सोलन में है एशिया का सबसे ऊँचा शिवालय
हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. यहाँ पर अनेकों देवी-देवताओं का वास है, लेकिन सोलन जिला के जटोली स्थित बना भगवान शिव का मंदिर सबसे अलग है. दक्षिण द्रविड़ शैली से बने इस मंदिर पर नक्काशी का अद्भुत और बेजोड़ नमूना है. यही वजह है कि शिव भक्तों और स्वामी परमहंस की महानता लोगों को हिमाचल के सोलन की ओर खींच लाती है. पहाड़ों की गोद में बसे स्वामी परमहंस की तपोस्थली और जटोली के इस शिवालय को एशिया में सबसे ऊंचे शिवालय का दर्जा दिया गया है. जटोली मंदिर के पीछे मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय यहां ठहरे थे. इसके बाद एक सिद्ध बाबा स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने यहां आकर तपस्या की. उनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण शुरू हुआ. मंदिर के कोने में स्वामी कृष्णानंद की गुफा है. यहां पर शिवलिंग स्थापित किया गया है. मंदिर का गुंबद 111 फुट ऊंचा है. हरियाणा से आए कारीगरों ने मंदिर पर नक्काशी के जरिए मंदिर की आभा को चार चांद लगा दिए हैं. मंदिर पर की गई नक्काशी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके निर्माण के लिए 33 साल का समय लग गया. 2013 में इसे दर्शनार्थ खोला गया था, उस दिन से मंदिर को देश ही नहीं दुनिया में अलग पहचान मिली है. सोलन से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में हर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है.
पाकिस्तान से आए थे स्वामी कृष्णा नंद परमहंस महाराज
जटोली मंदिर की शुरुआत वैसे 1946 में यानि आजादी से पहले ही हो गई थी, बताया जाता है कि श्रीश्री 1008 स्वामी कृष्णा नंद परमहंस महाराज यहा पाकिस्तान से भ्रमण करने आए थे. जंगल में परमहंस महाराज को तप के लिए यह जगह बेहतर लगी. वह दिनभर कुंड वाले स्थान पर बैठकर तप करते और रात को गुफा में जाकर सो जाते थे. अब जहा उनकी कुटिया मौजूद है वहां किसी समय गडरिये विश्राम के लिए रुकते थे. कुछ समय बाद उन्होंने यहां लाल झडा व नजदीक ही धूणा लगाया. लोगों को जब इसका पता चला तो वहा पहुंचने लगे. भगवान शिव की अराधना से महाराज परम हंस के पास भविष्यवाणी करने की दिव्य शक्ति थी. बताया जाता है की उस समय इस जगह पर पानी की कमी थी समस्या को समझते हुए स्वामी ने क्षेत्र में पानी के लिए तप किया और कुछ ही दिनों बाद वहा पानी की अटूट धारा बहने लगी.
आज भी मौजूद है चमत्कारी पानी का कुंड
कहा जाता है कि सोलन के लोगों को पानी की समस्या से जुझना पड़ा था. जिस देखते हुए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और त्रिशूल के प्रहार से जमीन से पानी निकाला. तब से लेकर आज तक जटोली में पानी की समस्या नहीं है. लोग इस पानी को चमत्कारी मानते हैं. मान्यता है कि इस जल में किसी भी बीमारी को ठीक करने के गुण हैं. आज भी जो लोग मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए आते है वह इस पवित्र जल का ग्रहण जरूर करते है.
लोग मानते है चार धाम
भक्तों ने अब जटोली मंदिर को ही अपनी चार धाम मान लिया है. यहा पहला धाम कुटिया, दूसरा धाम- सुखताल कुंड, तीसरा धाम-समाधि और फिर चौथा धाम शिवालय मंदिर को माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि कई लोग अब इन्हीं की यात्रा करके चार धाम स्वीकार करने लगे हैं. स्वामी परमहंस ने अपने तप के बल से जो जलकुंड तैयार किया है उसमे लोगों की अगाध आस्था है.
मंदिर बनाने के लिए लगा 39 साल का समय लगा
इस मंदिर को पूरी तरह तैयार होने में करीब 39 साल का समय लगा. करोड़ों रुपये की लागत से बने इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसका निर्माण देश-विदेश के श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान के पैसों से हुआ है. यही वजह है कि इसे बनने में तीन दशक से भी ज्यादा का समय लगा. इस मंदिर में हर तरफ विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं जबकि मंदिर के अंदर स्फटिक मणि शिवलिंग स्थापित है. इसके अलावा यहां भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं. वहीं, मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा एक विशाल सोने का कलश भी स्थापित है, जो इसे बेहद ही खास बना देता है.
जटोली मंदिर में स्फटिक शिवलिंग
मंदिर में स्फटिक शिवलिंग मौजूद है, यह मंदिर आम शिवलिंग से अलग है, जो कि दुनिया के कुछ ही मंदिरों में पाया जाता है. इस शिवलिंग की कीमत करीब 17 लाख है. इस स्फटिक शिवलिंग के मंदिर ने स्थापित होने के बाद मंदिर की सुंदरता में चार चाँद लगा दिए. हजारों की संख्या में लोग यहाँ इस शिवलिंग के दर्शन करने के लिए आते है.
धूमधाम से मनाया जाता है शिवरात्रि का पर्व
शिव मंदिर जटोली में शिवरात्रि का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दौरान मंदिर में जागरण किया जाता है जिसमे की दूर -दूर के लोग हाजरी भरने के लिए आते है. शिवरात्रि के अगले दिन मंदिर परिसर में विशाल भंडारे का भी आयोजन किया जाता है. इस भंडारे का सारा खर्च मंदिर कमेटी करती है. शिवरात्रि के दिन मंदिर में महादेव की पूजा करने के लिए दूर-दूर से भक्त जन पहुंचते है. इसके साथ ही हर रविवार को मंदिर में भंडारे का आयोजन किया जाता है.