न चुप बैठेंगे, न सहेंगे, सत्ता में चाहे कोई भी हो : वीरेंद्र
हिमाचल प्रदेश में जल्द ही जेसीसी की बैठक होने वाली है जिसके लिए हिमाचल सरकार ने अश्वनी गुट वाले अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को आमंत्रित किया है। परन्तु कुछ कर्मचारी संगठन ऐसे है जो सरकार के इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ इन्हीं संगठनों में से एक है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ के प्रदेशाध्यक्ष वीरेंद्र चौहान का कहना है कि जेसीसी की बैठक में हिमाचल के शिक्षकों का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं होता है और न ही शिक्षकों के मुद्दों को प्राथमिकता दी जाती है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। इनकी मांग है कि या तो इन्हें जेसीसी में शामिल किया जाए या फिर शिक्षकों के लिए भी कुछ ऐसा ही प्रावधान किया जाए जहाँ शिक्षकों और विद्यार्थियों के मसलों को हल किया जा सके। फर्स्ट वर्डिक्ट ने इसी तरह के कई मुद्दों पर उनसे बातचीत की। पेश है उनसे बातचीत के कुछ मुख्य अंश।
सवाल : अपने संगठन के बारे में थोड़ी जानकारी हमें दें और इस संघ से कितने कर्मचारी जुड़े है ये भी स्पष्ट करें ?
जवाब : हमारा संगठन यानी हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ 1957 से लेकर आज तक लगातार शिक्षक एवं छात्र हित के लिए संघर्ष करता आ रहा है। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ जिसका मुझे तीसरी बार अध्यक्ष बनने का अवसर प्राप्त हुआ, इसके 82000 ऑनलाइन सदस्य हैं और 2019- 22 के लिए 42000 शिक्षकों ने सदस्यता ग्रहण की है। यह संगठन, लगातार शिक्षक एवं शिक्षार्थी हित में सरकार से मांग करता रहा है।
सवाल : आपके संगठन की मुख्य मांग क्या है ?
जवाब : हमारे संगठन की मुख्य मांगों में कई मुद्दे शामिल है क्योंकि हमारा संगठन, सभी वर्गों के शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करता है। संघ को हर वर्ग का ध्यान रखते हुए ही अपना मांग पत्र तैयार करना पड़ता है। हमारी प्रमुख मांगों में कर्मचारियों एवं शिक्षकों को छठे वेतन आयोग को शीघ्र लागू करने, 4-9-14 टाइम स्केल को पुनः बहाल करने तथा सभी वर्गों की पदोन्नति शीघ्र जारी करने के साथ-साथ सभी तरह की वेतन विसंगतियों को दूर करने एवं एनपीएस कर्मचारियों को 2009 की केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार अपंग या मृत्यु होने पर पुरानी पेंशन का लाभ देने जैसी बहुत सी मांगे हैं। इन मांगों को पूरा किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
सवाल : हिमाचल में जेसीसी की बैठक होनी है, मगर इस बैठक में शिक्षकों के मसलों पर चर्चा नहीं होती , इसपर आप क्या कहेंगे ?
जवाब : जेसीसी की बैठक तो हिमाचल में होनी है पर न तो इस बैठक में हिमाचल के शिक्षकों का कोई प्रतिनिधि शामिल होता है और न ही शिक्षकों के मुद्दों को प्राथमिकता दी जाती है। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है की समाज के एक प्रबुद्ध वर्ग को सरकार से अपनी मांगों को मनवाने का कोई सीधा मंच नहीं मिल पाता है जैसा बाकि कर्मचारियों को जेसीसी बैठक के माध्यम से दिया जाता है। शिक्षक समुदाय और अभिभावकों के लिए भी सरकार को कोई प्लैटफॉर्म बनाना चाहिए। हमारी मांग है या तो हमें जेसीसी का हिस्सा बनाया जाए या हमारे लिए भी इस तरह का कोई प्रावधान किया जाए।
सवाल : हाल ही में सरकार ने अश्वनी गुट के अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ को मान्यता दी है, क्या आप सरकार के इस फैसले से संतुष्ट है ?
