जानें लाहौल-स्पीति का इतिहास, जहां से हुई महिलाओं को 1500 रुपये सम्मान निधि देने की शुरुआत
हिमाचल प्रदेश में महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपये सम्मान निधि देने के लिए प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इंदिरा गांधी प्यारी बहना सम्मान निधि योजना की शुरुआत की है। प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 25 फरवरी को जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति से यह योजना लांच की है। इस योजना के तहत राज्य की करीब 2.42 लाख महिलाओं को अब हर महीने 1500 रुपये पेंशन दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने इस योजना को जिस जिले से शुरू किया है, उसका भी अपना एक अलग ऐतिहासिक एवं भौगोलिक महत्व है।
लाहौल और स्पीति को जोड़कर बना जिला 'लाहौल-स्पीति'
इस जिले का इतिहास दो अलग-अलग स्थानों से मिलकर बना है। एक लाहौल और दूसरा स्पीति। प्रशासनिक सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए 1941 ई. में इन दोनों को एक उप तहसील बना कर कुल्लू तहसील के अंतर्गत रखा गया था, जिसे प्रशासनिक सुविधाओं को ध्यान में रखते 1960 में पंजाब के कांगड़ा जिले से कुछ भाग अलग करके लाहौल-स्पीति नामक नये जिले के रूप में हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया।
इतिहासकारों के अनुसार, लगभग 1000 ईसा पूर्व कोलोंग परिवारों ने लाहौल पर तीन से चार सौ वर्षों तक शासन किया था। लेकिन कोलोंग परिवार का वह शासन स्पीति राजा के अधीन हुआ करता था और बाद में लाहौल भी स्पीति की तरह लद्दाख सल्तनत में शामिल हो गया। बदलते समय के साथ सत्ता के कई पड़ावों से गुजरते हुए 1947 में देश की आजादी के समय नायब तहसीलदार लाहौल का प्रशासनिक कामकाज देखते थे और कोलांग प्रशासन का मुख्यालय हुआ करता था। जब लाहौल-स्पीति को जिला बनाया गया तो कोलोंग (आज का केलांग) को तहसील का दर्जा दिया गया।
किस धर्म को मानते हैं जिले के लोग
बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म दो प्रमुख धर्म हैं, अधिकांश लोग दोनों के मिश्रण का पालन करते हैं। तिब्बत के बॉन धर्म के समान लुंग पे छोई इन दोनों से पहले लोकप्रिय हुआ करता था। इस धर्म के अनुयायी नियमित रूप से उन आत्माओं को पशु और मानव बलि देते थे जिनके बारे में माना जाता था कि वे प्राकृतिक दुनिया में निवास करती हैं।
स्पीति में भोटिया परिवार तिब्बती बौद्ध धर्म से गेलुग्पा बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। की, काजा, धनकर और ताबो में कई महत्वपूर्ण बौद्ध मठ स्थित हैं। लाहौली के लोग ज्यादातर तिब्बती बौद्ध धर्म के द्रूक्पा काग्यू आदेश का पालन करते हैं। फिर कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जिनमें हिंदू और बौद्ध मूर्तियों और रीति-रिवाजों का मिश्रण है। त्रिलोकीनाथ मंदिर अधिक प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। हिंदू और बौद्ध धर्म की तमाम विरासतों को समेटे लाहौल सदियों से एकता की अद्भुत मिसाल रहा है। बौद्ध धर्म जहां तिब्बत से आया, वहीं दूसरी ओर पंजाब के प्रभाव से हिंदू धर्म लाहौल की आबोहवा में घुल-मिल गया। लाहौल की पट्टन घाटी में हिंदू धर्म के लोग रहते हैं, जबकि रंगोली और गारा घाटियों में बौद्ध मंत्र गूंजते हैं।
जीवन शैली और व्यवसाय
लाहौल और स्पीति में बुनियादी जीवन शैली समान इलाके और मौसम की स्थिति के कारण काफी हद तक समान है। अधिकांश लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि और पशु पालन (बकरियां, याक, भेड़) पर निर्भर हैं। पर्यटन, हस्तशिल्प और सरकारी नौकरियों में भी संख्या बढ़ रही है। कुछ सतही अंतरों के अलावा मकान कमोबेश एक ही तिब्बती डिजाइन में सपाट छतों के साथ बनाए जाते हैं। छतों पर लकड़ी, भूसा और गोबर के रूप में ईंधन का भंडारण किया जाता है।
तमाम मुश्किलों के बावजूद लाहौलियों के चेहरे पर न शिकन, न थकान
लाहौल घाटी हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति जिले का वह हिस्सा है, जहां लाहौली जनजाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी अपना इतिहास जीते आ रहे हैं। तमाम मुश्किलों के बावजूद लाहौलियों के चेहरे पर न तो कोई शिकन है और न ही कोई थकान। अपनी मिट्टी से गहरा लगाव उनके चेहरे पर मुस्कान बिखेर देता है और अपने हौसलों की बदौलत वह जिंदगी का सफर कदम-दर-कदम तय कर रहे हैं।