सब्र अब टूटने लगा है, ख्याल रहे देर न हो जाएं : अरुण
चुनाव के आगोश में, जीत की खातिर नेता न जाने क्या क्या वादें कर देते है। उस वक्त न तो प्रदेश की आर्थिक स्थिति का ख्याल रखा जाता है और न ही संसाधनों का। बस जनता को लुभाने के लिए वादों की बरसात होती है, ऐसे वादे जो सत्ता में आने के बाद भुला दिए जाते है l ऐसा ही एक वादा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने अनुबंध कर्मचारियों से किया था। 2017 की एक चुनाव रैली में उन्होंने कहा था कि जैसे ही उनकी सरकार सत्ता में आएगी वे अनुबंध काल को 3 से घटा कर दो वर्ष कर देंगे। सत्ता में आने के बाद भाजपा तो ये वादा भूल गई पर हताश कर्मचारी अब भी इंतज़ार में है की आज नहीं तो कल सरकार अपना चुनावी वादा पूरा करेगी। कर्मचारियों से किया ये वादा भाजपा के 2017 के चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल था। सरकार को सत्ता में आए साढ़े तीन वर्ष का समय बीत चुका है, मुख्यमंत्री अपना चौथा बजट पेश कर चुके है पर आज तक अनुबंध काल को कम करने हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया। हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ पिछले तीन वर्षों से अनुबंध काल को दो वर्ष करने की मांग उठा रहा है, महासंघ लगातार संघर्ष काट रहा है, मगर हुआ कुछ नहीं। महासंघ के कर्मचारी कभी मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजते है तो कभी बाकि मंत्रियों के दफ्तर के चक्कर काटते है, मगर सरकार की तरफ से बस कोरोना काल और आर्थिक संकट का हवाला देकर आश्वासन ही दिया जाता है। कर्मचारियों के इस मसले को लेकर फर्स्ट वर्डिक्ट ने बात की हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष अरुण भारद्वाज से, पेश है बातचीत के कुछ अंश ....
सवाल : अपने संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी हमें दें और इस संघ से कितने कर्मचारी जुड़े है ये भी स्पष्ट करें ?
जवाब : हमारा संगठन यानी हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचारी महासंघ जैसा कि नाम से स्पष्ट है अनुबंध आधार पर कार्यरत कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गठित किया गया एक संगठन है। इस संगठन में किसी विशेष विभाग के कर्मचारी ही शामिल नहीं हैं बल्कि हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विभागों में अनुबंध आधार पर कार्यरत कर्मचारियों का ये संगठन है और यह संघ अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ से मान्यता प्राप्त है। इस समय प्रदेश में लगभग 19000 कर्मचारी अनुबंध आधार पर विभिन्न विभागों में कार्यरत हैं तथा पूरी ईमानदारी व कर्तव्य निष्ठा से अपनी सेवाएं दूर दराज के इलाकों में दे रहे हैं। ये सभी कर्मचारी हमारे इस संगठन से जुड़े है।
सवाल : आपके संघ की मुख्य मांग क्या है ?
जवाब : देखिये हमारे संघ की मुख्य मांग है अनुबंध अवधि को 2 वर्ष करवाना। हमारा मानना है कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में अनुबंध प्रथा होनी ही नहीं चाहिए, क्योंकि यहां की भौगोलिक परिस्थितियां काफी अलग हैं। हमारे पड़ोसी राज्य पंजाब की अगर बात करें तो वहां पर इस तरह की अनुबंध प्रथा नहीं है। हिमाचल के कई जिलों में अति दुर्गम क्षेत्र भी हैं और वहां पर जो कर्मचारी अनुबंध आधार पर नियुक्त है उनके लिए अपने वेतन से तो अपने परिवार का भरण पोषण करना भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए अनुबंध प्रथा बंद होनी चाहिए लेकिन यदि कोरोना महामारी के चलते सरकार अनुबंध प्रथा को फिलहाल समाप्त नहीं कर सकती तो कम से कम अपने वादे के अनुसार अनुबंध अवधि को घटा कर 2 वर्ष तो करे।
सवाल : कॉन्ट्रैक्ट पीरियड पहले 8 साल हुआ करता था अब ये घटकर तीन साल हो गया है। पहले के मुकाबले सहूलियत बेहतर है तो अब कॉन्ट्रैक्ट पीरियड दो साल करने की मांग क्यों ?
जवाब : जी बिलकुल, पहले अनुबंध 8 साल का होता था फिर कांग्रेस सरकार के समय में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व.राजा वीरभद्र सिंह ने इसे घटा कर 3 वर्ष तक कर दिया था। सहूलियतों के साथ-साथ महंगाई भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और जो कर्मचारी अपने घरों से 300 से 500 किलोमीटर दूर अति दुर्गम क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं उन्हें अपने अनुबंध वेतन से अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल हो रहा है। यदि ऐसा कोई कर्मचारी जो अपने घर से 500 किलोमीटर दूर कार्यरत है और महीने 2 महीने में भी यदि घर आता है तो आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि उसका आने जाने का बस किराया ही लगभग 2500 रुपए बन जाता है। और मान लीजिये यदि किसी कर्मचारी को लॉक डाउन जैसी परिस्थिति में किसी आपात स्थिति में प्राइवेट वाहन से घर आना पड़ा तो एक माह का वेतन तो किराए में ही चला जायेगा। इस स्थिति में परिवार के अन्य खर्चे कैसे चलेंगे। दिन रात सेवाएं दे रहे कर्मचारियों का ये शोषण नहीं तो और क्या है।
सवाल : क्या सरकार आपकी सुनती है ? अब तक आपके संघर्ष को कितनी कामयाबी मिली ?