जवाब : जहां तक अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के गुटों या अश्वनी गुट की बात है, मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा की हिमाचल में अराजपत्रित कर्मचारी के अलावा और भी बहुत से कर्मचारी है जिनकी सरकार अनदेखी करती है। हिमाचल के 80 हज़ार शिक्षक भी सरकार की रिड की हड्डी है जो समाज के प्रति एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। वर्तमान में जो जेसीसी की बैठक होनी है और जिस तरह से जेसीसी के मुखिया बनाए गए है वो सही तरीका नहीं है। सरकार अपने चहेतों और समर्थकों को अध्यक्ष पद पर बैठा कर बाकि कर्मचारियों के साथ भद्दा मज़ाक कर रही है। सरकार द्वारा नियुक्त किया हुआ व्यक्ति कभी भी सरकार के निर्णयों पर सवाल खड़े नहीं करेगा। न जाने अब कर्मचारियों का क्या होगा। सरकार अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष को गोद में बिठा कर काम करना चाहती है। इससे सरकार का बखान तो बखूबी हो सकता है पर कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं होने वाला। कर्मचारियों के मुद्दे तभी सुलझेगे जब संगठन के चुनाव लोकतान्त्रिक तरीके से करवाएं जाएंगे। जो व्यक्ति कर्मचारियों के मुद्दे निष्पक्षता और ईमानदारी से उठाएगा और कर्मचारियों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा वो ही अध्यक्ष होना चाहिए, ना कि सरकार की जी हज़ूरी करने वाला कोई व्यक्ति। अगर कर्मचारी हितैषी कोई व्यक्ति अध्यक्ष बनता है तभी वो सरकार और कर्मचारियों के बीच समन्वय बिठा सकता है और तभी हिमाचल के कर्मचारियों का भला होगा। फिलवक्त जिस तरह से सरकार ने अध्यक्ष चुना है या मान्यता दी है वो एक लोकतान्त्रिक तरीका नहीं है बस अपने चहेतों को आगे करने की बात है, ताकि सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी न हो।
सवाल : क्या सरकार आपकी सुनती है ? अब तक आपके संघर्ष को कितनी कामयाबी मिली ?
जवाब : देखिये ये सरकार हमारी सुने या न सुने फर्क नहीं पड़ता, फर्क तो सरकार को पड़ता है, चुनाव के वक्त। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ का काम है कर्मचारियों के मुद्दों को उजागर करना, मैं और मेरा संगठन लम्बे समय से ये काम करते आ रहे है। चाहे अध्यापकों के मुद्दे हो विद्यार्थियों के या अभिभावकों के, हर मुद्दा हमारी प्राथमिकता रहा है और हमेशा रहेगा भी। हिमाचल प्रदेश भी लोकतांत्रिक ढांचे का हिस्सा है तो सरकार हमारी सुनती है। या यूँ कहे सरकार को हमारी सुननी पड़ती है, ये सरकार की बाध्यता है। संवाद से बात बने तो बहुत अच्छा, परन्तु जहां बात करके हल नहीं निकलता वहां हम संघर्ष का रास्ता भी अपनाते है। हम शिक्षकों की मांगों को उठाते आए है और आगे भी इसी तरह से उठाते रहेंगे। हमारी आवाज़ को कोई दबा नहीं सकता और न ही हम चुप बैठ कर सहने वालो में से है ,चाहे सत्ता में कोई भी हो।
सवाल : बीते दिनों सरकार और आपके बीच काफी तनातनी नज़र आई, कई नोटिस भी जारी हुए अब स्थिति कैसी है ?
जवाब : जी बिलकुल बीते एक दो साल से विभाग और कुछ लोगों की वजह से हमारे संगठन और सरकार के बीच काफी ऊंच नीच हुई है। कुछ लोगों द्वारा मेरे संगठन को और मुझे नीचा दिखाने के लिए, मेरे संगठन के पदाधिकारियों और शिक्षकों को डराने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए गए। ये जो भी षड्यंत्र हमारे खिलाफ हुए है, मैं ये तो नहीं कहूंगा की इसमें सरकार का हाथ है मगर ये ज़रूर कहूंगा की जो भी हुआ सरकार को मालूम है, हमने खुद सब कुछ मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के ध्यान में लाया है। हम कुछ भी कहें हमें कारण बताओ नोटिस थमा दिए जाते है जो एक अच्छी परम्परा नहीं है। मैं पहले भी कह चूका हूँ की यदि सरकार को या विभाग को मुझसे इतनी ही आपत्ति है तो बार बार नोटिस थमाने के बजाए मुझे तुरंत ससपेंड कर दे। ये ओछे हथकंडों से मुझे डराना बंद करें, मैं ऐसी धमकियों से डरने वाला नहीं हूँ। ये बात सच है की कुछ लोगों द्वारा सरकार और विभाग के अधिकारियों को भ्रमित किया जा रहा है। मैं सरकार से कहना चाहूंगा कि कुछ लोगों के साथ आप दो तीन बार बैठक कर चुके है, उन्हें आप बार बार समय दे रहे है, तो हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ जो की शिक्षकों का सबसे पुराना संगठन है उससे बात क्यों नहीं ? हमारी यही मांग है की हमारे साथ भी एक बैठक की जाए ताकि शिक्षकों के मुद्दों पर चर्चा हो सके।
सवाल: क्या पंजाब के छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से आप संतुष्ट है ?
