ज्ञान, वैराग्य व ध्यान की अधिष्ठात्री हैं माँ ब्रह्मचारिणी
"या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः "
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी ज्ञान, वैराग्य व ध्यान की देवी हैं। एक हाथ में कमंडल और दूसरे में रुद्राक्ष माला धारण करने वाली माँ करमाला , स्फटिक और ध्यान योग्य नवरात्र की दूसरी शक्ति स्वरूप है। माँ के इस स्वरूप का उद्भव ब्रह्मा जी के कमंडल द्वारा मन जाता है। मानसपुत्रों के सृष्टि विस्तार में विफल रहने पर ब्रम्हा जी ने इस शक्ति से सृष्टि का विस्तार किया जिस कारण स्त्री को सृष्टि का कारक माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने उनके पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। यही कारण है कि इन्हे ब्रह्मचारिणी कहा गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति विधि विधान से देवी के इस स्वरूप की पूजा अर्चना करते हैं, उनकी कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है और वो हमेशा उज्जवलता और ऐश्वर्य का सुख भोगते हैं।