांतरित हो गए। कहा जाता है कि मंदिर का जो एक अधूरा भाग है उसके पीछे भी यही एक ठोस कारण मौजूद है।
द्रौपदी के लिए किया झील का निर्माण
मसरूर झील, मंदिर के बिल्कुल सामने ही स्थित है जो मंदिर की खूबसूरती में चार-चांद लगाती है। झील में मंदिर के कुछ अंश का प्रतिबिंब दिखाई देता है जो किसी करिश्मा से कम नहीं । कहा यह भी जाता है कि इस झील को पांडवों ने ही अपनी पत्नी द्रौपदी के लिए बनवाया था। यहां कई ऐसे चौखट हैं जो भगवान शिव के सम्मान में मनाए जाने वाले त्यौहारों को दर्शाते हैं। छोटे छोटे कलाकृतियों में भी भगवान शिव के लीलाओं को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है।
निर्माण तारीख को लेकर रहस्य बरकरार
विश्वसनीय स्रोत के बाद भी इसके निर्माण की सही तारीख़ का पता नहीं चल सका है। इसके अलावा न तो मंदिर के शिला-लेख और न ही इतिहास की किताबों में ऐसा कुछ उल्लेख मिलता है जिससे मंदिर के संरक्षक या निर्माण के समय का पता चल सके। मंदिर परिसर नगारा मंदिर वास्तुकला की शैली में बना है। ये शैली 8वीं शताब्दी के बाद मध्य भारत और कश्मीर में विकसित हुई थी। माना जाता है कि इनका निर्माण उन कलाकारों ने करवाया होगा जो मध्य भारत और कश्मीर नक्काशी के लिए आते जाते थे।
ऑस्ट्रेलिया के खोजकर्ता ने किया जिक्र
1835 में ऑस्ट्रेलिया के खोजकर्ता बैरन चार्ल्स हूगल ने कांगड़ा में ऐसे मंदिर के होने का ज़िक्र किया है जो उनके अनुसार एलोरा के मंदिरों से काफ़ी मिलता जुलता था। दुर्भाग्य से 1905 में भूकंप में ये काफ़ी हद तक नष्ट हो गए। बताया जाता है कि रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 7.8 थी और इसका सेंटर कांगड़ा था। ये इस क्षेत्र में आया सबसे ज़बरदस्त भूकंप था जिसने पूरे क्षेत्र को झकझोर के रख दिया था। भूकंप में कांगड़ा क़िले तथा मसरुर मंदिर सहित कई भवन नष्ट हो गए थे। मुख्य मंदिर में पहले शिवलिंग हुआ करता था। राम और सीता की मूर्तियों को वहां संभवत:1905 के भूकंप के बाद स्थापित किया गया होगा। मंदिर के सामने एक बड़ा मंडप था और बड़े बड़े खंबे थे जो अब पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं हालंकि छत पर जाने की सीढ़ियां दोनों तरफ़ अभी भी देखी जा सकती हैं।