जवाब : इस वेतन आयोग की सिफारिशों में संतुष्ट होने जैसा कुछ है ही नहीं। पंजाब में भी इसके खिलाफ खूब आंदोलन हो रहे है। इन प्रदर्शनों की वजह से पंजाब सरकार ये वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं कर पाई है। इस वेतन आयोग से कर्मचारी लाभान्वित नहीं होंगे बल्कि रिकवरी कर्मचारियों से हो सकती है। ये नया वेतनमान कर्मचारियों के अधिकारों का हनन है। यदि पंजाब की ओर से जारी सिफारिशों को ध्यान में रखा जाता है तो प्रदेश के शिक्षकों को नए वेतन आयोग से हर माह चार से पांच हजार का मासिक नुकसान उठाना पड़ेगा। इसके पीछे कारण यह है कि 2011 में वेतनमान संशोधित होने के साथ-साथ पुर्न संशोधन हुआ था, जिसके चलते शिक्षक वर्ग को ग्रेड-पे संशोधित होने से अधिकतम पांच हजार रुपये का हर माह अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुआ था। 2011 में शिक्षक वर्ग के अलावा लिपिक और कई श्रेणियों को रिविजन के तहत अधिक वित्तीय लाभ प्राप्त हुए थे। इस बार कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग में दो विकल्प दिए गए हैं। एक यदि आप बढे हुए ग्रेड पे से पहले का विकल्प लेते हैं तो वेतन मल्टीप्लायर 2.59 लगेगा। यानि आपका नया वेतन अभी के वेतन माइनस ग्रेड पे वेतन से 2.59 फीसदी ज्यादा होगा। और यदि 2011 के बढ़े हुए ग्रेड पे का विकल्प लेते हैं तो मल्टीप्लायर 2.25 लगेगा। इन विकल्पों से कर्मचारियों व शिक्षकों को जिनका 2011 में ग्रेड पे रिवाइज हुआ है, बहुत बड़ा झटका लगने वाला है। इसके साथ -साथ पंजाब के पे कमिशन में और भी बहुत सारी कटौती हैं जो पहले नहीं देखी गई थी। हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ की सरकार की ये मांग है कि सरकार प्रदेश के कर्मचारियों के हित में ही फैसला ले। हम ये वेतनमान हिमाचल में लागू नहीं होने देंगे, मैं हर कर्मचारी को ये आश्वासन देता हूँ।
सवाल : हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी नेताओं को लेकर ये धारणा बनी हुई है कि कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांग उठाने से ज्यादा अपनी राजनीति चमकाने में विश्वास रखते है, क्या आपके इरादे भी कुछ ऐसे ही है ? क्या आप आने वाले समय में किसी राजनीतिक दल में शामिल होंगे ?
जवाब : हिमाचल के कर्मचारी नेताओं पर ये बात बिलकुल सटीक बैठती है। हालाँकि ऐसा होना नहीं चाहिए पर सत्य को स्वीकारने में कोई बुराई नहीं है। एक एक विभाग में न जाने कितने संगठन है जिनमें आपस में कोई तालमेल नहीं। एक संगठन कर्मचारियों की मांग को उठाता है, सरकार के खिलाफ बोलता है तो दूसरा संगठन सरकार के पास जाकर चाटुकारिता करना शुरू कर देता है कि आप चिंता न करें हम हड़ताल या प्रदर्शन नहीं होने देंगे। ये राजनीति चमकाना ही तो है। इसमें नुकसान सिर्फ कर्मचारियों का होता है। कर्मचारी नेता कर्मचारियों की मांगें उठाने की बजाए अपने चहेतों को सेटल करने में व्यस्त रहते है। बाकि मेरी बात रही तो मैं आपको बता दूँ की आज तक मैंने सरकार से कोई निजी लाभ नहीं लिया है न कभी अपने लिए कोई गुहार लगाई है। मैंने शिमला शहर में आज तक कभी नौकरी नहीं की, न कभी मेरी पत्नी ने की। हमें जहां भी पोस्टिंग मिली हमने वहां जाकर पूरी निष्ठा से अपना काम किया। कई नेता है जिनके चहेते स्कूलों में नौकरी करने के बजाए डायरेक्टरेट में बैठे है जो बिलकुल गलत है। उनका वेतन स्कूलों से निकलता है मगर वो बैठते डायरेक्टरेट में है। इस तरह की सोच हमने कभी नहीं रखी। हमने अपने दम पर नौकरी की है, हम सिद्धांतों के पक्के लोग है। किसी राजनीतिक दल में मेरे शामिल होने का सवाल ही नहीं है। मैं कर्मचारी नेता हूँ, हमेशा रहूँगा। किसी पोलिटिकल पार्टी से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है न कभी होगा। मैं अपना पूरा जीवन शिक्षक और शिक्षार्थी हित के लिए समर्पित कर चूका हूँ।