होमगार्ड जवानों को नहीं मिला कई सालों से हक
करीब 6 दशक के लगातार संघर्ष के बावजूद आज तक प्रदेश के होमगार्ड जवानों को उनका हक़ नहीं मिल पाया है। पुलिस की तर्ज पर गृहरक्षक कानून व्यवस्था बनाए रखने की ड्यूटी निभाते हैं, वर्दी भी खाकी पहनते है, ट्रेनिंग भी उतनी ही कठोर होती है, मगर सरकारी कर्मचारी होने के नाते इन्हें सुविधाएं तो छोड़िए स्थाई रोज़गार भी नहीं मिलता। होमगार्ड जवानों को न तो सरकारी कर्मचारी होने का सम्मान मिल पाया है और न ही इनके लिए कोई ठोस नीति बनाई गई है। गृहरक्षकों ने अपने हक की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। इसका लाभ यह हुआ कि उनका वेतन बेहतर हो गया मगर ये अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं। सरकार आज तक इनके लिए नियमितीकरण की नीति तैयार नहीं कर पाई है। प्रदेश सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हर वर्ग को सहायता पहुंचाने की कोशिश में है। चुनाव के लिहाज़ से महत्वपूर्ण माने जाने वाले कर्मचारी फैक्टर को साधने के पूरे प्रयास किए जा रहे है। ऋण ले लेकर कर्मचारियों को खुश किया जा रहा है, मगर होमगार्ड जवानों का कहना है कि एक उनका वर्ग ही ऐसा है, जिसकी अब तक अनदेखी की गई है। होमगार्ड एसोसिएशन ने एक बार फिर सरकार से होमगार्ड के लिए स्थायी नीति बनाने की गुहार लगाई है। एसोसिएशन ने राज्य हाल ही में स्तरीय बैठक का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता एसोसिएशन अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा ने की और गृहरक्षकों को उनका हक़ दिलाने के लिए रणनीति बनाई।
हिमाचल होमगार्ड एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष जोगिंद्र सिंह चौहडिय़ा ने कहा कि प्रदेश में एक-दो विधायकों को छोडकऱ किसी भी विधायक व मंत्री ने होमगार्ड जवानों की बात आज तक नही सुनी है। उन्होंने कहा कि 58 वर्षों से होमगार्ड जवान सरकार से होमगार्ड जवानों के लिए अन्य विभागों के कर्मचारियों की तरह ठोस नीति बनाने व 12 माह का स्थायी रोजगार देने की मांग कर रहे हैं, मगर सरकार उनकी मांग को नजरअंदाज कर रही है। होमगार्ड जवान सभी विधायकों से लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक को मांगपत्र सौंप चुके है, मगर आज तक किसी ने उनकी नहीं सुनी। जोगिंद्र सिंह ने बताया की विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी महज नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री व चंबा सदर हलके के विधायक पवन नैय्यर ने होमगार्ड जवानों की बात की, जबकि किसी अन्य विधायक व मंत्री ने होमगार्ड जवानों की मांग नहीं उठाई। जोगिंद्र सिंह ने बताया की इतना ही नहीं कोरोना संकट में सेवाएं देने के लिए विभिन्न विभागों के कर्मचारियों की सरकार द्वारा खूब प्रशंसा की गई मगर होमगार्ड जवानों का कोई नाम तक नहीं लिया गया । महिला सशक्तिकरण के नारे तो बहुत दिए जा रहे हैं परंतु अस्पतालों में तैनात की गई महिला होमगार्ड जवानों की सेवाएं अब अस्पतालों में खत्म कर दी गई हैं। होमगार्ड जवानों की ठेका प्रथा के अनुरूप सेवाएं लेते हुए कभी होमगार्ड जवानों को पुलिस, कभी वन विभाग तो कभी अन्य विभागों के साथ अटैच किए जाने के बाद संबंधित विभागों का काम पूरा हो जाने के बाद घर पर बिठा दिया जाता है। स्थायी रोजगार न होने व ठोस नीति न होने के कारण होमगार्ड जवानों सहित उनके परिवारों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। सेवानिवृत्ति के बाद खाली हाथ घरों को लौटने पर होमगार्ड जवानों को दिहाड़ी मजदूरी करके परिवारों का भरण पोषण करना पड़ता है। लिहाजा सरकार प्रदेश में सेवारत होमगार्ड जवानों से न्याय करते हुए उन्हें जल्द 12 माह का स्थायी रोजगार दे। वहीं होमगार्ड जवानों के लिए ठोस नीति बनाए।
