किताबी ज्ञान ही नहीं सामाजिक परिस्थितियों से भी अवगत करवाते हैं शिक्षक
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के मौके पर हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते हैं जो बिना किसी मोह के समाज को तराशने का काम करते हैं। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है। शिक्षकों की इसी महत्ता काे स्थान देने के लिए हमारे देश में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसके अलावा इस दिवस को मना कर डॉक्टर राधाकृष्णन के प्रति सम्मान भी व्यक्त किया जाता है।
शिक्षा के क्षेत्र में आज भारतीय महिलाओं की भागीदारी काफी अधिक है और इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। इसका कारण नौकरी की उच्च अकांक्षा और माता-पिता का समर्थन है। ऐतिहासिक रूप से भी महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में साहस और उत्साह से भाग लेती रही हैं। भारत के पौराणिक ग्रंथों में उच्च शिक्षित महिलाओं का बृहद उल्लेख आता है। भारत में शिक्षा की देवी के रूप में एक महिला ही पूजनीय मानी जाती है। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया गया ताकि वे अपनी संतान को शिक्षित कर सकें और राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग दे सकें।
सुप्रसिद्ध कवित्री और भारत के सर्वोत्तम राष्ट्रीय नेताओं में से एक कुशाग्र बुद्धि, युवा वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत रही सरोजिनी नायडू ने सन 1906 में महिला शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए एक सभा को संबोधित किया। उसके बाद काफी महिलाओं ने महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में अपनी विशेष भूमिका निभाई। रमाबाई रानाडे, एनी बेसेंट, रामेश्वरी नेहरू राजकुमारी अमृत कौर, सुचेता कृपलानी, उषा मेहता, वैश्णवी आदि सशक्त महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं की शिक्षा विशेष रूप से उच्च शिक्षा की नई शुरुआत हुई। आज महिलाओं की भूमिका ने स्कूल, महाविद्यालयों कार्यालयों, पुलिस स्टेशनों, अस्पतालो, होटलों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों का लिंग परिदृश्य बदल दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने वाली उन महिलाओं का योगदान अमूल्य रहा जिन्होंने इस क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया।
"सावित्रीबाई फुले" काे भारत की प्रथम महिला शिक्षक कहा जाता है। सन 1848 में उन्होंने "पुणे" में बालिका विद्यालय की स्थापना की जिसमें वह खुद शिक्षिका बनी। इस कार्य के लिए उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और जाति व्यवस्था में निहित संकीर्ण विचारों का भी सामना किया। जब वह लड़कियों को पढ़ाने जाती तो उन पर गोबर, पत्थर आदि फेंके जाते लेकिन वह अपने निर्णय पर अटल रही।
कादंबिनी गांगुली भारत की पहली महिला स्नातक थी, वह देश की पहली महिला चिकित्सक भी थी, उन्होंने कोयला खदानों में काम करने वाली महिलाओं की स्थिति को सुधारने का काफी काम किया।
दुर्गाबाई देशमुख एक स्वतंत्रता सेनानी थी जिन्होंने महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलते हुए स्कूलों की स्थापना की और उनमें महिलाओं को चरखा चलाने और कातने की ट्रेनिंग दी। उन्होंने "आंध्र महिला सभा "की स्थापना की।
महादेवी वर्मा हिंदी भाषा की प्रख्यात कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद जिन्होंने मात्र 7 वर्ष की आयु में कविता लिखना शुरू किया। इलाहाबाद के "प्रयाग महिला विद्यापीठ "में बतौर प्रिंसिपल और वाइस चांसलर के तौर पर काम किया।
महान समाज सुधारक तथा हैदराबाद दक्कन की पहली महिला संपादक जिन्होंने स्त्रियों के लिए "अन -निशा "और "जेब -उन -निसा" पत्रिकाएं निकाली और संपादन किया। हैदराबाद में लड़कियों के लिए "मदरसा सफदरिया" जो आज भी "सफदरिया हाई स्कूल" के नाम से चल रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी आज विस्तृत रूप ले चुकी है। इन्हीं शिक्षाविदों, शिक्षिकाओं महान विभूतियों के अमूल्य योगदान से भारतीय समाज की दिशा व दशा दोनों में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। इन सभी विभूतियों को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।
गुरु ज्ञान का सागर है,
संपूर्ण जगत को आलोकित करता है।
विद्या रूपी धन प्रदान कर मानव जीवन सुख से भरता है।
मिटाए तम प्रकाश दिखाए सही गलत की पहचान कराता है।
शत शत प्रणाम उस गुरु को जो खुशबू ज्ञान की जीव में भर जाता है।
-शीला सिंह
-अध्यक्ष महिला साहित्यकार संस्था, जिला बिलासपुर इकाई।