किन्नौर की जनजाति है किन्नर
सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हिमाचल की अति प्राचीन किन्नर जनजाति की पहचान के साथ जाने -अनजाने खिलवाड़ जारी है। देश में आज थर्ड जेंडर के लिए किन्नर शब्द का प्रयोग आम हो चला है। भारतवर्ष के सांस्कृतिक और साहित्यिक ग्रंथों में कहीं भी थर्ड जेंडर के लिए किन्नर शब्द का उल्लेख नहीं है। हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ, वेद-पुराण, उपनिषद, साहित्य-कृतियों में भी किन्नर का यह अर्थ नहीं है। फिर भी न जाने कब और कहां से थर्ड जेंडर के लिए किन्नर शब्द का प्रचलन शुरू हुआ और निरंतर किन्नौर के गौरव को खंडित करता आ रहा है। अज्ञानतावश आम लोग भी थर्ड जेंडर के लिए किन्नर शब्द का इस्तेमाल करने लगे है, जो किन्नौर की किन्नर जनजाति को अस्वीकार्य है। असल भय तो ये है कि यदि इस शब्द के गलत प्रचलन पर विराम न लगाया गया तो आने वाली पीढ़ियां भूलवश गौरवशाली किन्नर जनजाति को भी थर्ड जेंडर ही मानेंगी।
जिला किन्नौर प्राचीन किन्नर देश के इतिहास और संस्कृति के आधार पर गठित हुआ है और वहां निवास करने वाली जनजाति 'किन्नौरा' और 'किन्नर' के नाम से जानी जाती है। भारत के संविधान में भी जनजातियों के रूप में ‘किन्नर’ और ‘किन्नौरा’ दर्ज हैं। जिला किन्नौर के निवासियों को जब जनजाति प्रमाण पत्र दिया जाता है तो उसमें स्पष्ट लिखा जाता है 'दि पीपल ऑफ किन्नौर डिस्ट्रिक्ट बिलोंग्स टू किन्नौरा और किन्नर ट्राइब', विच इज रिकगनाइज्ड एस शेड्यूल ट्राइब अंडर दि शेड्यूल ट्राइब लिस्ट ऑर्डर 1956 एंड दि स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश एक्ट 1970।' बावजूद इसके जाने -अनजाने इस जनजाति की अस्मिता से खिलवाड़ हो रहा है।
विधानसभा ने पास किए निंदा प्रस्ताव, पर निष्कर्ष क्या ?
हिमाचल विधानसभा में दो बार भाजपा और कांग्रेस के कार्यकालों में किन्नर शब्द के गलत इस्तेमाल को लेकर निंदा प्रस्ताव भी पारित हो चुके हैं। पर ये निंदा प्रस्ताव किसी खानापूर्ति से ज्यादा सिद्ध नहीं हुए। किन्नर शब्द के गलत प्रचलन को लेकर जिस जोश से मुद्दा उठा था, वह अब लगभग शांत है। आज भी बदस्तूर किन्नर शब्द हिजड़ों के लिए प्रयोग हो रहा है। जाने -अनजाने हम सभी ऐसा कर रहे है।
किन्नर/किन्नौरा जनजाति की अस्मिता पर संकट : एसआर हरनोट
जाने माने लेखक एसआर हरनोट ने इस विषय को लेकर लम्बी लड़ाई लड़ी है। प्रदेश सरकार से लेकर केंद्र तक एसआर हरनोट इस विषय को उठाते रहे है। उनका कहना है कि थर्ड जेंडर के लिए किन्नर शब्द का प्रयोग किन्नर/किन्नौरा जनजाति की अस्मिता पर संकट है। किसी भी प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ, वेद-पुराण, उपनिषद, शब्द कोष, साहित्य-कृतियों में 'किन्नर' शब्द 'थर्ड जेंडर' के लिए इस्तेमाल नहीं हुआ है। जो लोग इस शब्द का गलत संदर्भ में प्रयोग कर रहे हैं, वह अज्ञानतावश है। हरनोट मानते है कि यह संकट पिछले कुछ साल से मीडिया में हिजड़ा या थर्ड जेंडर के लिए ईजाद किए गए ‘किन्नर‘ शब्द के कारण उत्पन्न हुआ है। ये विडम्बना का विषय है कि आज मीडिया भी थर्ड जेंडर के लिए भूलवश ‘किन्नर’ शब्द का प्रयोग करती हैं, जो संवैधानिक रूप से गलत है। एसआर हरनोट के मुताबिक देश की पहली थर्ड जेंडर विधायक शबनम मौसी ने खुद माना था कि किन्नर शब्द मीडिया ने दिया है।
‘ट्रैफिक सिग्नल’ नहीं हुई थी रिलीज़, पर असर क्या हुआ ?
