कर्मचारी राजनीति: अश्वनी गुट पे करम, बाकी दो गुटों पे सितम
हिमाचल प्रदेश में कर्मचारियों के बीच मान्यता का महासंग्राम अब भी जारी है। हिमाचल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ में वर्चस्व को लेकर छिड़ी जंग थमने का नाम नहीं ले रही। भले ही सरकार ने अश्वनी गुट के अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को मान्यता दे दी हो मगर विनोद गुट सरकार के इस फैसले को मानने के लिए अब भी तैयार नहीं है। विनोद कुमार लगातार अश्वनी ठाकुर को सरकार द्वारा दी गई मान्यता पर सवाल उठा रहे है। वे इस मसले पर सरकार को नोटिस भी थमा चुके है। यह नोटिस मुख्य सचिव और सचिव कार्मिक को दिया गया है। विनोद का कहना है की अगर 21 दिनों के अंदर सरकार ने मान्यता देने का फैसला नहीं बदला तो कर्मचारी सड़कों पर उतरेंगे। राज्य सचिवालय के बाहर धरना प्रदर्शन करेंगे और सरकार का घेराव होगा। बता दें की कर्मचारियों की ये जंग काफी पुरानी है। कुछ साल पहले हिमाचल अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ तीन गुटों में बंट गया था। एनआर गुट, अश्वनी गुट और विनोद कुमार का गुट।
हर एक ने अपने-अपने स्तर पर कार्यकारिणी का गठन किया और अपने संगठन बनाए। इन गुटों में वर्चस्व को लेकर अक्सर तकरार होती रही। अश्वनी ठाकुर को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का करीबी माना जाता रहा और अंत में मान्यता भी उन्ही के गुट को मिली। हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने शासनकाल के तीन साल बाद आखिर अश्वनी गुट के हिमाचल प्रदेश कर्मचारी महासंघ को मान्यता दी और पत्र भेजकर संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक के लिए अश्वनी ठाकुर के नेतृत्व वाले महासंघ को बुला लिया है। उधर, सरकार के इस फैसले पर बाकि दो गुटों में भारी निराशा है। हालांकि एनआर ठाकुर अब रिटायर हो चुके है और कर्मचारी राजनीति से ज़्यादा मंडी लोकसभा उपचुनाव में रूचि दिखा रहे है। परन्तु विनोद गुट पूरी तरह से आक्रामक नज़र आ रहा है। उनका कहना है कि सरकार अपने फायदे के लिए कर्मचारी को गुटों में बांट रही है और काफी हद्द तक इसमें सफल भी रही है। जयराम सरकार के कई नेताओं ने कर्मचारी प्रतिनिधियों को कठपुतली बनाकर रखा है।
मुख्यमंत्री ने अपने क्षेत्र के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया है, वे चाहते है कि जिस क्षेत्र के वे खुद है उसी क्षेत्र का अध्यक्ष भी हो ताकि कर्मचारियों की लगाम उनके हाथ में रहे, लेकिन ऐसा करना गलत है। उन्होंने कहा कि मान्यता देने के सवाल पर प्रदेश के पौने तीन लाख कर्मचारी सरकार से अंदर खाते नाराज चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि गुट पहले भी होते थे लेकिन सरकार सभी को साथ लेकर सर्वसम्मति बनाने की कोशिश करती थी, लेकिन अब की बारी ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों की मांगे जस की तस है उन्होंने आशंका जताई कि महासंघ को मान्यता देने के नाम पर नए वेतनमान आयोग की सिफारिशों को डिलिंक करने की कोशिश की जा रही है। उधर, अश्वनी ठाकुर पर भी अब कर्मचारी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव है। नतीजन मान्यता मिलते ही वे कर्मचारी समस्याएं हल करने में व्यस्त हो गए है। विधानसभा सत्र के दौरान भी वे करुणामूलक संघ से मिले और उनको समर्थन दिया। उनके अनुसार कर्मचारियों के लंबित मसले जैसे की संशोधन वेतनमान जारी करवाना, विभागों में रिक्त पदों को भरने की मांग प्रमुख है।