जवाब : बात ये नहीं है कि सरकार हमारी सुनती है या नहीं। क्योंकि अगर नही सुनते तो मुख्यमंत्री हमें हर बार आश्वस्त नहीं करते। बजट सत्र से पहले हमारी राज्य कार्यकारिणी मुख्यमंत्री से उनके आवास ओक ओवर में मिली थी और उन्होंने उस वक्त साफ शब्दों में कहा था कि हमारी सरकार ने आपके लिए कुछ खास सोचा है और हम जल्द ही आपकी इस मांग को एक खास मौके पर पूरा करने वाले हैं। इसीलिए समस्त अनुबंध कर्मचारी देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर अनुबंध अवधि 2 वर्ष होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
सवाल : बीते विधानसभा सत्र के दौरान आपने सरकार पर ये आरोप लगाए थे कि इस सरकार को ये तक नहीं मालूम की हिमाचल में कितने अनुबंध कर्मचारी है। क्या अब ये गिनती पूरी हो पाई है ?
जवाब : जी सरकार ने खुद यही जवाब दिया था कि वास्तविक आंकड़े उपलब्ध नहीं है और आगामी सत्र में इसकी पूरी जानकारी दी जाएगी तो आशा करते हैं कि आने वाले मानसून सत्र में स्थिति स्पष्ट हो जायेगी।
सवाल: आपका संगठन 15 अगस्त तक मांगें पूरी करने के लिए आवाज़ उठा रहा है, यदि आपकी मांगें पूरी नहीं होती है तो संगठन की आगामी रणनीति क्या होगी ?
जवाब : जी, क्योंकि मुख्यमंत्री ने बजट सत्र से पहले वादा किया था कि सितंबर से पहले पहले आपकी मांग को पूरा कर दिया जायेगा। अब देखना है कि भाजपा सरकार अपना वादा निभाती है या फिर अपने वादों को सिर्फ चुनावी स्टंट ही बनाना चाहती है। क्योंकि यदि घोषणा मार्च 2022 में की जाती है तो किसी को भी इसका फायदा नहीं होगा। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि वर्तमान सरकार के सत्तासीन होने के बाद जनवरी 2018 से सितंबर 2018 तक जो भी नियुक्तियां हुई हैं उनका अनुबंध कार्यकाल गत मार्च 2021 में और आने वाले सितंबर 2021 में पूरा होने वाला है। वर्ष 2019 में नियुक्त होने वालों के भी 2 साल से अधिक हो चुके हैं और कोविड के चलते वर्ष 2020 में भर्तियां नही हो पाई हैं। इस प्रकार यदि इस मांग को अभी पूरा नहीं किया गया तो कर्मचारियों में सरकार के प्रति एक नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा हो सकता है जिस से न तो सरकार को कोई फायदा होगा और न ही कर्मचारियों को और यदि सरकार हमारी बात नहीं मानती है तो तो ये मांग आंदोलन का रूप ले लेगी। मैं सरकार से ये ही कहूंगा कि सब्र अब टूटने लगा है, ख्याल रहे देर न हो जाएं।
सवाल : हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी नेताओं को लेकर ये धारणा बनी हुई है कि कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांग उठाने से ज्यादा अपनी राजनीति चमकाने में विश्वास रखते है, क्या आपके इरादे भी कुछ ऐसे ही है ? क्या आप आने वाले समय में किसी राजनैतिक दल में शामिल होंगे ?
जवाब : हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी नेताओं को लेकर सबकी अपनी अपनी सोच और धारणा हो सकती है लेकिन मेरे लिए सिर्फ कर्मचारियों की मांग सर्वोपरि है। इस संगठन की कमान संभालने से पहले ही मैंने कर्मचारियों के इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया था और इसमें हमारे साथ जुड़े हमारी राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों और सभी जिला कार्यकारिणी के सदस्यों ने मेरा पूरा सहयोग किया। इसके लिए मैं आपके माध्यम से सभी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं और आशा करता हूं कि सभी साथियों का सहयोग आगे भी मिलता रहेगा। बाकी रही बात राजनीति चमकाने की तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है और न ही मैं सक्रिय राजनीति में आना चाहता हूं।
सवाल : आप इस संगठन के प्रदेश अध्यक्ष है मगर बीते कुछ समय से आपके और आपके संगठन के बीच तालमेल नज़र नहीं आ रहा इसके पीछे क्या कारण है ? क्या आपका संगठन आपके नेतृत्व से संतुष्ट नहीं ?
जवाब : जी ऐसी कोई बात नहीं है, सभी साथी एकजुट हैं और सभी की एक ही मांग है और आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हमारी यूनियन तो एक अल्पकालिक यूनियन है। आज मैं हूं कल कोई और होगा । जैसा कि आप जानते हैं कि मेरी नियुक्ति भी मेरे घर से लगभग 350 किलोमीटर दूर अति दुर्गम क्षेत्र में है और यहां पर नेटवर्क और बिजली की भी समस्या रहती है इसलिए कई बार साथियों से संपर्क नहीं हो पाता लेकिन इसका मतलब ये नही की तालमेल नहीं है। हमारी टीम एक है और हमेशा एक रहेगी। बाकी रही बात कर्मचारियों की , तो इस मांग के लिए मैंने और मेरी पूरी राज्य टीम तथा जिला टीमों ने ऐसा कोई मंच नहीं छोड़ा जिस के माध्यम से अपनी आवाज सरकार तक नहीं पहुंचाई। मुख्यमंत्री को ही लगभग 50 से ज्यादा ज्ञापन विभिन्न जिला टीमों द्वारा भेजे गए है। अभी हाल ही में जिला शिमला के जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र में हमने मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया है। इसके साथ ही विभिन्न मंत्रियों, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को भी ज्ञापन देकर इस मांग को पूरे जोरों शोर से उठाया है।