एनपीएस पर सियासत बेशुमार, पर क्या हल निकलेगा
जेसीसी के बाद से हिमाचल में कर्मचारियों के मसलों पर खूब सियासत हो रही है। कर्मचारी हितेषी बनने के लिए पक्ष और विपक्ष में होड़ सी लगी हुई है। कोई मांगें पूरी कर खुद को कर्मचारी हितेषी बता रहा है, तो कोई कर्मचारियों की आवाज़ बन कर। मंज़िल एक ही है बस रास्ता अलग है। कर्मचारियों का सबसे बड़ा मसला यानी की पुरानी पेंशन की बहाली तो मानो नेताओं के रडार पर है। आए दिन ओपीएस को लेकर किसी न किसी नेता का ब्यान वायरल हो जाता है। जहां कांग्रेस कर्मचारियों के लिए भाजपा सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रही है, वहीं भाजपा सरकार बार -बार कांग्रेस को ये याद दिला रही है कि प्रदेश में ओपीएस उन्हीं की सरकार की देन है। हाल ही में सामने आए अपने एक बयान में कैबिनेट मंत्री राकेश पठानिया ने न सिर्फ कांग्रेस पर कर्मचारियों को गुमराह करने के आरोप लगाए, बल्कि कर्मचारियों को ये याद भी दिलाया की उनकी समस्या का बीजारोपण कांग्रेस द्वारा ही किया गया था। एनपीएस कर्मचारी हो या पुलिस कर्मचारियों इन सभी को इस परिस्थिति में पहुंचाने के लिए उन्होंने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि ओल्ड पेंशन की बात करें तो सबसे पहले हिमाचल ने ही कर्मचारियों को पुरानी पेंशन देना बंद किया था, उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। मुकेश तब मंत्री थे और अब राजनीति कर रहे हैं। उस समय क्यों कुछ नहीं किया। उन्होंने ये भी कहा चुनावी वर्ष है इसलिए विपक्ष के नेता व विक्रमादित्य झूठी बयानबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस केवल झूठ फरेब की राजनीति कर रही है। विक्रमादित्य को नहीं पता कि पिता ने कहां साइन किए। अब कम से कम झूठ बोल कर कर वीरभद्र सिंह की आत्मा को दुखी न करें। सिर्फ वन मंत्री राकेश पठानिया ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का भी कुछ ऐसा ही मानना है। वे भी अपने भाषण के दौरान ये कह चुके है। उधर, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री केंद्र की तत्कालीन अटल सरकार की ओर से पुरानी पेंशन स्कीम खत्म करने का आरोप लगा कर मौजूदा सरकार को घेरने का प्रयास करते है तो वहीं सीएम जयराम ठाकुर का कहना है कि केंद्र ने तो इस स्कीम को 2004 में बदला, लेकिन हिमाचल की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे 2003 में ही हिमाचल में लागू कर दिया था। बहरहाल कर्मचारियों की ये महत्वपूर्ण मांग सिर्फ सियासत का मसला बन कर रहेगी या सरकार इस मुद्दे पर सचमें अमल करेगी ये बड़ा सवाल है।
2004 में केंद्र ने लागू की नई पेंशन योजना
साल 2004 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों की पेंशन योजना में एक बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत नए केंद्रीय कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के दायरे से बाहर हो गए। ऐसे कर्मचारियों के लिए सरकार ने नेशनल पेंशन सिस्टम को लॉन्च किया। यह 1972 के केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम के स्थान पर लागू की गई और उन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को अनिवार्य कर दिया गया जिनकी नियुक्ति 1 जनवरी 2004 के बाद हुई थी। अधिकतर सरकारी कर्मचारी नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। पश्चिम बंगाल को छोड़ देश के हर राज्य में नई पेंशन योजना को लागू किया गया है। अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है। जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी। ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशि अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी। इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिटी कॉन्ट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशि इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल कि गई है और एन्युटी राशि कितनी है। एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है।
इसलिए कर्मचारी नहीं चाहते नई पेंशन स्कीम
शुरूआती दौर में कर्मचारियों ने इस स्कीम का स्वागत किया, लेकिन जब एनपीएस का असल मतलब समझ आने लगा तो विरोध शुरू हो गया। नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत हर सरकारी कर्मचारी की सैलरी से अंशदान और डीए जमा कर लिया जाता है। ये पैसा सरकार उसके एनपीएस अकाउंट में जमा कर देती है। रिटायरमेंट के बाद एनपीएस अकाउंट में जितनी भी रकम इकट्ठा होगी उसमें से अधिकतम 60 फीसदी ही निकाला जा सकता है। शेष 40 फीसदी राशि को सरकार बाजार में इन्वेस्ट करती है और उस पर मिलने वाले सालाना ब्याज को 12 हिस्सों में बांट कर हर महीने पेंशन दी जाती है। यानि पेंशन का कोई तय राशि नहीं होती। पैसा कहां इन्वेस्ट करना है, ये फैसला भी सरकार का ही होगा। इसके लिए सरकार ने PFRDA नाम की एक संस्था का गठन किया है। विरोध कर रहे कर्मचारियों का मानना है की उनका पैसा बाजार जोखिम के अधीन है और बाजार में होने वाले उलटफेर के चलते उनकी जमा पूंजी सुरक्षित नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम इससे कई ज़्यादा बेहतर मानी जाती है। उसमें सरकारी नौकरी के सभी लाभ मिला करते थे। पहले रिटायरमेंट पर प्रोविडेंट फण्ड के नाम पर एक भारी रकम और इसके साथ ताउम्र तय पेंशन जोकि मृत्यु के बाद कर्मचारी की पत्नी को भी मिला करती थी।