कुल्लू: रघुनाथ जी का शिविर आकर्षण का केंद्र, चार बार पूजा और सात बार होती है आरती

अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान कुल्लू रघुराई में रम गया है। ढालपुर मैदान में पहुंचे देवी-देवताओं की सुबह छह बजे से पूजा का क्रम शुरू होता है। पूजा में सबसे अहम भगवान रघुनाथ की आरती होती है। दिन में चार बार पूजा और सात बार भगवान रघुनाथ जी की आरती की जाती है। दिनभर रघुनाथ जी के अस्थायी शिविर में भजन-कीर्तन और बीच में देवता भी आराध्य के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं। हालांकि सुल्तानपुर स्थित मंदिर में भी रघुनाथ जी की पूजा और आरती का यही क्रम है। वहां देवी-देवता कभी कभार आते हैं और श्रद्धालु भी कुछ खास नहीं पहुंचते जितने दशहरा के दौरान होते हैं। सुबह सबसे पहले रघुनाथ जी को उठाने के लिए आरती की जाती है। फिर पूजा होती है। इसके बाद स्नान आरती होती है और फिर मध्यन पूजा की जाती है। इसके बाद शयन आरती और सेजा आरती होती है। भगवान रघुनाथ की चौथे पहर की पूजा की जाती है। इसके बाद सायं काल की आरती होती है।इसके बाद अंतिम चुघडी आरती होती है।
हर दिन भगवान रघुनाथ जी का आभूषणों और सुंदर वस्त्रों से शृंगार किया जाता है। दशहरा के लिए हर वर्ष रघुनाथ जी के नए वस्त्र तैयार किए जाते हैं। राज परिवार की महिलाएं वस्त्र तैयार करती हैं। हर दिन वस्त्र बदले जाते हैं। शाम को आरती के बाद रघुनाथ जी, माता सीता और हनुमान जी के दर्शन सभी श्रद्धालुओं को करवाए जाते हैं। छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने रघुनाथ जी की पूजा की। बड़ी पूजा यानी स्नान व इसके बाद शृंगार का विशेष महत्व होता है। बड़ी पूजा के बाद भोजन होता है। दशहरा उत्सव में रघुनाथ जी का अस्थायी शिविर आकर्षण का केंद्र रहता है। भगवान रघुनाथ जी प्रतिदिन माता सीता के साथ अस्थायी शिविर में अपने सिंहासन पर विराजमान होते हैं। रघुनाथ जी के दर्शन के लिए श्रद्धालु तो पहुंचते ही हैं, देवी-देवता भी अस्थायी शिविर में आते हैं। पूजा के बाद यहां दिनभर श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हैं।