कर्मचारी लहर : फिर एक बार अधूरे वादे पूरे होने की हसरत
तुझ को देखा तेरे वादे देखे, ऊँची दीवार के लम्बे साए मानसून सत्र, 15 अगस्त और टकटकी लगाए हुए कर्मचारी। इस पर आगामी चार उपचुनाव। अधूरे वादे पूरे होने की हसरत में हिमाचल का कर्मचारी फिर आस लगाए बैठा है। कर्मचारियों को उम्मीद है कि इस बार उनकी मांगें सुनी भी जाएगी और इन्हें पूरा भी किया जाएगा। जो 15 अप्रैल को न हो पाया वो शायद अब 15 अगस्त को हो जाए। पर एक ट्विस्ट भी है, वो है आचार सहिंता। आगामी कुछ दिनों में कर्मचारी उम्मीदों के इस बोझ को सरकार किस तरह मैनेज करेगी, ये देखना रोचक होने वाला है। कर्मचारियों के लिए समीकरण अब इसलिए भी बदल गए है क्योंकि साढ़े तीन साल बाद ही सही मगर जयराम सरकार ने अपने शासनकाल में अश्वनी गुट के हिमाचल प्रदेश कर्मचारी महासंघ को मान्यता दे दी है। लंबे इंतजार के बाद सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक के लिए अश्वनी शर्मा के नेतृत्व वाले महासंघ को बुलाया गया है।
हालांकि, प्रदेश सरकार ने अभी बैठक की तारीख तय नहीं की है। महासंघ ने कर्मचारियों के मसलों को लेकर सरकार को ज्ञापन भेजने भी शुरू कर दिए है। महासंघ को मान्यता मिलने का अर्थ है कि अब हिमाचल के कर्मचारियों की आवाज़ और ज्यादा बुलंद हो जाएगी। सरकार तक मुद्दे पहुंचेंगे भी और पूरे होने के आसार भी प्रबल होंगे। पर फिलवक्त महासंघ के लिए सबसे बड़ी चुनौती तो सभी कर्मचारियों को एकजुट रखना होगा, क्योंकि भले ही सरकार ने अश्विनी गुट को मान्यता दे दी हो मगर दो अन्य गुट ( विनोद गुट और एन.आर ठाकुर ) अब भी एक्टिव है और सरकार के इस निर्णय से असंतुष्ट भी। जाहिर सी बात है अब अश्वनी गुट पर दबाव है कि वे कर्मचारी मांगों को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव बनाये, ताकि उस पर कर्मचारियों का भरोसा कायम रह सके। मान्यता प्राप्त महासंघ के अनुसार संशोधन वेतनमान जारी करने, विभागों में रिक्त पदों को भरने की मांग प्रमुख है। हिमाचल दिवस पर तो सरकार कर्मचारी वर्ग की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी थी पर कर्मचारी आस में है कि अब उनकी मांगें पूरी होगी।
सत्ता तो मिली पर अनुबंध काल नहीं घटाया
2017 विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने सुजानपुर में चुनावी वादा किया था कि उनके सत्ता में आते ही वे अनुबंध काल को घटा कर तीन से दो वर्ष कर देंगे। समय गुजरता गया और आज साढ़े तीन वर्ष बाद भी ये वादा महज वादा ही है। अब तक सरकार इस वादे पर खरी नहीं उतरी। सत्ता में आने के बाद भाजपा भले ही अपना ये वादा भूल गई है पर हताश कर्मचारी अब भी इंतज़ार में है कि आज नहीं तो कल सरकार अपना चुनावी वादा पूरा करेगी। हिमाचल में करीब 19,000 अनुबंध कर्मचारी है जो लगातार सरकार से गुहार लगा रहे है की उनकी ये मांग पूरी की जाए। इस मांग को लगातार प्रमुखता से उठाने वाले संगठन हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अरुण भारद्वाज का कहना है कि अनुबंध पर नियुक्त कर्मचारियों की ये मांग पूरी तरह जायज़ है। अरुण भारद्वाज का कहना है कि सरकार द्वारा अनुबंध कर्मचारियों को हिमाचल के दूरदराज़ क्षेत्रों में नियुक्त किया जाता है। साथ ही इन्हें वेतन भी पर्याप्त नहीं दिया जाता और न ही सरकारी नौकरी के लाभ पूरी तरह मिलते है, इसलिए अनुबंध कार्यकाल को कम से कम किया जाना चाहिए। यहां खास बात तो यह है कि जिन कर्मचारियों से ये वादा किया गया