ये शेर तो सुना होगा
हिंदी और उर्दू साहित्य में बड़े से बड़े कवियों और शायरों ने इश्क, दुनिया, दोस्ती, असबाब, गम, बेवफाई, रुसवाई सहित कई पहलुओं पर अपनी कविताएं और शायरी लिखी हैं। पेश है 20 बड़े शायरों के 20 बड़े शेर ।
1.दर्द को दिल में जगह दो अकबर
इल्म से शायरी नहीं होती
-अकबर इलाहाबादी
2. नाजुकी उन लबों की क्या कहिए
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है
मीर उन नीमबाज आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
-मीर
3. कितना है बदनसीब जफर दफ्न के लिए
दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में
-जफर
4. ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है
मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं
-नासिख लखनवी
5. लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में.
-बशीर बद्र
6. कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊंगा
मैं तो दरिया हूं समन्दर में उतर जाऊंगा
-अहमद नदीम क़ासमी
7. ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है.
-अल्लामा इकबाल
8. ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
-जिगर मुरादाबादी
9. यहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे
-बशीर बद्र
10. हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
-मिर्ज़ा गालिब
11. और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
12. हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
-मिर्ज़ा ग़ालिब
13. हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती
-अकबर इलाहाबादी
14. मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
-मजरूह सुल्तानपुरी
15. कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
-निदा फ़ाज़ली
16. ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
-मुज़फ़्फ़र रज़्मी
17. अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
-दिवाकर राही
18. बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता
-निदा फाजली
19. कहां तो तै था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
-दुष्यंत कुमार
20. वसीम सदियों की आंखों से देखिए मुझको
वो लफ्ज हूं जो कभी दास्तां नहीं होता
-वसीम बरेलवी