माता रेणुका से मिलने श्री रेणुका जी पहुँचते है भगवान परशुराम !
इस दिन माता रेणुका से मिलने श्री रेणुका जी पहुँचते है भगवान परशुराम !
फर्स्ट वर्डिक्ट। सिरमौर
देवभूमि हिमाचल के जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र का पहला पड़ाव है श्री रेणुकाजी, जिसे भगवान परशुराम की जन्मभूमि माना जाता है। यहाँ स्थित पवित्र रेणुका झील करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है और मान्यता है कि इस झील में भगवान परशुराम की माता रेणुका निवास करती है। माता रेणुका के नाम पर ही इस झील और स्थान का नाम पड़ा है। मान्यता है कि दशमी से एक दिन पहले मां रेणुका अपने पुत्र परशुराम से मिलने यहाँ आती है। इस दौरान यहाँ उत्सव मनाया जाता है और विशाल शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। पवित्र झील के जल में लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं। आस्था से सराबोर रेणुका मेले का आयोजन पांच दिन तक किया जाता है।
कोई नहीं माप पाया झील की गहराई :
भगवान परशुराम की जन्मभूमि श्रीरेणुकाजी उत्तर भारत के प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों में से एक है। श्रीरेणुकाजी झील हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील है और लगभग तीन किमी में फैली है। खास बात ये है कि इस झील का आकार स्त्री जैसा है और इसे माता रेणुका की प्रतिछाया माना जाता है। कहते है कि कई बार वैज्ञानिकों ने इस झील की गहराई को मापने की कोशिश की, मगर वे इस काम में सफल नहीं हो सके। ये भी कहा जाता है कि जब भी कोई व्यक्ति झील को तैरकर पार करने की कोशिश करता है, तो वह बीच में ही डूब जाता है। झील के किनारे माता श्रीरेणुका व भगवान परशुराम के भव्य मंदिर हैं। न सिर्फ हिमाचल प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों से भी लोग यहाँ दर्शन लाभ हेतु पहुँचते है।
असकलियां, पटांडे, लुश्के का जवाब नहीं:
श्रीरेणुकाजी जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में आता है और इस क्षेत्र में हाटी समुदाय के लोग रहते हैं। गेहूं व चावल के आटे से बनने वाली असकलियां, पटांडे, पत्थर के तवे पर बनने वाले लुशके, सिड्डू, मालपुड़े व खीर यहाँ के पारम्परिक पकवान हैं। सभी शुभ अवसरों पर और त्यौहारों ल पर इन्ही पकवानों को बनाया जाता है। श्री रेणुकाजी मेला हो या संक्राति, अमावस्या, पूर्णिमा और दूसरे उत्सव, स्थानीय लोग ये पारंपरिक पकवान बनाते हैं। खान पान के शौकीनों के लिए ये पकवान आकर्षण का केंद्र है।
श्रीरेणुकाजी विकास बोर्ड संभालता है प्रबंधन :
श्रीरेणुकाजी आने वाले पर्यटकों के लिए श्रीरेणुकाजी विकास बोर्ड ने झील में बोटिंग की व्यवस्था की है। झील की परिक्रमा के लिए बैटरी से संचालित गाड़ी भी पर्यटकों के लिए उपलब्ध है। श्रीरेणुकाजी झील में स्नान के बाद पर्यटक झील की परिक्रमा करते हैं। झील की परिक्रमा करते हुए एक छोर पर हिमाचल वन्य प्राणी विभाग का मिनी जू है जिसमें तेंदुआ, हिरण, कक्कड़, घोरल, सांभर सहित कई पशु-पक्षी मौजूद हैं। प्रदेश सरकार ने साल 1984 में श्रीरेणुकाजी विकास बोर्ड की स्थापना की थी जो श्रीरेणुकाजी झील, मां श्रीरेणुकाजी मंदिर, भगवान परशुराम मंदिर,परशुराम तालाब व श्रीरेणुकाजी विकास बोर्ड के तहत आने वाले अन्य दर्शनीय स्थलों की देखभाल व उनके जीर्णोद्धार का कार्य करता है। भगवान परशुराम के मंदिर को पुरानी देवठी के नाम से पुकारा जाता है। कुछ साल पहले इसका जीर्णोद्धार किया गया है पर इसके मूल स्वरूप को नहीं छेड़ा गया है।
अंतरराष्ट्रीय मेले का दर्जा प्राप्त :
मेला श्री रेणुका मां के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा आयोजन है। पांच दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के सभी ग्राम देवता अपनी-अपनी पालकी में सुसज्जित होकर मां-पुत्र के इस दिव्य मिलन में शामिल होते हैं। राज्य सरकार द्वारा इस मेले को अंतरराष्ट्रीय मेला घोषित किया गया है।
इस वर्ष नहीं हो रही सांस्कृतिक संध्याएं :
कोरोना संक्रमण के चलते 2 साल बाद इस बार 13 से 19 नवंबर तक अंतरराष्ट्रीय मेला श्री रेणुका जी का आयोजन हो रहा है लेकिन मेले का स्वरूप काफी हद तक बदला हुआ है। इस वर्ष सांस्कृतिक संध्याएं आयोजित नहीं हो रही है बल्कि मेले में इस बार खेलों को बढ़ावा दिया गया है। इसमें उन्हीं खिलाड़ियों को हिस्सा लेने की इजाजत दी गई है, जिन्हें कोविड वैक्सीनेशन की दोनों डोज लग चुकी है। इसी तरह से व्यवसायिक गतिविधियों के लिए भी कोविड वैक्सीनेशन की दोनों डोज की शर्त है। मेले में मुख्य तौर पर केवल 4 देव पालकियों को ही न्यौता दिया गया है। परंपरा के मुताबिक प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा ही मेले का शुभारम्भ किया गया है, वहीं समापन समारोह की अध्यक्षता राज्यपाल करेंगे।