कारगिल युद्ध के नायक
1. कैप्टेन विक्रम बत्रा
विक्रम बत्रा भारतीय सेना के वो ऑफिसर थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की। इसके बाद उन्हें भारत के वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया। ये वो जाबाज़ जवान है जिसने शहीद होने से पहले अपने बहुत से साथियों को बचाया और जिसके बारे में खुद इंडियन आर्मी चीफ ने कहा था कि अगर वो जिंदा वापस आता, तो इंडियन आर्मी का हेड बन गया होता। परमवीर चक्र पाने वाले विक्रम बत्रा आखिरी हैं। 7 जुलाई 1999 को उनकी मौत एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए हुई थी। इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था, ‘तुम हट जाओ. तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं’।
2. लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर जिले के रुधा गांव में हुआ था। वे बतौर कमीशंड ऑफिसर 1/11 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में भर्ती हुए। पांडेय को निर्णायक युद्ध के लिए 2-3 जुलाई 1999 को कूच किया। अपनी कार्रवाई के दौरान लेफ्टिनेंट मनोज ने सफलतापूर्वक दुश्मन के दो बंकर ध्वस्त किये। जब वे तीसरे बंकर की तरफ बढ़ रह थे तो दुश्मन की तरफ से आई गोली ने लेफ्टिनेंट मनोज के कंधे और टांगों को जख्मी कर दिया। गंभीर रूप से जख्मी होने के बावजूद लेफ्टिनेंट मनोज दुश्मन का तीसरा बंकर भी ध्वस्त करने में सफल रहे। इसके बाद वो चौथे बंकर की तरफ बढे, बंकर को ध्वस्त करने के लिए वह ग्रेनेड फेंकने ही वाले थे, की तभी चौथे बंकर से दुश्मन ने मशीनगन से फायर शुरू कर दिया। लेफ्टिनेंट मनोज के माथे पर गोली लगी ,जिसके बावजूद लेफ्टिनेंट मनोज ने दुश्मन के चौथे बंकर में ग्रेनेड फेंका था। इस ग्रेनेड के धमाके के साथ बंकर में मौजूद सभी दुश्मन मारे गए। महज 24 साल के उम्र में युद्ध कौशल, पराक्रम और वीरता का अभूतपूर्व प्रदर्शन करने वाले लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया।
3. राइफल मैन संजय कुमार
परमवीर राइफल मैन संजय कुमार, वो जबाज़ सिपाही है जिन्होंने कारगिल वॉर के दौरान अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को उसी के हथियार से धूल चटाई थी। लहूलुहान होने के बावजूद संजय कुमार तब तक दुश्मन से जूझते रहे थे, जब तक प्वाइंट फ्लैट टॉप दुश्मन से पूरी तरह खाली नहीं हो गया। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले से भारतीय सेना में भर्ती हुए सूबेदार संजय कुमार की शौर्यगाथा प्रेरणादायक है। 4 जुलाई 1999 को राइफल मैन संजय कुमार जब चौकी नंबर 4875 पर हमले के लिए आगे बढ़े तो एक जगह से दुश्मन ऑटोमेटिक गन ने जबरदस्त गोलीबारी शुरू कर दी और टुकड़ी का आगे बढ़ना कठिन हो गया। ऐसी स्थिति में गंभीरता को देखते हुए राइफल मैन संजय कुमार ने तय किया कि उस ठिकाने को अचानक हमले से खामोश करा दिया जाए। इस इरादे से संजय ने यकायक उस जगह हमला करके आमने-सामने की मुठभेड़ में तीन पाकिस्तानियों को मार गिराया। अचानक हुए हमले से दुश्मन बौखला कर भाग खड़ा हुआ और इस भगदड़ में दुश्मन अपनी यूनिवर्सल मशीनगन भी छोड़ गए। संजय कुमार ने वो गन भी हथियाई और उससे दुश्मन का ही सफाया शुरू कर दिया।
4. ग्रिनेडियर योगेंद्र सिंह यादव
सबसे कम आयु में ‘परमवीर चक्र’ प्राप्त करने वाले वीर योद्धा योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद के औरंगाबाद अहीर गांव में 10 मई, 1980 को हुआ था। 27 दिसंबर, 1996 को सेना की 18 ग्रेनेडियर बटालियन में भर्ती हुए योगेंद्र की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सेना की ही रही है। कारगिल युद्ध में योगेंद्र का बड़ा योगदान है। उनकी कमांडो पलटन 'घटक' कहलाती थी। उसके पास टाइगर हिल पर कब्जा करने के क्रम में लक्ष्य यह था कि वह ऊपरी चोटी पर बने दुश्मन के तीन बंकर काबू करके अपने कब्जे में ले। इन बंकरों तक पहुंचने के लिए ऊंची चढ़ाई करनी थी। ये चढ़ाई आसान नहीं थी। मगर प्लाटून का नेतृत्व कर रहे योगेन्द्र यादव ने इसे संभव कर दिखाया। इस संघर्ष के दौरान उनके शरीर में 15 गोलियां लगी थी, लेकिन वह झुके नहीं और भारत को जीत दिलाई।