नेता अपने रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए आउटसोर्स प्रथा खत्म नहीं करते : शैलेन्द्र
- सीएम ने कहा, जिन्हें मुकुट - तलवार भेंट की है उन्हीं से स्थाई नीति की मांग करें, और मनोबल टूट गया
....जब भाजपा विपक्ष में थी तो बतौर विधायक खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मुद्दे को जोर - शोर से उठाया, मगर आज सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद वे भी इसकी सुध नहीं ले रहे। जयराम ठाकुर ने साफ शब्दों में आउटसोर्स कर्मचारी को नियमित करने को लेकर किसी भी पॉलिसी से इनकार किया। सत्ता में आने के बाद इनके लिए नीति बनाने में कानूनी पेंच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। अब ऐसे में आउटसोर्स कर्मचारी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं.....
आउटसोर्स कर्मचारी वो कर्मचारी वर्ग है जो काम तो सरकार का करते है पर इन्हें वेतन निजी कंपनियों द्वारा दिया जाता है। इनकी नौकरी तक सुरक्षित नहीं है, पेंशन तो दूर की बात है। हिमाचल प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ एक ऐसा संगठन है जो लगातार इन आउटसोर्स कर्मचारियों की मांगो को सरकार तक पहुँचाने की कोशिश करता है और इन कर्मचारियों की व्यथा से सरकार को अवगत करता रहता है। क्या है इन आउटसोर्स कर्मचारियों के मुद्दे, क्या है इनकी प्रमुख मांगे और क्या शिकवे है इन्हें सरकार से, ये जानने के लिए फर्स्ट वर्डिक्ट ने विशेष बातचीत की आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा से। पेश है बातचीत के मुख्य अंश ....
सवाल : हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का गठन कब हुआ और आपकी इसमें क्या भूमिका है ?
जवाब : हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ यूँ तो 2017 से अस्तित्व में है, परन्तु कुछ समय पहले किन्ही कारणों की वजह से ये असक्रिय हो गया था। दरअसल इस संगठन द्वारा वर्ष 2017 में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष धीरज चौहान की अध्यक्षता में पीटरहॉफ में एक आयोजन करवाया गया। उस समय इस आयोजन में आउटसोर्स कर्मचारियों द्वारा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को सम्मानित किया गया और मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों को ये आश्वासन दिया की उनके लिए कोई स्थाई नीति बनाई जाएगी। परन्तु इससे पहले की वीरभद्र सरकार कुछ कर पाती, सरकार बदल गई। भाजपा के दौर में जब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से आउटसोर्स कर्मचारियों ने स्थाई नीति की मांग की तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में ये कहा कि जिन्हें आपने मुकुट और तलवार भेंट की है आप उन्हीं से स्थाई नीति की मांग करें। ये बात सुनकर कर्मचारियों का मनोबल टूटा और ये संगठन बिखरने लगा। धीरे-धीरे इस संगठन का अस्तित्व खत्म हो गया और फिर आउटसोर्स कर्मचारियों की मांगे अनसुनी होने लगी। साल 2020 की शुरुआत में मैंने खुद ज़मीनी स्तर पर उतर कर आउटसोर्स कर्मचारियों की समस्याओं को जाना और इनके लिए काम करने की ठानी। मेरे ज़हन में इन कर्मचारियों के लिए कुछ करने की बात बैठ गई थी और मैं ये समझता था की ये सब बिना एक रजिस्टर्ड संस्था बनाए संभव नहीं है। सभी विभागों, सरकारी दफ्तरों और कार्यालयों के विभिन्न आउटसोर्स कर्मचरियों को एकजुट करने और कई कठिन प्रयासों के बाद आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का बतौर रजिस्टर्ड यूनियन गठन संभव हो पाया। कोरोना के समय में भी संगठन संगठन को रेकॉर्डतोड़ मेंबरशिप प्राप्त हुई थी और मैं ये बात गर्व से कह सकता हूँ इस समय ये संगठन आउटसोर्स कर्मचारियों की मांगों को सरकार तक पहुँचाने वाला सबसे बड़ा संगठन है।
सवाल : अब तक इस संगठन ने कर्मचारियों के हित में क्या बड़े कार्य किए है?
जवाब : इस संगठन ने आउटसोर्स कर्मचारियों के हित में कई बड़े कार्य किए है जिसमें स्वास्थय विभाग से निष्काषित नर्सों की वापसी करवाना एक प्रमुख कार्य है। इसके आलावा इस महासंघ के गठन के बाद से ही हमारा ये प्रयास रहा है की किसी भी आउटसोर्स कर्मचारी को निलंबित न होने दिया जाए और अब तक हमने ऐसा कुछ होने भी नहीं दिया है। हम सभी जानते है की इमरजेंसी एम्बुलेंस सेवा 108 में आउटसोर्स कर्मचारी एक एहम भूमिका अदा करते है। कोरोना के समय भी इन कर्मचारियों ने अपनी सेवा पूरी निष्ठा से प्रदान की है। हमारी कोशिश रही है की इन कर्मचारियों की मेहनत को हम जनता के समक्ष उजागर कर पाए। इसी के साथ हम नए श्रम कानूनों को भी कर्मचारियों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे है। आउटसोर्स कर्मियों के लिए स्थाई नीति की मांग को लेकर भी हम निरंतर प्रयास कर रहे है।
सवाल : आउटसोर्स कर्मचारियों की सरकार से क्या मांग है ?