वर्ष 2007 में मधुर भंडारकर की एक फिल्म आई थी ‘ट्रैफिक सिग्नल’। फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर ने अपनी फिल्म के रिलीज होने से पहले जितने भी साक्षात्कार दिए थे उनमें प्रमुखता से हिजड़ा समुदाय को किन्नर कह कर पुकारा गया था। जाहिर है ऐसे में हिमाचल में फिल्म रिलीज होने से पहले ही इस बात को लेकर बवाल मचना ही था। ऐसे में प्रदेश सरकार ने किन्नौर वासियों और संस्कृति के साथ इस तरह का खिलवाड़ होते देख इस फिल्म के हिमाचल में रिलीज होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये फिल्म बेशक हिमाचल में रिलीज़ नहीं हुई लेकिन आज भी टीवी सिनेमा जगत में थर्ड जेंडर के लिए खुलकर किन्नर शब्द का इस्तेमाल जारी है। शायद व्यावसायिक दृष्टिकोण से हिमाचल एक बड़ा बाजार नहीं है, इसलिए फिल्म और सिनेमा जगत ने हिमाचल की आवाज़ को सुनी अनसुनी कर दिया।
'किन्नर' एक उपनाम भी है
किन्नौर के लोगों द्वारा 'किन्नर' उपनाम भी लिखा जाता रहा है। हालांकि अब किन्नर उपनाम देखकर लोग हिजड़ा समझने की भूल कर बैठते हैं। इसलिए लोग इस पहचान से कतराने लगे हैं। ऐसी में कई वाक्ये हुए है जहाँ बुद्धिजीवियों ने भी किन्नर उपनाम को थर्ड जेंडर समझने की बड़ी भूल कर दी।
विडम्बना : तमाम साहित्य और शोध पर भी प्रश्नचिन्ह !
किन्नर शब्द का गलत इस्तेमाल एक ऐसा सांस्कृतिक मुद्दा है जिस पर न केवल अकेले किन्नौर वासियों की अस्मिता दांव पर है बल्कि उस तमाम साहित्य और शोध पर भी प्रश्नचिह्न है जो इस सन्दर्भ में उपलब्ध है। पंडित राहुल सांकृत्यायन ने किन्नर जाति के सांस्कृतिक महत्व पर 'किन्नर देश में' पुस्तक लिखी है। उनके अनुसार यह किन्नर देश है। इसी तरह हिमाचल कला, भाषा और संस्कृत अकादमी के सचिव रहे डा. बंशी राम शर्मा ने किन्नौर और किन्नर जनजाति पर शोध किया और उनका यह शोध ग्रन्थ ‘किन्नर लोक साहित्य' शीर्षक से प्रकाशित है। इसे किन्नौर पर प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है। इस पुस्तक में अनेक प्रमाण देकर यह सिद्ध किया गया है कि वर्तमान किन्नौर में रहने वाले निवासी किन्नर जाति से सम्बन्धित हैं।
महाकवि भारवि ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ किरातार्जुनीयम् महाकाव्य के हिमालय वर्णन खण्ड के पांचवे सर्ग में किन्नर, गन्धर्व, यक्ष तथा अप्सराओं आदि देव-योनियों के किन्नर देश में निवास होने का वर्णन किया है। इसी प्रकार कई संस्कृत ग्रंथों में किन्नरी वीणा का उल्लेख हुआ है। चन्द्र चक्रवती ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘लिटरेरी हिस्टरी ऑफ़ एन्शियंट इंडिया' में लिखा है कि किन्नर कुल्लू घाटी, लाहुल और रामपुर में सतलुज के पश्चिमी किनारे पर तिब्बत की सीमा के साथ रहते हैं। ऐसे अनेक साहित्य उपलब्ध है जहाँ किन्नर जाती का जिक्र है। पर आज किन्नर शब्द का गलत इस्तेमाल इस तमाम साहित्यिक विरासत पर भी प्रश्न चिन्ह है।
देखते -देखते किन्नर अखाड़ा भी स्थापित हो गया :
हिजड़ा समुदाय द्वारा 2018 में एक अखाड़ा स्थापित किया गया जिसे किन्नर अखाड़ा का नाम दिया गया। यह जूना अखाड़ा (श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा) के अधीन है। धर्मनगरी हरिद्वार में हुए महाकुम्भ में भी पहली बार किन्नर अखाड़ा शामिल हुआ था। थर्ड जेंडर या हिजड़ा समुदाय के संवैधानिक अधिकारों के प्रति पूरा मुल्क एक है, सबकी संवेदनाएं इस समुदाय के साथ है। पर ये मसला शायद जाने -अनजाने एक ऐसी भूल का है जिससे आज किन्नौर वासी आहत है। हिमाचल में बीते दो दशक से इस मुद्दे पर चर्चा होती आ रही है, विधानसभा में निंदा प्रस्ताव पास होने से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखे गए है, बावजूद इसके देखते -देखते जिस तरह थर्ड जेंडर के लिए किन्नर शब्द का इस्तेमाल आम हुआ है, उसके लिहाज से ये तय है कि इस मुद्दे की लड़ाई अभी लम्बी है। यक़ीनन जरुरत है एक सशक्त संवाद स्थापित करने की, ताकि हिजड़ा समुदाय के साथ भी तार्किक मंथन किया जा सके। यक़ीनन जरुरत है प्रसार की, ताकि जाने -अनजाने किसी से ये भूल न हो।