ज़रा याद करो वो कुर्बानी
मैं जला हुआ राख नहीं, अमर दीप हूँ, जो मिट गया वतन पर, मैं वो शहीद हूँ। देश की रक्षा के लिए कारगिल युद्ध में अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए वीरभूमि हिमाचल के वीर जवानों ने ऐसा इतिहास लिखा जिसका जिक्र करते ही गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है। 6 जुलाई 1999 को दो माह तक पाकिस्तान के साथ चली जंग में भारत ने विजय तो हासिल की, लेकिन इसमें हिमाचल प्रदेश के भी 52 वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर विजय गाथा लिखी। वीरभूमि हिमाचल के जिला कांगड़ा से सर्वाधिक जवान शहीद हुए। मंडी जिला के भी 12 जवानों ने शहादत पाई थी। कारगिल युद्ध में शौर्य गाथा लिखने पर हिमाचल के वीरों को दो परमवीर च्रक, पांच वीर चक्र, नौ सेना मेडल, एक युद्ध सेना मेडल, दो उत्तम युद्ध सेना मेडल व दो जवानों को मेंशन इन डिस्पेचीज से सम्मानित किया गया है। इन शहीद हुए वीर जवानों में कैप्टन विक्रम बत्तरा एवं कैप्टन कालिया पालमपुर से, ग्रेनेडियर विजेंद्र सिंह देहरा से, नायक ब्रह्म दास नगरोटा से, राइफल मैन राकेश कुमार गोपालपुर से, राइफलमैन अशोक कुमार एवं नायक वीर सिंह जवाली से, नायक लखवीर सिंह, राइफलमैन संतोष सिंह और राइफलमैन जगजीत सिंह नूरपुर से, हवलदार सुरेंद्र सिंह, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह ज्वाली से, राइफलमैन जंग महत धर्मशाला से थे। इसके अलावा ग्रेनेडियर सुरजीत सिंह देहरा और नायक पद्म सिंह इंदौरा से संबंध रखते थे, जिन्होंने करगिल ऑप्रेशन में घुसपैठियों को खदेड़ने में अदम्य साहस का परिचय दिया। करगिल की जीत का सेहरा कई सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर बांधा था। भारत के जाबांजों ने जब अपना शौर्य दिखाया होगा और हंसते हुए सीने पर गोलियां खाई होंगी तो पाकिस्तान की कब्जे में कैद निसप्राण करगिल की पहाड़ियों ने भी उन माताओं को नमन किया होगा जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया था।
कैप्टन सौरभ कालिया
कारगिल युद्ध के पहले शहीद थे कैप्टन सौरभ कालिया। पालमपुर के कैप्टन सौरभ कालिया की शहादत की गाथा सुनने मात्र से हर इंसान की रूह तक थरथराने लग जाती है। कालिया की उम्र सिर्फ 22 वर्ष थी, माता - पिता ने उन्हें वर्दी में निहारा भी नहीं था और अभी पहली सैलरी भी नहीं पहुंची थी कि सौरभ कालिया ने अपनी सांसे भारत माता की रक्षा में त्याग दिया। उस समय कारगिल युद्ध शुरू भी नहीं हुआ था जब कप्तान सौरभ कालिया अपने 5 साथियों के साथ पेट्रोलिंग पर थे और पाकिस्तानी सैनिकों ने इनपर हमला किया। हमले से अज्ञात होने के कारण कप्तान के पास असला कम था पर वो अपनी सूझबूझ के बुते दुश्मनों से लड़ते रहे। लेकिन जब गोलियां खत्म हुई तो पाकिस्तानी दुश्मनों ने उन्हें बंधी बना दिया। दुश्मनों ने 22 दिनों तक इन्हें बंधक बनाकर रखा और क्रूरता का वो रूप दिखाया जिसे सोचना भी नामुमकिन सा है। दुश्मनों ने उन्हें कई अमानवीय यातनाएं दी गई। कानो के पर्दे पहाड़ दिए हड्डियां तोड़ दी गयी, नाख़ून उखाड़ लिए गए, उनकी आंखे फोड़ दी गयी और जब इससे भी दिल नहीं भरा तो उनके शरीर के टुकड़े कर दिए गए। जब कैप्टन सौरभ कालिया का शव पैतृक गाँव पहुंचा तो परिजनों को शरीर मिला तो सिर्फ क्षत-विक्षत हालत में।
