जीत का प्रतीक मां जयंती, पापों से दिलाती है मुक्ति
जैसा कि नाम से विदित है कि मां जयंती पापों का नाश करती है और जीत का प्रतीक है। मान्यता है कि मनुष्य चाहे कितना भी पापी क्यों न हो, अगर उसने मां के चरणों में शीश नवा लिया तो समझो सारे पाप नष्ट हो गए। इस मां का उल्लेख द्वापर युग में भी मिलता है। माना जाता है कि यह माता सती की छठी भुजा से उत्पन्न हुई है।
गोरखा समुदाय की है कुलदेवी
यह माता गोरखा समुदाय की कुलदेवी है और नेपाल में भी इसकी बहुत मान्यता है। बताया जाता है कि यह मां जीत की भी परिचायक है। स्थिति चाहे कितनी भी विकट क्यों न हो, सच्चे मन से आराधना करने पर मां उसकी विजय का रास्ता प्रशस्त करती है। बताया जाता है कि एक बार इंद्र को शक्तिशाली राक्षस ने घेर लिया। उसे लगने लगा कि अब उसकी हार निश्चित है। उसी समय उसने मां जयंती की आराधना की। मां ने तुरन्त चामुण्डा का रूप धारण करते हुए उसकी रक्षा कर जीत का रास्ता प्रशस्त किया।
लंज-कांगड़ा रोड पर स्थित है माता का मंदिर
अब बात करते हैं कांगड़ा जिला में स्थापित मां जयंती के मंदिर की। यह मंदिर लंज-कांगड़ा रोड पर स्थित है। कांगडा से इसकी दूरी शायद एक अनुमान के अनुसार 6 या 7 किलोमीटर के बीच हो सकती है। यह माता 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर पर स्थित है। मंदिर बहुत प्राचीन है। ठीक से अनुमान नहीं है, मगर मान्यता है कि मां यहां द्वापर काल से ही विराजमान है।
वनवासकाल में पांडव भी रुके थे यहां
माना जाता है कि अपने वनवास काल के दौरान पांडव भी यहां रुके थे। यही कारण है कि यहां हर साल पंचभीष्म (गुप्त नवरात्र) मनाए जाते हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में पंजभीखू भी कहा जाता है। इस हिसाब से मंदिर कितना प्राचीन है, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इस मंदिर के संबंध में एक
चंडीगढ़ के माजरा में भी है मां का मंदिर
किंवदंती भी प्रचलित है। एक बार एक राजा की कन्या थी। वह मां की आराधना करती थी। जब वह कन्या वर योग्य हुई तो राजा ने उसकी शादी रचा दी। सब रस्में संपूर्ण होने के बाद जब विदाई का समय हुआ, तो कहार उसकी डोली नहीं उठा सके। उन्होंने बहुत कोशिश की, मगर डोली नहीं हिल सकी। आखिर में उस कन्या ने बताया कि मैं मां की अनन्य भक्त हूं। मां मेरे स्वप्न में आई थी और कहा था कि मैं भी तेरे साथ जाना चाहती हूं। फिर एक पत्थर की मूर्ति को मां की मूर्ति से स्पर्श करवाया गया, तब जाकर उसकी डोली उठी। यह जगह चंडीगढ़ के जयंती माजरा नामक गांव में स्थित है, जहां मां का मंदिर बना हुआ है। इस तरह मां की आस्था बहुत ज्यादा है। यह सारी जानकारी रिसर्च की गई है। भूल-चूक के लिए क्षमा-याचना। अब बात करते हैं मां के चारों ओर के दृश्य की।
500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है मंदिर
जैसा कि बताया गया कि मां का मंदिर 500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर पूरी तरह से प्रकृति की गोद में स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए थोड़ी सी चढ़ाई चढऩी पड़ती है। यहां दृशय बहुत ही विहंगम है। मंदिर के ठीक सामने कांगडा का ऐतिहासिक किला स्थापित है। मंदिर में पहुंचने पर असीम शांति का अनुभव होता है। इस मंदिर से सारा परिक्षेत्र नजर आता है। यूं कहिए की मंदिर में पहुंचने पर ऐसा लगता है जैसे हम प्रकृति की गोद में आ गए हों पक्षियों का चहचहाना एक अलग उल्लास भर देता है।
पंचभीष्म में उमड़ते हैं भक्त, खट्टे का उठाते हैं आनंद
कहीं-कहीं मोर की कूहक भी सुनाई देती है। यहां हर साल पंचभीष्म (गुप्त नवरात्र) जिन्हें स्थानीय भाषा में पंजभीखू कहा जाता है, में मेले लगते हैं। मेलों में आस्था का सैलाब उमड़ता है। सड़क से लेकर ऊपर तक भक्तों की कतार नजर आती है। इन्हीं मेलों में विभिन्न प्रकार की दुकानें सजती हैं। मगर इन मेलों में सबसे स्पैशल चीज यहां मिलने वाला खट्टा है,
जिसे स्थानीय भाषा में त्रुंज या दुडुंज कहते हैं। यहां वाहनों के नाम भी जयंती माता के नाम पर रखे गए हैं, जिनमें जयंती ट्रांसपोर्ट भी एक नाम है। मंदिर के ठीक नीचे एक नदी भी बहती है। कुल-मिलाकर यह आस्था का स्थान तो है ही, साथ में प्रकृति को करीब से निहारने का एक सुअवसर भी है।