माँ कुष्मांडा का वो रहस्यमय मंदिर जहां पिंडी से लगातार रिसता है पानी
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र [2] विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
माँ कुष्मांडा की आराधना नवरात्रे के चौथे दिन, चतुर्थी को किया जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी से अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से नामांकित किया गया है। जब ब्रह्माण्ड में केवल अंधकार ही अंधकार था और चरों तरफ कुछ भी नहीं था, तब इस देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इस माता को आदिस्वरूपा या आदिशक्ति भी कहा जाता है।
माँ का प्रसिद्द मंदिर
उत्तर प्रदेश के कानपूर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर, घाटमपुर तहसील में माँ कुष्मांडा का करीब एक हज़ार साल पुराना मंदिर है। हालांकि इस मंदिर की नींव 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन द्वारा रखी गई। इसमें एक चबूतरे में मां की मूर्ति लेटी हुई है। 1890 में घाटमपुर के कारोबारी चंदीदीन भुर्जी ने मंदिर का निर्माण करवाया था।
इस मंदिर में एक पिंड के रूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता रहता है। कहा जाता है जो भक्त इस जल को ग्रहण कर लेता है, उसका बड़े से बड़ा रोग दूर हो जाता है। हालांकि, आज तक इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है की आखिर इस पिंडी से पानी कैसे निकलता है। कई साइंटिस्ट आए और कई सालों का शोध किया, लेकिन मां के इस चमत्कार की खोज नहीं कर पाए।
मन जाता है की करीब एक हजार साल पहले एक घाटमपुर गांव जंगलों से घिरा था। इसी गांव का का ग्वाला कुढ़हा गाय चराने के लिए आता था। शाम के वक्त जब वह घर जाता और गाय से दूध निकालता तो गाय एक बूंद दूध नहीं देती। उसको शक हुआ और शाम को जब वह गाय को लेकर चलने लगा, तभी गाय के आंचल से दूध की धारा निकली। मां ने प्रकट होकर ग्वाला से कहा कि मैं माता सती का चौथा अंश हूं। ग्वाले ने यह बात पूरे गांव को बताई और उस जगह खुदाई की गई तो मां कुष्मांडा देवी की पिंडी निकली। गांववालों ने पिंडी की स्थापना वहीं करवा दी और मां की पिंडी से निकलने वाले जल को प्रसाद स्वरुप मानकर पीने लगे।
घाटमपुर में गिरा था सति का चौथा अंश
माता कुष्मांडा की कहानी शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था लेकिन शंकर भगवान को निमंत्रण नहीं दिया गया था। माता सती भगवान शंकर की मर्जी के खिलाफ उस यज्ञ में शामिल हो गईं। माता सती के पिता ने भगवान शंकर को भला-बुरा कहा था, जिससे आक्रोशित होकर माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। माता सती के अलग-अलग स्थानों में नौ अंश गिरे थे। माना जाता है कि चौथा अंश घाटमपुर में गिरा था। तब से ही यहां माता कुष्मांडा विराजमान हैं।
श्लोक :
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।