विक्रम बतरा की हुंकार से दहशत में आ जाता था दुश्मन
शहीद हुए नामों में एक ऐसा नाम भी है जो आज तक सभी के दिलों में बस्ता है ये नाम है कप्तान विक्रम बत्रा। विक्रम बत्रा का जन्म हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना जिस शेरशाह के नाम से डर जाती थी उन्हें आज भी सारा देश सलाम करता है। बात 1 जून 1999 की है विक्रम बत्रा की टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग की सबसे महत्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने की जिम्मेवारी कैप्टन विक्रम बत्रा को सौंपी गई। दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 की सुबह 5140 चोटी को सेना ने अपने कब्जे में ले लिया। विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष "यह दिल मांगे मोर"' कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया। विक्रम का अगला ऑपरेशन कारगिल के दौरान किए गए सबसे कठिन पर्वतीय युद्ध अभियानों में से एक था - 17000 फीट ऊंचे प्वाइंट 4875 पर कब्जा। मिशन लगभग खत्म हो गया जब एक जूनियर अधिकारी ने एक विस्फोट में अपने पैरों को घायल कर दिया। बिना डरे विक्रम उसे बचाने के लिए आगे गए। भारी गोलाबारी के बावजूद उन्होंने दुश्मन की मशीन गन पोस्ट पर हैंड ग्रेनेड्स फेंके और घायल लेफ्टिनेंट की ओर बढ़ते हुए करीब पांच सैनिकों को मार गिराया। वो अपने साथी को बचा कर वापिस ले ही जाने वाले थे की उनके सीने में गोली लग गयी और वो वो अपने साथी को बचाते-बचाते शहीद हो गए। अपने निर्भीकता के लिए कप्तान विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
राइफलमैन संजय कुमार
कारगिल युद्ध के दौरान कुल चार परमवीर चक्र विजेता रहें है, जिनमे में से दो हिमाचल प्रदेश के सुपूत है। एक कप्तान बत्रा और दूसरे है राइफलमैन संजय कुमार। यह इकलौते वो जवान है जिन्होंने अपने हाथों से ये सम्मान ग्रहण किया। एक ऐसे जवान जो बिना डरे लड़े और ज़िंदा वापिस लौटे भी। राइफल मैन संजय कुमार ने कारगिल युद्ध के दौरान अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को उसी के हथियार से मौत के घाट उतारा। लहुलुहान होने के बावजूद संजय कुमार तब तक दुश्मन से जूझते रहे थे, जब तक प्वाइंट फ्लैट टॉप दुश्मन से पूरी तरह खाली नहीं हो गया। 4 जुलाई 1999 को राइफल मैन संजय कुमार जब चौकी नंबर 4875 पर हमले के लिए आगे बढ़े तो एक जगह से दुश्मन ऑटोमेटिक गन ने जबरदस्त गोलीबारी शुरू कर दी और टुकड़ी का आगे बढ़ना कठिन हो गया। ऐसी स्थिति में राइफल मैन संजय कुमार ने तय किया कि उस ठिकाने को अचानक हमले से खामोश करा दिया जाए। इस इरादे से संजय ने यकायक उस जगह हमला करके आमने-सामने की मुठभेड़ में तीन पाकिस्तानियों को मार गिराया और उसी जोश में गोलाबारी करते हुए दूसरे ठिकाने की ओर बढ़े। संजय इस हमले में खुद भी लहू लुहान हो गए थे, लेकिन वो अपनी फिक्र किये बगैर दुश्मन पर शेर की तरह टूट पड़े। अचानक हुए हमले से दुश्मन बौखला कर भाग खड़ा हुआ और इस भगदड़ में दुश्मन अपनी यूनीवर्सल मशीनगन भी छोड़ गए। संजय कुमार ने वो गन भी हथियाई और उससे दुश्मन का ही सफाया शुरू कर दिया। जख्मी होने के बावजूद संजय कुमार तब तक दुश्मन से जूझते रहे थे,जब तक कि प्वाइंट फ्लैट टॉप पाकिस्तानियों से पूरी तरह खाली नहीं हो गया। राइफलमैन संजय कुमार को इस वीरता के लिए भारत सरकार की ओर से देश के सबसे बड़े सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया।