मोरारजी देसाई के न्रेतत्व में हुई थी स्थापना
गृह रक्षक को मूल रूप से 1946 में बॉम्बे प्रांत में बनाया गया था। किसी भी अप्रिय स्थिति में नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सेना, नौसेना, वायु सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के अलावा, जुड़वां स्वैच्छिक संगठन-नागरिक सुरक्षा और गृह रक्षक-को बनाया गया था। इसलिए, हर साल 6 दिसंबर को पूरे देश में संगठन के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। उस दिन 1946 में, बॉम्बे प्रांत में हो रहे नागरिक विकारों और सांप्रदायिक दंगों की उथल-पुथल के दौरान पुलिस के सहायक के रूप में प्रशासन की सहायता के लिए नागरिक स्वैच्छिक बल के रूप में, स्व. पुर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के न्रेतत्व में गृह रक्षक टुकड़ी की स्थापना की गई थी।
कभी भी छिन्न जाता है रोज़गार
गृहरक्षकों की मांगों को सरकार तक पहुँचाने के लिए गृहरक्षक संगठन की स्थापना छह दिसंबर 1962 को हुई थी। तब से लेकर गृहरक्षक पुलिस बल के साथ सहयोग के अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं के समय बचाव कार्यो में योगदान दे रहे हैं। मगर अब तक इनकी समस्याओं का हल नहीं हो पाया है। दरअसल गृहरक्षकों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं है जिसके चलते इनके रोज़गार की कोई तय अवधि नहीं होती, समय और ज़रूरत के हिसाब से इनकी सेवाएं ली जाती है। गृहरक्षकों को कई बार सेवाओं में भी ब्रेक दी जाती है, जिसके बाद इन्हें घर पर बैठना पड़ता है। अगर ड्यूटी नहीं लगी तो फिर वेतन भी नहीं मिल पाता है। गृहरक्षक थानों व चौकियों से लेकर कई विभागों में कानून व्यवस्था की सेवाएं दे रहे हैं। इनमें राष्ट्रपति आवास, हाईकोर्ट, राजभवन, जेलें, विजिलेंस, सीआइडी, शिक्षा विभाग, मंदिर, एफसीआइ, स्वास्थ्य संस्थान, ट्रेजरी, उपायुक्त कार्यालय, पर्यटन आदि विभाग शामिल हैं। प्रदेश से बाहर के राज्यों में भी इनकी चुनाव में ड्यूटी लगाई जाती है मगर सब सिर्फ ज़रूरत के हिसाब से। गृहरक्षकों ने हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी मगर अब तक कुछ हल नहीं निकला।
सेवानिवृति के बाद बिगड़ती है स्थिति
सेवानिवृत्ति के बाद गृहरक्षकों की हालत और बदतर हो जाती है। इन्हें सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी कर्मचारियों की तर्ज पर अन्य वित्तीय लाभ और पेंशन नहीं मिलती। इन्हें पेंशन सिर्फ मृत्यु की स्थिति में मिलती है। यदि अपनी सेवाओं के दौरान किसी गृहरक्षक की मृत्यु हो जाए तो उसके परिवार को पेंशन दी जाती है, पर कोई गृहरक्षक सही सलामत सेवानिवृत होता है तो उसके लिए पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है। इसके अतिरिक्त एक भी अवकाश नहीं है। भविष्य निधि, चिकित्सा प्रतिपूर्ति, हाउस लोन जैसे कई सुविधाएं उन्हें नहीं दी जाती है। जनजातीय क्षेत्रों में कार्यरत एक आईएएस अधिकारी से लेकर मनरेगा मजदूर को जनजातीय भत्ता मिलता है, लेकिन होमगार्ड जवान इससे महरूम है। सरकारी कर्मचारी की अन्य कोई सुविधाएं भी इन्हें नहीं मिल पाती ज़ाहिर है की ऐसी परिस्थितिओं में परिवार का भरण पोषण मुश्किल हो जाता है।
ये है मुख्य मांग
गृहरक्षकों की प्रमुख मांग है कि सरकार उनके लिए नियमितीकरण की नीति बनाए। पंजाब व हरियाणा की तरह वेतन देने की व्यवस्था की जाए। इन्हें संशोधित वेतनमान से वंचित रखा गया है। गृहरक्षकों को 1900 रुपये ग्रेड पे जबकि पुलिस कर्मियों की ग्रेड पे 3200 रुपये है, इन विसंगतियों को भी ठीक किया जाए। ड्यूटी के दौरान होमगार्ड जवान की मौत हो जाने पर पंजाब की तर्ज पर होमगार्ड जवान के परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए।