बात बढ़ते -बढ़ते कोर्ट तक न पहुंच जाए
राजकीय अध्यापक संघ और प्रदेश सरकार आमने - सामने
एक मशवरा और हंगामा बरप गया। एक कर्मचारी संगठन ने सरकार को एक सुझाव दिया या यूँ कहे अपनी राय रखी और सरकार ने फरमान ज़ारी कर दिया। जो हुआ उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। एक ब्यान ने सरकार को ऐसे आहत किया कि बात चेतावनी तक पहुँच गई। कौन सही, कौन गलत ये विश्लेषण का विषय है, लेकिन फिलवक्त सरकार और शिक्षक संगठन आमने - सामने है। बात बढ़ती दिख रही है और एक ब्यान से शुरू हुआ मामला कोर्ट तक भी पहुंच सकता है।दरअसल, कुछ समय पहले हिमाचल प्रदेश राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा हिमाचल सरकार के परीक्षाएं न करवाने के फैसले पर एक ब्यान जारी किया गया था, जिसमें वे संगठन की ओर से प्रदेश में परीक्षाएं करवाने की मांग कर रहे थे। इस ब्यान में सवाल किए गया था कि परीक्षाएं न करवाने से बच्चों की पढाई में जो नुक्सान हो रहा है उसकी भरपाई आखिर कौन करेगा। बयान सामने आते ही सरकार ने संज्ञान लिया और संगठन के तीन पदाधिकारियों को नोटिस थमा दिए। फरमान जारी किया गया की यदि हिमाचल प्रदेश सरकार के निर्णयों को लेकर अध्यापक संघों या कर्मचारियों ने विरोधाभासी बयान दिया तो उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। पत्र में कहा गया कि प्राय: यह देखा जा रहा है कि अध्यापक संघ और कर्मचारी समाचार पत्रों या सोशल मीडिया के माध्यम से खुले तौर पर सरकार के फैसलों पर विरोधाभासी बयान दे रहे हैं जोकि सरकारी कर्मचारियों पर लागू केंद्रीय सिविल सेवा नियम 1964 का उल्लंघन है। फिलवक्त शिक्षा निदेशालय और अध्यापक संघो की आपस में रार जगज़ाहिर हो गई है। स्थिति कुछ ऐसी है की जहां सरकार नियमों का सहारा लेकर अध्यापक संघो को विरोधाभासी बयान देने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात कर रही है तो वहीं शिक्षक अब इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी का मसला बना बैठे है।
सरकार ने थमाएं नोटिस
सरकार ने बयानबाजी करने वाले शिक्षकों का ब्यौरा तलब कर लिया गया। शिमला जिले में राजकीय अध्यापक संघ के तीन पदाधिकारियों को नोटिस भी दिए गए। अन्य जिलों में उपनिदेशकों ने इस मामले को लेकर क्या कार्रवाई की है। इसका ब्यौरा मांगा गया है। इसी कड़ी में शिक्षा निदेशालय ने सभी जिलों से इस मामले को लेकर अभी तक की गई कार्रवाई को निदेशालय से अवगत करवाने को कहा है।
शिक्षा मंत्री से की अधिसूचना को निरस्त करने की मांग
सरकार के इस आदेश के बाद विरोधात्मक ब्यान देने वाले शिक्षक संगठनों की नाराज़गी और ज्यादा बढ़ गई है। अध्यापक संघ ने शिक्षा मंत्री से इस अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की है। अगर ऐसा नहीं होता है तो संघ न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगा। संगठन की माने तो ये बस एक सुझाव था, उस समय हिमाचल में कोरोना की स्थिति इतनी खराब नहीं थी और इसीलिए संघ ने ये सुझाव आगे रखा। हिमाचल में कोविड नियंत्रण था और समय रहते परीक्षाएं करवाई जा सकती थी, लेकिन विभाग ने इसे अन्यथा ले कर नोटिस थमा दिया। संघ ने प्री बोर्ड की परीक्षाएं न करने की मांग की थी लेकिन सरकार ने 10 वीं 12 वीं की परीक्षाएं एक पेपर के बाद रद्द कर दी।
अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने का प्रयास कर रही सरकार: चौहान
पहली कार्रवाई के फेर में आए राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने वीरवार को प्रेस वार्ता कर कहा की सरकार अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनने का प्रयास कर रही है। चौहान कहते है की की संघ इसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को भी तैयार है। यह तानाशाहीपूर्ण अधिसूचना सभी कर्मचारियों के लिए जारी की गई है। अनुच्छेद 19 के अनुसार भारतीय संविधान ने सभी को अभिव्यक्ति की आजादी दी है जिसे कोई छीन नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल में पहली बार इस तरह का फैसला हुआ है जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी को छीनने का प्रयास किया है।