उपचुनाव से पहले वन टाइम सेटलमेंट नहीं दिया तो होगा मिशन डिलीट
करुणामूलक आश्रितों को उपचुनाव से पहले वन टाइम सेटलमेंट नहीं दिया, तो जयराम सरकार के खिलाफ मिशन डिलीट शुरू होगा। तीन उपचुनाव की दहलीज पर कड़ी जयराम सरकार को करुणामूलक संघ ने दो टूक सन्देश दिया है। संघ के इरादे साफ़ है, अब आश्वासन नहीं अब सरकार एक्शन ले, करुणामूलक आश्रितों की अनदेखी समाप्त करें, वरना खामियाजा भुगतने को तैयार रहे। करुणामूलक संघ का कहना है कि चुनाव के दौरान करुणामूलक मुद्दा उठाया जाता है फिर जैसे ही चुनाव हो जाते है ये मुद्दा फिर दबा दिया जाता है। करुणामूलक आश्रितों को चुनाव के समय सिर्फ वोट बैंक का जरिया समझा जाता है। पर अब आश्रितों की मांगों को अनदेखा न किया जाए वरना उपचुनाव व 2022 के चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। बता दें कि करुणामूलक संघ लम्बे समय से करुणामूलक नौकरी बहाली के लिए संघर्ष कर रहा है। न जाने कितने धरने, कितने प्रदर्शन, कितने मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर इन लोगों ने काटे, यहां तक की आमरण अनशन भी किया मगर हाथ आया सिर्फ और सिर्फ आश्वासन। इन्हें कांग्रेस ने भी ठगा और भाजपा ने भी, जब सत्ता में होते है तो जख्म देते है, विपक्ष में आते है तो मरहम लगाते है। ऐसे में ये लोग जाएं कहां ?
करूणामूलक संघ का मानना है कि राज्य सरकार तकरीबन 15 साल से करुणामूलक आश्रितों को अनदेखा करती आ रही है। प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार का कहना है कि करुणामूलक आश्रित लम्बे समय से नौकरी का इंतज़ार कर रहे है, दिन प्रतिदिन आश्रितों की उम्र निकलने के कारण वे इस श्रेणी से बाहर होते जा रहे है, लेकिन सरकार द्वारा उन्हें अनदेखा किया जा रहा है। विभिन्न विभागों द्वारा स्क्रीनिंग कमेटी बिठाकर स्क्रीनिंग तो हो गई है, पर अभी तक सरकार द्वारा नियुक्तियां नहीं दी जा रही है। जब भी करुणामूलक नौकरी बहाली का मुद्दा उठता है, तो थोड़ी बहुत हलचल होने के बाद मुद्दे को दबा दिया जाता है। अजय कुमार का कहना है की कोरोना महामारी के इस दौर में इन परिवारों को बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। आर्थिक स्थिति डगमगाने के कारण इन परिवारों को महामारी के इस दौर में खाने पीने तक के लाले पड़ गए है।
साढ़े चार हज़ार लोग नहीं, साढ़े चार हज़ार परिवार
अब करुणामूलक संघ आर- पार की लड़ाई के मूड में है। संघ का कहना है कि ये मसला सिर्फ चार हज़ार लोगों का नहीं है बल्कि चार हज़ार परिवारों का है। अब जो भी राजनीतिक दल करुणामूलक नौकरियां बहाल करने के पक्ष में होगा, 2022 के चुनाव में सत्ता भी वहीं हासिल करेगा। इनकी मांग है कि करुणामूलक आश्रितों को उपचुनाव से पहले अथवा आगामी कैबिनेट में वन टाइम सेटलमेंट देकर एक साथ नियुक्ति दी जाए, वरना करुणामूलक परिवार मिशन डिलीट में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
ये चाहता है करूणामूलक संघ
- समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के मामले जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत एक साथ नियुक्ति दी जाएं।
- करुणामूलक आधार पर नौकरी की पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये प्रति सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए।
- योग्यता के अनुसार आश्रितों को बिना शर्त के सभी श्रेणियों में नौकरी दी जाएं।
- 5% कोटा शर्त को हटा दिया जाए ताकि विभाग अपने तौर पर नियुक्ति दे सके।
- महिला आवेदकों की शादी के बाद उन्हें पॉलिसी से बाहर न किया जाए।
- जिन आवेदकों की आयु निकल गई है उन्हें वन टाइम सेटलमेंट दिया जाए।
संशोधित नीति जारी की, मगर नौकरियां नहीं दी
ऐसा नहीं है कि हिमाचल सरकार ने कभी करुणामूलक नौकरियों पर गौर ही न किया हो। साल 2019 में हिमाचल सरकार ने करुणामूलक नौकरियों बारे एक संशोधित नीति जारी की थी, जिसके तहत आय सीमा में बढ़ोतरी और पात्रता के लिए आयु सीमा बढ़ाई गई थी। परन्तु ऐसी नीति का क्या लाभ जिसमें नौकरियां देने का वादा तो हो मगर नौकरियां मिले ही ना।