आउटसोर्स कर्मचारी: अब तक गरजते रहे, लेकिन अब बरसने को तैयार
अक्सर गरजने वाले अब बरसने की पूरी तैयारी में है। नाराज़गी इस हद तक बढ़ गई है की अब ये कर्मचारी आर पार की लड़ाई के मूड में नज़र आ रहे है, दावा तो इनका कुछ ऐसा ही है। हम बात कर रहे है हिमाचल के विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हज़ारों आउटसोर्स कर्मचारियों की। इन कर्मचारियों का संगठन 'आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ' इन चार उपचुनावों में भाजपा को वोट ना डालने का ऐलान कर चूका है। भाजपा को वोट न जाए इसके लिए बाकायदा सोशल मीडिया पर हैशटैग अभियान भी चलाया जा रहा है। " नो वोट फॉर भाजपा" के पॉस्टर के साथ तसवीरें खिचवा कर फेसबुक पर वायरल की जा रही है। सवाल ये है कि आखिर सरकार से इतनी नाराज़गी क्यों ? दरअसल ये मुहिम आउटसोर्स कर्मचारियों के मुद्दों को अक्सर उठाने वाले आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ द्वारा चलाई जा रही है। संघ का कहना है अनगिनत प्रयासों और कड़े परिश्रम के बाद भी जयराम सरकार उनकी मांगों को अनसुना करती रही है। आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक स्थाई पॉलिसी बनाने की मांग को लेकर ये कर्मचारी भटकते रहे लेकिन सरकार ने इन्हें अनदेखा किया। प्रदेश में उपचुनाव का दौर है और अब ये कर्मचारी सरकार को अनदेखा करने का मन बना चुके है।
आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ ये एलान कर चूका है कि जब तक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं बनाई जाती तब तक वो चुनाव में भाजपा को वोट नहीं डालेंगे। बहरहाल इनकी अपील का कितना असर होता है ये तो विश्लेषण का विषय होगा, पर इस तरह एक कर्मचारी संगठन के सत्तारूढ़ दल के खिलाफ मोर्चा खोलने से इतना तय है कि आने वाले दिनों में सियासत खूब गर्माने वाली है। इसमें कोई संशय नहीं है कि हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने और गिराने में कर्मचारियों का बड़ा हाथ रहता है। सत्ता प्राप्ति के लिए कर्मचारियों का पक्ष में होना कितना महत्वपूर्ण है ये नेता भली भाति जानते है। इस वक़्त दोनों ही राजनीतिक दल कर्मचारियों को साधने के लिए प्रयासरत है। जहां सत्ताधारी पार्टी भाजपा, जेसीसी का हवाला देकर कर्मचारियों को बांधे रखना चाहती है वहीं कांग्रेस, भाजपा के अधूरे वादे और कर्मचारियों कि लंबित पड़ी मांगों को बार बार याद करवा कर्मचारियों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है। कांग्रेस कर्मचारियों को ये यकीन भी दिला रही है कि जब उनकी सरकार आएगी तो कर्मचारियों की स्थिति बेहतर होगी।
2017 में किये गए कई वादे अभी भी अधूरे
2017 के चुनाव के दौरान जीत सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों से किये गए कई वादे अब भी अधूरे है। जो पूरा नहीं हो पाए उसकी ठीस कर्मचारियों के मन में है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। 2022 से पहले अभी सरकार के पास एक पूरा साल बाकी है, कई कर्मचारी इस साल में कुछ बेहतर की उम्मीद कर रहे है तो कुछ ने अभी से मोर्चा संभाल लिया है। आउटसोर्स कर्मचारियों का कहना है कि वे पिछले कई सालों से संघर्ष कर रहे है, और अब और इंतज़ार करना उनके लिए संभव नहीं। इन कर्मचारियों का कहना है कि वे हिमाचल के विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे है, मगर साल दर साल उनकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। आउटसोर्स कर्मचारी पिछले कई सालों से अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहे है मगर सरकार सिर्फ आश्वासन ही देती रही है।
भाजपा का किया जाएगा बहिष्कार: शैलेन्द्र
आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा का कहना है कि, 'प्रदेश में 35000 से अधिक कर्मचारी विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे है जिनकी मांगों को समय- समय पर प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्रीगण व लगभग हर विधायक के समक्ष उठाया है। ये बहुत दुःख कि बात है कि आज दिन तक इन कर्मचारियों की सुनवाई सरकार ने नहीं की। प्रदेश में 4 अलग अलग क्षेत्रों में उपचुनाव हो रहे है और हमारी मांगें पूरी न होने का खामियाज़ा भारतीय जनता पार्टी इन उपचुनावों में भुगतेगी। भाजपा अक्सर डबल इंजीन की बात करती है पर जब कर्मचारियों कि बात आती है तो पार्टी के सभी इंजन रुक जाते है। पुरे प्रदेश में 35000 परिवार लगातार इस सरकार से गुहार लगाते रहे लेकिन उन्हें छुटमुट राहतों और आश्वासनों के आलावा और कुछ नहीं मिला। इन्ही कारणों के चलते हमने ये फैसला लिया है कि जब तक आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए कोई स्थाई नीति नहीं बनती तब तक चुनाव में भाजपा का बहिष्कार किया जाएगा। आउटसोर्स कर्मचारियों को मलाल तो इस बात का है की जब भाजपा विपक्ष में थी तो बतौर विधायक खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस मुद्दे को जोर- शोर से उठाया मगर आज सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद वे भी इसकी सुध नहीं ले रहे। विपक्ष द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने साफ शब्दों में आउटसोर्स कर्मचारी को नियमित करने को लेकर किसी भी पालिसी से इनकार किया। हालांकि आउटसोर्स कर्मचारियों पर हो रहे शोषण को कम करने की बात जरूर कही गई और कहा की शोषण करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई भी की जाएगी, पर अमल नहीं किया गया। भाजपा ने सत्ता में आने के बाद इनके लिए नीति बनाने में कानूनी पेंच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया है।
मुश्किल में न ठेकेदार साथ देता हैं न सरकार
शैलेन्द्र के अनुसार कुछ दिन पहले ही एक मामला सामने आया था जिसमें बिजली विभाग में नियुक्त एक आउटसोर्स कर्मचारी की करंट लगने से हालत गंभीर हो गई। उसे आईजीएमसी तक रेफर कर दिया गया मगर न तो ठेकेदार ने उसकी कोई सहायता की और न ही सरकार ने। इसी तरह आउटसोर्स पर तैनात नर्सेज, अध्यापक और जल शक्ति विभाग के कर्मचारियों के शोषण की खबर भी आये दिन सामने आती रहती है।
कमीशन काटकर वेतन देते हैं ठेकदार
आउटसोर्स कर्मचारी वे कर्मचारी हैं जिनको सरकारी विभागों में कॉन्ट्रैक्ट आधार पर रखा जाता है। यानी कि ये सरकारी विभाग में तो हैं पर सरकारी नौकरी में नहीं हैं। इनकी नियुक्तियां या तो ठेकेदारों के माध्यम से की जाती है या किसी निजी कंपनी के माध्यम से। ये कर्मचारी काम तो सरकार का करते है मगर इन्हें वेतन ठेकेदार या कंपनी द्वारा मिलता है। न तो इन्हें सरकारी कर्मचारी होने का कोई लाभ प्राप्त होता है न ही एक स्थिर नौकरी। इन्हें जब चाहे नौकरी से निकाला जा सकता है। सरकार द्वारा वेतन तो दिया जाता है मगर ठेकेदार की कमिशन के बाद इन तक तक पहुंच पाता है।
शोषण कम करने को सरकार ने नहीं बनाई ठोस नीति: महासंघ
हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी महासंघ का कहना है की प्रदेश के विभिन्न विभागों में हजारों कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा गया है लेकिन सरकार द्वारा इनके नियमतिकरण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है और न ही इनके शोषण को कम करने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए हैं। नामात्र वेतन पे भी इनसे अधिक से अधिक काम लिया जाता हैं, बात चाहे बिजली विभाग की हो, शिक्षा, स्वास्थ्य, या जल शक्ति विभाग की, आउटसोर्स कर्मचारी हर जगह पूरी निष्ठां से अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है। इनका कहना हैं कि लॉकडाउन में भी सरकार इनकी सेवाएं लेती रही, मगर जब बात इनकी मांगो को पूरी करने की आती हैं तो ये ही कर्मचारी सरकार की आंखों में चुभने लगते हैं।