UPA पर हमलावर हुई शिवसेना, सामना में बताया NGO जैसा
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में शनिवार को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) और उसके सहयोगियों पर जमकर बोला। सामना में किसान आंदोलन को लेकर विपक्षी दलों के एकजुट न होने को लेकर भी उनकी आलोचना की गई।
संपादकीय में शिवसेना ने कहा, अगर किसान आंदोलन के 30 दिनों के बाद भी नतीजा नहीं निकल पाया है तो सरकार यह सोचती है कि उसे कोई राजनीतिक खतरा नहीं है। किसी भी लोकतंत्र में विपक्ष अहम किरदार अदा करता है। लेकिन कांग्रेस और यूपीए मोदी सरकार पर दबाव बनाने में नाकाम रहे।
सामना में लिखा गया, कांग्रेस के नेतृत्व में एक 'यूपीए' नामक राजनीतिक संगठन है। उस ‘यूपीए’ की हालत एकाध ‘एनजीओ’ की तरह होती दिख रही है। ‘यूपीए’ के सहयोगी दल भी किसानों के असंतोष को गंभीरता से लेते दिखाई नहीं देते। ‘यूपीए’ में कुछ दल होने चाहिए लेकिन वे कौन और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है।
'राहुल गांधी पर्याप्त काम कर रहे हैं लेकिन उनके नेतृत्व में कुछ कमी है। कांग्रेस को पूर्णकालिक अध्यक्ष की जरूरत है। यूपीए को ज्यादा क्षेत्रीय पार्टियों की जरूरत है लेकिन ऐसा भविष्य में संभव होता दिखाई नहीं देता। केवल शरद पवार ही यूपीए में नजर आते हैं। उनकी स्वतंत्र सोच है। उनके अनुभव का लाभ प्रधानमंत्री मोदी तक लेते हैं,' सामना ने आगे लिखा।