लाहौल : विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य पर किया गया पौधरोपण
वनों का आदिवासी समाजों के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। पर्यावरण में हो रहे बदलावों के चलते वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर पौधरोपण करने की आवश्यकता है। यह बात आज विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य पर लाहौल में वैज्ञानिक आधार पर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा शाशूर में आयोजित पौधरोपण अभियान के अवसर पर उपायुक्त नीरज कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि लाहौल में जिस प्रकार से जलवायु में बदलाव हो रहे हैं उसके चलते यहां पर वैज्ञानिक विधि के अनुसार पौधरोपण की महती आवश्यकता है। नदी और नालों के साथ पड़ने वाले कैचमेंट एरिया में पौधे लगाने का कार्य किया जाएगा ताकि नालों में जलप्लावन की स्थिति से होने वाले नुकसान को रोका जा सके। वृक्षारोपण से काफ़ी हद तक तेज़ पानी का वेग नियंत्रण में रहता है। हाल ही में लाहौल में अतिवर्षा के कारण आई प्राकृतिक आपदा की स्थिति में नदी नालों के साथ वृक्ष लगाकर काफ़ी हद तक नुकसान होने से रोका जा सकता है। साथ ही साथ पिघलते ग्लेशियरों की तेज़ गति को कम किया जा सकता है क्योंकि प्रचुर मात्रा में हिमपात होने से ग्लेशियरों में साल भर बर्फ़ रहती है जो कि सन्तुलित मात्रा में हमें जल की आपूर्ति करती रहती है। उपायुक्त ने शाशूर गोम्पा के पास देवदार का पौधा रोपकर इस अभियान का शुभारंभ किया।
उन्होंने कहा कि 9 अगस्त को पूरे विश्व में आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष इसे 'लीविंग नो वन बिहाइंड' सूत्रवाक्य के साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर आईसीएमआर की वैज्ञानिक डॉ तनुजा मिश्रा, मैडिकल ऑफ़िसर डॉ राहुल, वन विभाग के अजय कुमार सहित आईसीएमआर के स्टाफ़ सदस्य उपस्थित रहे।