था वो कर्मचारी तो अपना 3 वर्ष का अनुबंध काल पूरा कर भी चुके है। बता दें कि ये मुद्दा सिर्फ एक संगठन का नहीं है। हिमाचल प्रदेश में मौजूद लगभग सभी कर्मचारी संगठन इसके पक्ष में है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश सचिवालय सेवा कर्मचारी एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव शर्मा और महासचिव कमल कृष्ण शर्मा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मिला है। इस मुलाकात के दौरान भी अनुबंध काल के इस मुद्दे को सरकार के समक्ष रखा गया है।
नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता का मुद्दा
2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अनुबंध काल घटाने के साथ - साथ एक और वादा किया था l वादा था कि भाजपा के सत्ता में आते ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया जाएगा और अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करने हेतु कार्य किया जाएगाl ये वादा भी अब तक अधूरा है। अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन पिछले कई सालों से ये मांग कर रहा है की विभिन्न विभागों में भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के अंतर्गत अनुबंध पर नियुक्त होने के बाद नियमित हुए कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए l कई नेताओं, मंत्रियों और मुख्यमंत्री के समक्ष भी दर्जनों बार वरिष्ठता की मांग को उठाया गया, लेकिन सिवाय आश्वासन के अब तक कुछ नहीं मिला है। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि कुछ अनुबंध कर्मचारी 8 वर्ष के बाद नियमित हुए, कुछ 6 वर्ष के बाद, कुछ 5 वर्ष के बाद और वर्तमान में अनुबंध कर्मचारी 3 वर्ष के बाद नियमित हो रहे हैं और आने वाले समय में लगता है कि अनुबंध काल 2 वर्ष कर दिया जाए और कुछ वर्षों के बाद शायद समाप्त हो जाए। सरकार द्वारा इन कर्मचारियों के अनुबंध काल को इनके कुल सेवा काल में नहीं गिना जाता जिसके कारण इनके प्रमोशन में काफी विलम्ब हो जाता है। सरकार की इस ढुलमुल व्यवस्था से कर्मचारियों को वित्तीय घाटा तो हो ही रहा है साथ ही उनके मान सम्मान पर भी आंच आ रही है। संगठन के अनुसार सरकार की ये नीति कर्मचारियों के मौलिक और समानता के अधिकार का हनन है। कर्मचारियों को अलग अलग अन्तरालों में नियमित करने से असमानता फैली है। सरकार को नियुक्ति की तिथि से वरिष्ठता प्रदान करके इस असमानता को तुरंत खत्म करना चाहिए। हिमाचल अनुबंध नियमित कर्मचारी संगठन का कहना है कि उन्हें सरकार से उम्मीद है कि जल्द उनकी ये मांग सरकार ज़रूर पूरा करेगी।
कब बहाल होगी करुणामूलक नौकरियां
हिमाचल में कर्मचारियों की मांगे तो तूल पकड़ ही रही है, साथ ही करुणामूलक आश्रित भी सरकार को घेरने में पीछे नहीं है। हिमाचल प्रदेश में पिछले करीब 15 सालों से लगभग 4500 करुणामूलक आश्रित नौकरी के इंतज़ार में है जिनकी अब तक सरकार ने सुध नहीं ली। इन आश्रितों का कहना है की वे अब तक न जाने कितने धरने, कितने प्रदर्शन, कितने मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर काट चुके है, आमरण अनशन भी किया, मगर आश्वासन के सिवा और कुछ भी नहीं मिला है। करूणामूलक संघ लम्बे समय से करुणामूलक नौकरी बहाली के लिए संघर्षरत है और संघ का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में करुणामूलक नौकरी के लगभग 4500 मामले अनेक विभागों, बोर्डों व निगमों में लंबित पड़े हुए हैं। इन परिवारों के