ब्रिगेडियर खुशाल सिंह
पहली चोटी तोलोलिंग और सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल पर विजय पताका फहराने का सौभाग्य हिमाचल के मंडी जिले के नगवाईं के खुशाल ठाकुर और उनकी यूनिट 18 ग्रेनेडियर को प्राप्त हुआ था। ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर बताते है कि अपनी यूनिट के साथ कश्मीर घाटी में आतंकवाद से लड़ रहे थे। उनकी यूनिट को तुरंत ही कारगिल बुलाकर तोलोलिंग फतह करने के अभियान में लगा दिया गया। वे भूल नहीं पाते कि वे किस प्रकार इस लड़ाई में उनके नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर के बहादुरों ने कैसे अपना लोहा मनवाया था। तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने की कोशिश में 18 ग्रेनेडियर के 4 अधिकारियों सहित 25 जवान शहीद हुए। राजपूताना राइफल्ज के 3 अधिकारियों सहित 10 जवान शहीद हुए। सबसे पहले मेजर राजेश अधिकारी शहीद हुए। एक बड़े नुकसान के बाद कर्नल खुशाल ठाकुर ने स्वयं मोर्चा संभालने की ठानी और अभियान को सफल बनाया। 13 जून 1999 की रात को 18 ग्रेनेडियर व 2 राजपूताना राइफल्ज ने 24 दिन के रात-दिन संघर्ष के बाद तोलोलिंग पर कब्जा किया, परंतु तोलोलिंग की सफलता बहुत महंगी साबित हुई। इस संघर्ष में लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन बुरी तरह घायल हुए और अंतत: कर्नल खुशाल ठाकुर की गोद में प्राण त्याग कर वीरगति को प्राप्त हुए। भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने इस विजय और ऐतिहासिक अभियान के लिए 18 ग्रेनेडियर को 52 वीरता सम्मानों से नवाजा, जो भारत के सैन्य इतिहास में एक रिकॉर्ड है।
कैप्टन दीपक गुलेरिया
कारगिल युद्ध में हिमाचल प्रदेश से 52 सूरमाओं ने अपनी जान देने वाले जवानों में से एक थे मंडी जिले के सरकाघाट से कैप्टन दीपक गुलेरिया। उन्होंने महज 29 साल की उम्र में अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन्हें उनके इस बलिदान के लिए गैलेंट्री अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।
हवलदार डोला राम
कुल्लू जिला के नित्थर क्षेत्र के गांव शकरोली में जन्मे हवलदार डोला राम को बचपन से देश के प्रति अटूट प्रेम था। दसवीं की परीक्षा के बाद विद्यार्थी जीवन से ही उनमें देश सेवा का जज्बा था। वह पांच अगस्त, 1985 को प्रथम पैराशूटर रेजिमेंट में भर्ती हुए। तीन जुलाई, 1999 को कारगिल के द्रास सेक्टर में मुठभेड़ में अंतिम सास तक बहादुरी से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए। ऑपरेशन रक्षक में सम्मिलित डोला राम ने द्रास सेक्टर में जीवन बलिदान किया था।
अमोल कालिया
कारगिल से एक जून को अमोल कालिया का लिखा खत नौ जून को घर पहुंचा था। कारगिल अमर शहीद कैप्टन अमोल कालिया शादी की तिथि निकलनी थी. खत में लिखा था पापा जून के अंत में आऊंगा, आप तैयारियां शुरू कर दो। यहां सब ठीक है, बस दूसरी तरफ से घुसपैठ चल रही है, उसे जल्द निपटा लेंगे। परिवार बेटे के इंतजार में व्याकुल बैठे थे। लेकिन पाकिस्तानी सेना की ओर से कारगिल में घुसपैठ की गई तो उस दौरान दुश्मन सेना के साथ लोहा लेते दर्जनों पाकिस्तानी सेना के घुसपैठियों को मौत की नींद सुलाने व चौकी नंबर 5203 पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद नौ जून 1999 को दुश्मन सेना की गोली लगने से शहीद हुए। कैप्टन अमोल कालिया को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
