केदारनाथ धाम की ये कथा, जब भूमि में समा गए थे भगवान शिव
केदारनाथ धाम को 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष माना गया है। केदारनाथ धाम का इतिहास काफी पुराना है। माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण पांडवों ने महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कराया था। केदारनाथ धाम का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। पुराणों के अनुसार केदारनाथ धाम को महिष यानि भैंसे का पिछला भाग है. मान्यता है कि सच्चे मन जो भी केदारनाथ का स्मरण करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। केदारनाथ धाम को भगवान शिव का आवास बताया गया है। केदारनाथ धाम का जिक्र 'स्कंद पुराण' में भी आता है। इसमें बताया गया है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से प्रश्न किया। जिसके उत्तर में भोलेनाथ ने बताया कि यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। भगवान शिव जी विस्तार से बताते हैं कि इस स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया था, तभी से यह स्थान उनके लिए आवास के समान है।
ऋषि ने की थी कठोर तपस्या
पुराण कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।
पांडव भ्रातृहत्या के पाप से होना चाहते थे मुक्त
महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। इसलिए भगवान शंकर अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे। पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी भैंसे पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।
भव्य है केदारनाथ मंदिर
केदारनाथ मंदिर 6 फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बनाया गया है। इसके बाहरी प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। इसकी दीवारें करीब 12 फुट मोटी हैं और यह मजबूत पत्थरों से बनाया गया है। यह बात आश्चर्य में डाल देती है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर किस तरह मंदिर का निर्माण किया गया होगा। बाबा केदार का ये धाम कात्युहरी शैली में बना है। वहीं इस मंदिर की छत लकड़ी की बनी हुई है और इसके शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। वहीं इस मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है। केदारनाथ धाम को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। माना जाता है कि इसी स्थान पर पांडवों ने भी भगवान शिव के एक मंदिर का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि इसके बाद इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने दसवीं ईसवी में करवाया।
6 माह तक जलता है दीपक
दीपावली महापर्व के दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य है की 6 माह तक दीपक निरंतर जलता रहता है।