करसाेग : अद्भुत शक्तियों के स्वामी है कांड़ी चलाहणी में बसे कालवी नाग देवता
राज सोनी। करसोग
हिमाचल प्राचीन समय से ही अनेक ऋषि मुनियों की तप: स्थली रही है। इसलिए ही इसका एक नाम देव भूमि भी रखा गया है। अनेक स्थानों पर एक आम इंसान को दैवीय शक्तियों द्वारा देवत्व प्राप्त हुआ है। आज उनके ही सानिध्य में जनता अपना जीवन यापन करती है। ऐसी ही अलौकिक शक्तियों के स्वामी करसोग क्षेत्र में कांडी चलाहनी नामक जगह पर बसे कालवी नाग देवता भी हैं। इनका मूल स्थान शिमला जिले की ठियोग तहसील के क्षेत्र भराहन में माना जाता है। यहां आज भी श्रीकालू नाग देवता का मंदिर शोभायमान है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा जाता है कि 13 वीं सदी के आसपास यहां एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम कालू था। इसी दौरान यहां शिव के अवतार माने जाने वाले बाबा गोरख नाथ भी आए थे और उन्हें वह कालू नामक बालक विलक्षण प्रतिभा का धनी लगा। उन्होंने उस बालक की परीक्षा लेने का सोचा। अपनी परीक्षा में बालक सफल हो गया।
उन्होंने कालू को अपना शिष्य बनाया और शाबर वेद की विद्या दी। इसी के साथ बाबा ने उसे एक मूर्ति भी दी। उक्त बालक ने उस मूर्ति की अपनी वृद्धावस्था तक नित-नियम के साथ पूजा की और शाबर वेद का पाठ करता रहा। कहा जाता है कि गांव भराहन में एक बड़े पेड़ के नीचे बालक कालू ने तप भी किया और उसी विशाल वृक्ष के तने पर वहां आज मंदिर भी बना हुआ है। जब उनका तप ख़तम हुआ, तो किसी चमत्कारिक घटना के साथ ही उन्हें देवत्व प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने गुरु गोरखनाथ द्वारा दी गई कुल ईष्ट की मूर्ति और पंच पात्रों के साथ वायु मार्ग से भ्रमण करने का निश्चय किया। इस दौरान उनकी एक भुजा धार कंद्रू जगह पर गिरी, नागरू नामक स्थान पर अपना चोला बदला और वहीं एक मूर्ति के रूप में विराजमान हो गए। वहां से निकल कर लफ्फू घाटी की एक गुफा जो केल्वी नामक स्थान के आस पास पड़ती है, वहां चले गए। लफ्फू घाटी का आज भी महात्म्य है। जिसके बारे में लगभग हर हिमाचली जानता है। गुफा में पहुंच कर कालू नाग ने विकराल अजगर का रूप धारण कर लिया।
इससे गुफा में विस्फोट हो गया। वहां से निकल कर वह खिंग्स नामक स्थान पर चले गए और वहां एक परिवार के पांच भाइयों में सबसे छोटे और सबसे शक्तिशाली भाई अग्यक्ला ने अजगर का सामना किया। काफी समय तक दोनों में युद्ध चला और अंत में अग्यक्ला ने उस अजगर को काट डाला। उसके काटने पर मूर्तियां और अन्य चमत्कारी सामान भी निकला। काले अजगर के पेट से निकलने पर फिर उनका नाम कालू नाग ही पड़ गया। नाग देवता की मूर्ति बनने के बाद श्रीकालू नाग ने अपनी शक्तियों से अनेक स्थानों पर आधिपत्य स्थापित कर लिया। इनकी पहली मूर्ति क्यारी दूसरी केल्वी तीसरी कंद्रू भराहन में स्थापित हुई। यह तीनों ही स्थान ठियोग के आस पास है। यही नहीं अपनी शक्तियों से करसोग क्षेत्र के कांडी चलाहनी नामक जगह पर भी पहुंच गई। करसोग में समस्त कजौन क्षेत्र के आराध्य ईष्ट देव कालवी नाग अपनी अद्भुत शक्तियों के प्रभाव से अपनी प्रजा का पालन करते हैं। आषाढ़ संक्रांति के दिन कांडी चलाहनी में देवता श्रीकालवी नाग के मंदिर में एक दिन का मेला भी लगता है। जिसमें दूर दूर से श्रद्धालु अपनी मनौतियां लेकर पहुंचते हैं।
इस देव मेले में ठियोग में बसे इनके तीन भाइयों के बीच से भी हमेशा एक जगह से देवलु आते हैं और अपने नृत्य द्वारा सभी का मन मोह लेते हैं। नृत्य का यह दृश्य बहुत ही आकर्षक होता है। गोल घेरे में सफेद पोशाक में लाल रूमाल हाथ में लिए नर्तक चोल्टू नृत्य करते हैं, तो यह पोशाक, गीतों की धुन दर्शकों को एक बार फिर से देखने पर मजबुर कर देती हैं। कालवी नाग के साथ ही भगवती मंदिर भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि आदमी के शरीर के जिस भी हिस्से जैसे आंख, कान, हाथ, पैर, टांग व बाजू इत्यादि पर लंबे समय से चला आया दर्द हो, तो वहां चांदी का वह अंग दान करने से रोग ठीक हो जाते हैं। साथ ही समस्त क्षेत्र में देवता खेत-खलिहानों, पशुओं, मनुष्यों व रोजगार इत्यादि पर अपनी बरकत रखते हैं।
मंदिर के रख रखाव और देव नियमों का पालन करने वाले कारदार, गुर और सभी हार फेरे के लिए विशेष परिवारों के सदस्य नियुक्त किए गए हैं। देव संस्कृति हम सभी के विकास का एक उन्नत द्वार है। समय के साथ साथ यह क्षीण होती जा रही है। इसे सहेजने के लिए हम सभी को प्रयास करना चाहिए। देव संस्कृति का मजाक बनाने की बजाय उनका संरक्षण करना चाहिए और देव स्थलों की गरिमा बनाए रखने में मददगार होना चाहिए। देवताओं के पराक्रम की कहानियां जहां तक मिले अपने परिवार और आस पड़ोस के बुजुर्गों से सुननी चाहिए और जहां तक संभव हो किसी भी माध्यम से देव संस्कृति के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास करें। हमारे प्रयासों से ही यह परंपराएं आगे बढ़ेंगी।