करसोग : मुख्यमंत्री को पांगणा वासियों ने लिखा पत्र, ऐतिहासिक दुर्ग/मंदिर को बचा लो सरकार
सुकेत अधिष्ठात्री राजराजेश्वरी महामाया पांगणा का ऐतिहासिक किला व मंदिर शिकारी देवी के आंचल में बसे प्रकृति के अनूठे तिलस्मो के बीच गांव के मध्य ऊंची टेकड़ी पर स्थित है। पांगणा के साहित्यकार, समाज सेवी और पुरातत्व चेतना संघ मण्डी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणी कश्यप राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि इस ऐतिहासिक अलौकिक स्थल के विषय में सुकेत वंशावली, हचीसन और वोगल द्वारा लिखित हिस्ट्री आफ पंजाब हिल स्टेट्स, सुकेत गजेटियर सहित अनेक किताबों में लिखित साक्ष्य और किंवदंतियां इसे हिमाचल प्रदेश की गौरवशाली धरोहर का दर्जा प्रदान करती हैं। 825 फुट के घेरे मे सुघड़ पत्थरों और देवदार के पुष्ट शहतीरो की सहायता से 20 से 60 फुट ऊंची प्राचीरों को खड़ा कर सुकेत संस्थापक वीरसेन द्वारा बनाया यह अभेद्य किला दिन पर दिन क्षतिग्रस्त हो रहा है। इस किले की पूर्व-दक्षिण दीवार के बारिश के कारण क्षतिग्रस्त होने से किले के मध्य भाग मे बने सुकेत अधिष्ठात्री राज-राजेश्वरी महामाया के छः मंजिले स्मारक/मंदिर के आँगन में भी दरारें आ गई हैं। जिससे सुकेत रियासत की अंतिम कलात्मक धरोहर भी काल के गाल में समाने को व्यग्र है। इस धरोहर के विषय में सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाक्टर हिमेन्द्र बाली का कहना है कि पांगणा सुकेत की आदि राजधानी रही है। यहाँ 765 ईश्वी में बंगाल से आए सेन वंशज राजकुमार वीरसेन ने पांगणा में सुकेत रियासत की नींव रखी। वीरसेन ने पांगणा में कलकत्ता से अपनी इष्ट देवी राज-राजेश्वरी महामाया को पांगणा लाकर, किले में राज महल के शीर्ष तल में छठी मंजिल पर प्रतिष्ठित किया। महामाया इसी दुर्गनुमा मंदिर में पिछले 1256 वर्षों से प्रतिष्ठित है। सुकेत के सेन वंश के राजा बाहुसेन ने पांगणा से जाकर बल्ह के हाट में अलग राज्य की नींव रखी। बाद में बाहुसेन के वंशज बानसेन ने 1280 में मंडी रियासत की नींव रखी। महामाया पांगणा की सुकेत के सांस्कृतिक जीवन में अहम भूमिका रही है। सुकेत के सभी देव समुदाय महामाया को श्रद्धांजलि देने पांगणा आते रहते हैं। पांगणा में महामाया का 6 मंजिला दुर्ग/मंदिर हिमाचल की प्राचीन धरोहरों में से एक है। इस वर्ष की भारी बरसात में महामाया मंदिर परिसर का अग्रभाग ढह जाने से क्षतिग्रस्त हो गया। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, शिक्षा और संस्कृति मंत्री गोविंद ठाकुर और भाषा और संस्कृति विभाग के निदेशक डॉ पंकज ललित को महामाया मंदिर कमेटी के अध्यक्ष कुशल महाजन, महामाया मंदिर समिति के महासचिव अनुपम गुप्ता ग्राम पंचायत पांगणा के प्रधान बसंत लाल चौहान द्वारा पत्र लिखकर क्षतिग्रस्त हुई दीवार, किले व धरोहर रूपी स्मारक मंदिर की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा है कि यदि समय रहते इस दीवार का निर्माण नहीं हो पाया तो सहस्त्राब्दि पुरानी ऐतिहासिक धरोहर धराशही हो जाएगी। इसके साथ ही सुकेत- मंडी के गौरवमयी इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ भी विलुप्त हो जाएगा। चूंकि महामाया पांगणा के पहाड़ी शैली के इस उत्कृष्ट दुर्ग/मंदिर को देखने व शोध करने देश भर के विश्व विद्यालयो, आर्किटेक्चर शोद्धार्थियो व देश-विदेश के लोगों का निरंतर पांगणा में आना होता है। यदि यह धरोहर मिट गई तो मंडी की वैश्विक पहचान को गहरा आघात लगेगा। ग्राम पंचायत पांगणा, महामाया मंदिर कमेटी पांगणा ने मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित करते हुए इस पत्र में लिखा है कि हमारे पुरातात्विक महत्व के स्मारक हमारी धार्मिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार होते हैं। अतः इस प्रतिवेदन के माध्यम से आपके शीघ्र हस्तक्षेप की महता अपेक्षा रखते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि महामाया के दुर्ग/मंदिर के अग्रभाग की दीवार के जीर्णोद्धार के लिए अनुग्रह राशि यथाशीघ्र प्रदान कर इस स्मारक को बचाने की पहल करें। यह दुर्ग पांगणा के गर्भ क्षेत्र में होने के कारण मंदिर के साथ गुजरने वाला मार्ग भी धराशाई हो चुका है। अतः आमजन की रोजमर्रा की आवाजाही भी पूर्णतया बाधित हो गई है। अतः मुख्यमंत्री से पूर्ण अपेक्षा है कि इस विषय में त्वरित कार्यवाही कर ऐतिहासिक धरोहर को मिटने से बचाने में सहयोग कर अनुग्रहित करेंगे। इस विषय में ग्राम पंचायत पांगणा के प्रधान बसंत लाल चौहान का कहना है कि उन्होंने शिमला सचिवालय में जाकर भी इस विषय को मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया है।