जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं
हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद का कहना है कि देश के अन्य राज्यों में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी पदनाम दिया गया है, लेकिन हिमाचल में अभी तक यह व्यवस्था लागू नहीं हुई है। ऐसे में अध्यापक जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। उन्हें पूरे सेवाकाल में पदोन्नति का अवसर प्राप्त नहीं होता। ऐसे में शास्त्री व भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पदनाम दिलवाने के लिए लड़ाई अब तेज हो गई है। इस मांग के चलते हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल फिर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर और प्रधान शिक्षा सचिव रजनीश से मिला। प्रतिनिधिमंडल ने फिर मांग उठाई है कि शास्त्री व भाषा अध्यापकों को जल्द से जल्द टीजीटी का पदनाम दिया जाए। साथ ही चेताया है कि अगर एक महीने के अंदर उनकी मांग पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता हैं, तो फिर उन्हें सख्त कदम उठाना पड़ेगा।
परिषद के प्रदेशाध्यक्ष मनोज शैल का कहना है कि शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों की यह मांग दशकों से चली आ रही हैं, लेकिन अब तक किसी भी सरकार की ओर से उनको पूरा नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री को इस बात से भी अवगत करवाया गया कि कई अवसरों पर परिषद ने उनसे इस मांग के बारे में अवगत कराया हैं, लेकिन इसके बावजूद यह मांग पूरी नहीं हो पाई है। सरकार से आश्वासन मिला था कि वित्तीय-वर्ष 2021-22 के बजट सत्र में शास्त्री एवं भाषा अध्यापकों की चिरलंबित मांग पूरी करके उन्हें टीजीटी पदनाम दिला दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जिस पद पर नियुक्त होते हैं, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाते हैं
भविष्य में जो भी भर्ती की जाए, उन्हें नियमों के आधार पर किया जाए। जैसा सम्मान अंग्रेजी पढ़ाने वालों को मिल रहा है, वैसा ही भाषा अध्यापक और संस्कृति पढ़ाने वालों को भी दिया जाए। भाषा अध्यापकों को टीजीटी का पद नाम दिए जाने की मांग 1985 से चली आ रही है। सरकार को इस पर जल्द से जल्द उचित निर्णय लेना चाहिए।