जवाब : सबसे बड़ी मांग है आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थाई नीति की। हमारी यही मांग है कि इन कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति बनाई जाए और इनके नियमतिकरण के बारे में कुछ सोचा जाए। पिछले 18 सालों से आउटसोर्स कर्मचारी हिमाचल के विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे है मगर उनकी स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया। आउटसोर्स कर्मचारी पिछले कई सालों से अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहे है मगर सरकार सिर्फ आश्वासन दे रही हैं। सरकार द्वारा इनके नियमतिकरण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और इनके शोषण को कम करने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। नामात्र वेतन पर भी इनसे अधिक से अधिक काम लिया जाता हैं, बात चाहे बिजली विभाग की हो, शिक्षा, स्वास्थ्य, या जल शक्ति विभाग की, आउटसोर्स कर्मचारी हर जगह पूरी निष्ठां से अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है। लॉकडाउन में भी सरकार इनकी सेवाएं लेती रही, मगर जब बात इनकी मांगो को पूरी करने की आती हैं तो ये ही कर्मचारी सरकार की आंखों में चुभने लगते हैं, जो सही नहीं है।
सवाल : हाल ही में आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ द्वारा मुख्यमंत्री को एक प्रेज़ेंटेशन भी सौंपी गई है , आपसे जानना चाहेंगे कि किस सन्दर्भ में ये प्रेज़ेंटेशन भेजी गई ?
जवाब : 16 अप्रैल 2021 को हमने आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए स्थाई नीति बनाने हेतु एक प्रेजेंटेशन वन मंत्री राकेश पठानिया के माध्यम से मुख्यमंत्री तथा सचिवालय भेजी है। इस प्रेजेंटेशन के माध्यम से हमने सरकार को अवगत करवाया है कि सरकारी कार्यालयों, निगमों, बोर्डों में वर्तमान में लगभग 35 हजार कर्मी कार्य कर रहे है। इसमें हमारी मुख्य मांगों के बारे में भी हमने सरकार को अवगत करवाने की कोशिश की है। सरकार ने हमसे प्रेजेंटेशन मांगी, हमने दे दी। अब देखना होगा की सरकार हमारे लिए क्या करती है।
सवाल : आउटसोर्स कर्मचारियों लगातार उनके साथ हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाते है, आपसे जानना चाहेंगे की किस तरह का शोषण इन कर्मचारियों के साथ हो रहा है ?
जवाब : नए श्रम कानूनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समान कार्य समान वेतन की बात कही गई है। आउटसोर्स कर्मचारियों को फिलहाल प्राइवेट कंपनियों द्वारा वेतन दिया जाता है और ठेकेदारों द्वारा इनके शोषण की भी खबरें सामने आती रहती है। ठेकेदार नियमित तौर पर वेतन नहीं देते और नौकरी का भी कोई ठिकाना नहीं है। बड़े - बड़े नेता अपने रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए इस आउटसोर्स प्रथा को खत्म नहीं करना चाहते। जब तक प्राइवेट कंपनियों के माध्यम से कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा जाएगा प्रदेश में भ्रष्टाचार बढ़ता रहेगा।
सवाल : आउटसोर्स कर्मचारियों की वेतन को लेकर भी कई समस्याएं है, उनपर आप क्या कहना चाहेंगे ?
जवाब : आउटसोर्स कर्मचरियों को कभी भी नियमित तौर पर वेतन नहीं दिया जाता। आज से नहीं, जब से आउटसोर्स प्रथा शुरू हुई है तबसे स्थिति ऐसी ही बनी हुई है। इन कर्मचारियों को इनके काम का उचित वेतन मिलना चाहिए जोकि बीच में कंपनी और ठेकेदारों द्वारा हड़प लिया जाता है। किसी भी विभाग में इन ठेकेदारों का अपना मुनाफा बनाने के आलावा और कोई भी कार्य नहीं है। बिजली विभाग में नियुक्त आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ कई बड़े हादसे हो जाते है। इन कर्मचारियों को ठेकेदार या सरकार द्वारा कोई भी कंसेंट लिखकर नहीं दिए जाता की अगर किसी की जान चली जाए तो क्या होगा। जान जोखिम में डालने के बावजूद भी इन्हें नियमित वेतन नहीं दिया जाता।
सवाल : सरकार के अब तक के कार्यकाल को आप किस तरह से देखते है ?
जवाब : ये सरकार पूरी तरह फेल है, अपने अब तक के कार्यकाल में सरकार ने इन कर्मचारियों की सुध तक नहीं ली। आउटसोर्स कर्मचारियों को मलाल तो इस बात का है की जब भाजपा विपक्ष में थी तो बतौर विधायक खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मुद्दे को जोर - शोर से उठाया मगर आज सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद वे भी इसकी सुध नहीं ले रहे। विपक्ष द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने साफ शब्दों में आउटसोर्स कर्मचारी को नियमित करने को लेकर किसी भी पॉलिसी से इंकार किया। हालांकि आउटसोर्स कर्मचारियों पर हो रहे शोषण को कम करने की बात जरूर कही गई और कहा की शोषण करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई भी की जाएगी, पर अमल नहीं किया गया। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद इनके लिए नीति बनाने में कानूनी पेंच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। अब ऐसे में आउटसोर्स कर्मचारी खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। हमारी मांगे जायज़ है और हम कहते है की इन्हें जल्द पूरा किया जाए।
सवाल : आने वाले समय में सरकार से क्या उम्मीद है ?
जवाब : जो भी सरकार कर्मचारियों के साथ खड़ी होती है कर्मचारी उस सरकार के साथ खड़े होते है। जयराम सरकार के पास अब भी संभलने का समय है। अगर ये सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति बनाती है तो मैं ये आश्वस्त करता हूँ की प्रदेश के हज़ारों आउटसोर्स कर्मचारी और उनके परिवार भाजपा के साथ खड़े होंगे और मिशन रिपीट के नारे को ज़मीनी स्तर पर सफल बनाएंगे। परन्तु अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो सरकार रिपीट नहीं डिलीट होगी।