हिमाचल के इस क्षेत्र में 500 वर्ष पुराना है ये नारायण का मंदिर जानिए पूरी कहानी
हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी नगर से 50 किमी. दूर सरकाघाट तहसील से 25 किमी. की दूरी पर पिंगला नामक स्थान पर भगवान लक्ष्मी नारायण के प्राचीन मंदिर भव्य और अद्वितीय शैली छटा बिखेरे हुए है। यह गुंबदीय शैली का भव्य मंदिर तथा भगवान नारायण विष्णु एवं माता लक्ष्मी तथा विष्णु वाहन गरुड़ की भव्य प्रतिमाएं निःसंदेह कला का अद्वितीय मूर्ति रूप है। कला पुरुषों को यह समझते हुए देर नहीं लगती कि इन मूर्तियों में शिप्लकार ने मनोयोग से अद्भुत सौंदर्य को स्थापित किया है। हिमाचल के असंख्य अद्भुत वैभवशाली स्मारकों की भांति लक्ष्मी नारायण मंदिर में भी कथानक की पृष्ठभूमि पांडवों से संबंधित है। कहते हैं कि पांडव अपने अज्ञातवास काल में भ्रमण करते हुए पिंगला पहुंचे। यहां विश्राम के समय महाराज युधिष्ठिर ने भगवान विष्णु के स्थल की स्थापना का संकल्प लिया और लक्ष्मी नारायण भगवान का मंदिर बनवाया। बाद में काल के अंतराल में यह मंदिर जीर्णशीर्ण अवस्था में पहुंच गया। मुगल सम्राट अकबर के राज्यकाल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। अकबर के दरबार में जब मंडी के महान पंडित गंगा राम की हत्या हुई, तब उसकी पत्नी गर्भवती थी। उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम थल्लु राय था। जब वह बड़ा हुआ तो उसे अपने पिता की हत्या के बारे में पता चला । वह राजा अकबर से मिला और अकबर ने उसे मुहमांगी संपत्ति दी। उसने लक्ष्मी नारयण मंदिर का जीर्णोद्धार किया। प्रतिवर्ष बैशाख को यहां लौहल का मेला लगता है। इसमें लकड़ी, मिट्टी और रूई द्वारा बनाए गए गुड्डा-गुड्डी जिन्हें लोग शिव पार्वती का रूप मानते हैं का विवाह रचाया जाता है। लौहला एक कन्या का नाम है, जो अनमेल वर से विवाह के कारण आत्महत्या कर गई थी। इसके प्रायश्चित में भाटों के परामर्श पर यह मेला प्रारंभ हुआ। अतः इस मेले को लौहला रा भाटका कहते हैं। इस विवाह में लग्न, वेदी, सुहाग, विदाई इत्यादि सभी वैवाहिक परंपराएं निभाई जाती हैं। दो वैशाख को गुड्डा-गुड्डी का मंदिर जलाशय में विसर्जन किया जाता है। इस विवाहोत्सव पर प्रीतीभोज का आयोजन होता है।