ग्रेनेडियर यशवंत सिंह
शिमला जिला के जांबाज यशवंत सिंह रणभूमि में भारत मां पर कुर्बान हुए थे। उनका पवित्र पार्थिव शरीर शिमला के रिज मैदान पहुंचा था। दर्शन के लिए हजारों की भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अंतिम दर्शन करने के लिए कतार में खड़ी थी। उस दिन रिज मैदान पर तिल धरने को जगह नहीं थी। भारत की बहादुर सेना ने 26 जुलाई को कारगिल की सभी चोटियां दुश्मन से आजाद करवा ली थी। इस युद्ध में हिमाचल के दो शूरवीरों कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार को परमवीर चक्र मिला।
कारगिल युद्ध में शहीद हुए हिमाचल के यह जवान
-कैप्टन विक्रम बतरा, पीवीसी (पालमपुर, कांगड़ा)
-सौरभ कालिया ( पालमपुर,कांगड़ा)
-ग्रेनेडियर विजेंद्र सिंह (बणे दी हट्टी, कागड़ा)
-रायफलमैन राकेश कुमार (पालमपुर, कांगड़ा)
-लास नायक वीर सिंह (जवाली, कांगड़ा )
-रायफलमैन अशोक कुमार ( जवाली, कांगड़ा)
-रायफलमैन सुनील कुमार (धर्मशाला, कांगड़ा)
-सिपाही लखबीर सिंह (नूरपुर,कांगड़ा)
-नायक ब्रह्मदास (नगरोटा बगवा, कांगड़ा )
-रायफलमैन जगजीत सिंह ( नूरपुर, कांगड़ा)
-सिपाही संतोष सिंह (नूरपुर , कांगड़ा)
-हवलदार सुरेंद्र सिंह (जवाली,कांगड़ा)
-लास नायक पदम सिंह ( नूरपुर, कांगड़ा)
-ग्रेनेडियर सुरजीत सिंह (देहरा, कांगड़ा)
-ग्रेनेडियर योगिंद्र सिंह (ज्वालामुखी, कांगड़ा)
-कैप्टन दीपक गुलेरिया (मंडी जिला निवासी)
-नायब सूबेदार खेम चंद राणा (टाडु, मंडी)
-हवलदार कृष्ण चंद (रामनगर, मंडी)
-नायक स्वर्ण कुमार (रिवालसर,मंडी)
-सिपाही टेक सिंह (धावन, मंडी)
-सिपाही राजेश कुमार चौहान (सुंदरनगर, मंडी)
-सिपाही नरेश कुमार (कलाहोड़, मंडी)
-सिपाही हीरा सिंह (पध्यून, मंडी)
-ग्रेनेडियर पूर्ण चंद (नंदी, मंडी)
-नायक मेहर सिंह (बंजलग,मंडी)
-लास नायक अशोक कुमार (सरला देवी पयरी, मंडी)
-हवलदार कश्मीर सिंह (ऊहल, हमीरपुर)
-हवलदार राजकुमार (ककड़,हमीरपुर)
-हवलदार स्वामी दास चंदेल (बलवारा,हमीरपुर)
-सिपाही राकेश कुमार (बंगड़ा, हमीरपुर)
-रायफलमैन प्रवीण कुमार (कुलेहड़ा, हमीरपुर)
-सिपाही सुनील कुमार (अमरोह,हमीरपुर)
-रायफलमैन दीप चंद (बरोटी,हमीरपुर)
-हवलदार उधम सिंह (घुमारवीं, बिलासपुर)
-नायक मंगल सिंह (झडूत्ता, बिलासपुर)
-रायफलमैन विजय पाल ( घुमारवीं, बिलासपुर)
-हवलदार राजकुमार ( घुमारवीं, बिलासपुर)
-नायक अश्वनी कुमार (झडूत्ता,बिलासपुर)
-हवलदार प्यार सिंह (झडूत्ता,बिलासपुर)
-नायक मस्त राम (घुमारवीं,बिलासपुर)
-ग्रेनेडियर यशवंत सिंह (रोहड़ू,शिमला)
-रायफलमैन श्याम सिंह (चौपाल,शिमला)
-ग्रेनेडियर नरेश कुमार (शिमला)
-ग्रेनेडियर अनंत राम (सुन्नी,शिमला)
-कैप्टन अमोल कालिया (नंगल,ऊना)
-रायफलमैन मनोहर लाल (हरोली,ऊना)
-सिपाही धर्मेद्र सिंह (कसौली,सोलन)
-रायफलमैन प्रदीप कुमार (नालागढ़,सोलन)
-रायफलमैन कुलविंदर सिंह (सिरमौर)
-सिपाही खेम राज (चंबा)
-हवलदार डोला राम (कुल्लू)
-रायफलमैन कल्याण सिंह ( सिरमौर)