लालन पालन के लाले पड़ गए हैं। ऐसा नहीं है कि हिमाचल सरकार ने कभी करुणामूलक नौकरियों पर गौर ही न किया हो। साल 2019 में हिमाचल सरकार ने करुणामूलक नौकरियों बारे एक संशोधित नीति जारी की थी, जिसके तहत आय सीमा में बढ़ोतरी और पात्रता के लिए आयु सीमा बढ़ाई गई थी, परन्तु अब तक नौकरियां नहीं मिली। करुणामूलक संघ की मांग है कि समस्त विभागों, बोर्डों, निगमों में लंबित पड़े करुणामूलक आधार पर दी जाने वाली नौकरियों के मामले जो 7/03/2019 की पॉलिसी में आ रहे हैं, उनको वन टाइम सेटलमेंट के तहत एक साथ नियुक्तियां दी जाएं। इसके अलावा करुणामूलक आधार पर नौकरी की पॉलिसी में संशोधन किया जाए व उसमें 62500 रुपये प्रति सदस्य सालाना आय सीमा शर्त को पूर्ण रूप से हटा दिया जाए।
पुरानी पेंशन बहाली की मांग
हिमाचल प्रदेश कर्मचारियों के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक है नई पेंशन का मुद्दा। कर्मचारी वर्ग नई पेंशन स्कीम नहीं चाहता, इस बात से सभी भली भांति परिचित है। नए पेंशन सिस्टम को कर्मचारी अपने मौलिक अधिकारों का हनन मानते है। नए पेंशन सिस्टम में कई विसंगतियां है जिससे कर्मचारी असंतुष्ट है। आए दिन कर्मचारी प्रदेश सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते है, इसके साथ ही केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करने हेतु भी आवाज़ उठाई जाती है। दरअसल, केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना में यह प्रावधान है कि अगर नौकरी के दौरान किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या वो कर्मचारी दिव्यांग हो जाता है तो उसके परिवार को पुरानी पेंशन योजना के तहत मिलने वाले लाभ प्रदान किए जाते हैं। यानी उक्त कर्मचारी के परिवार को पेंशन दी जाती है। चूँकि ये अधिसूचना हिमाचल प्रदेश में लागू नहीं की गई है तो ऐसे में यदि हिमाचल के किसी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो जाती है या किसी दुर्घटना में वे दिव्यांग हो जाते है तो उनके परिवार को कोई भी पेंशन नहीं दी जाती। नए पेंशन सिस्टम के लागू होने के बाद से हिमाचल के कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं करते है। हिमाचल प्रदेश न्यू पेंशन स्कीम महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर ने कहा कि अभी तक संगठन ने बहुत सारे धरने-प्रदर्शन, अनशन तथा रैलियां इत्यादि के माध्यम से सरकार तक अपनी बात को रखा है लेकिन फिर भी कर्मचारियों को निराशा हाथ लगी है l हर एक कर्मचारी चाहता है कि पुरानी पेंशन बहाल हो l उन्होंने कहा कि कर्मचारी एक पढ़ा-लिखा वर्ग है जो अपनी मांगों और कर्तव्य को सही तरीके से समझता है ल
विभाग घूमती फाइल और निराश कला अध्यापक
कई सालों से बेरोजगार कला अध्यापक भी लम्बे समय से नौकरी की आस में हैं। कुछ दिन पहले शिक्षा विभाग ने 500 कला अध्यापकों के पदों को भरने हेतु एक फाइल बनाकर वित्त विभाग के पास भेजी थी लेकिन वित्त विभाग ने कुछ कारणवश वह फाइल दोबारा से शिक्षा विभाग को भेज दी थी। उसके बाद शिक्षा विभाग ने फिर से या फाइल वित्त विभाग के पास भेजी लेकिन तब से मामला वित्त विभाग के पास लंबित है। अब बेरोजगार कला अध्यापक आर -पार की लड़ाई का इरादा कर चुके है। बेरोजगार कला अध्यापक संघ का कहना है कि सरकार के आश्वासनों से तंग आकर अब इनके पास आंदोलन के अलावा कोई चारा नहीं है। इनका कहना है कि यदि 15 अगस्त को इनकी मांगें पूरी नहीं हुई तो उग्र आंदोलन होगा।