कारगिल हीरो : कैप्टन अनुज नय्यर, जिन्हें कलम से ज्यादा बन्दूक से प्यार था
"I AM NOT THAT IRRESPONSIBLE THAT I WILL DIE WITHOUT FULFILLING MY RESPONSIBILITIES FOR MY COUNTRY "
ये शब्द है उस वीर जवान के जिसे अपनी जान से ज़्यादा अपने देश की परवाह थी। कारगिल युद्ध की जीत के लिए कई योद्धाओं ने बलिदान दिया था। शहादत का जाम पीने वाले इन्हीं योद्धाओं में से एक थे दिल्ली के कैप्टन अनुज नय्यर। सेना के एक ऐसे अधिकारी, जिनकी बहादुरी की गाथा आज भी याद कर लोग गर्व महसूस करते हैं। अनुज की शहादत की बात याद कर उनको जानने वाले आज भी भावुक हो जाते हैं।
अनुज का जन्म 28 अगस्त 1975 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता एस.के. नय्यर दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर थे। इस लिहाज से उनके घर पर पढ़ाई का अच्छा माहौल था मगर अनुज को फिर भी कलम से ज्यादा बन्दूक से प्यार हो गया। शुरुआती पढ़ाई के लिए उनका दाखिला धौला कुआं के आर्मी पब्लिक स्कूल में कराया गया था। बचपन से ही उनके मन में देश भक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा था।
24 साल की उम्र में शहादत को लगाया गले :
1999 में, भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना और अर्धसैनिक बलों द्वारा बड़े पैमाने पर घुसपैठ का पता लगाया। भारतीय क्षेत्र से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए सेना ने तेजी से अपनी सेना को जुटाया। 17 जाट क्षेत्र में तैनात बटालियनों में से एक थी। अनुज नय्यर 17 जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे। जिस वक्त कारगिल की जंग में वो शामिल हुए, उस वक्त उनकी उम्र 24 साल से भी कम थी। टाइगर हिल के पश्चिम में प्वाइंट 4875 के एक हिस्से पिंपल कॉम्प्लेक्स को खाली कराने की जिम्मेदारी 17 जाट रेजिमेंट के कैप्टन अनुज नय्यर को दी गई। चोटी की ऊंचाई थी करीब 16 हजार फीट। प्वाइंट 4875 पर पाकिस्तानी सेना ने कई भारी भरकम बंकर बना रखे थे। असल में इसकी पोजिशन ऐसी जगह पर थी, जहां से एक झटके में जंग का रुख बदल दिया जा सकता था। हालांकि, यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। यह पॉइंट हजारों फीट की ऊंचाई पर था। वहां से फेंका जाने वाला एक पत्थर भी अनुज और उनके साथियों के लिए जानलेवा हो सकता था। पर बिना इस पर कब्ज़ा जमाये भारत के लिए युद्ध जीतना मुमकिन नहीं था। इसलिए कप्तान अनुज नय्यर व उनकी टीम ने बिना किसी हवाई समर्थन की प्रतीक्षा किए चोटी को सुरक्षित करने का फैसला किया। एक दल के साथ कैप्टन नैय्यर ने 6 जुलाई 1999 की रात को चढ़ाई शुरू की। कदम-कदम पर मौत से सामना होना तय था। लेकिन कैप्टन नय्यर साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे। कैप्टन नय्यर की सोच थी कि किसी भी तरह से इस पोस्ट को खाली करवाना है, जिसके लिए वह साथियों के साथ दबे पांव आगे बढ़ रहे थे।
इसी बीच नय्यर की टीम के कमांडर के जख्मी होने के चलते टीम को दो टुकडिय़ों में बांट दिया गया। एक टीम को लेकर कैप्टन विक्रम बत्रा आगे बढ़े और दूसरी टीम के साथ कैप्टन अनुज दुश्मन पर टूट पड़े। वह तेजी से चोटी की ओर बढऩे लगे। अचानक पाकिस्तानी घुसपैठियों को उनके होने की आहट हो गई और उन्होंने अनुज की टीम पर फायर शुरू कर दिया। कैप्टन ने साथियों के साथ मिलकर दुश्मन को करारा जवाब दिया। जब अनुज नय्यर की यूनिट भारी मोर्टार फायर के बीच आगे बढ़ रही थी तभी उनकी टीम के लीड सेक्शन ने दुश्मन के 3-4 बंकरों के स्थान की सूचना उन्हें दी। कैप्टेन अनुज आगे बढ़े और रॉकेट लॉन्चर और ग्रेनेड से पहले बंकर को नष्ट कर दिया। इसके बाद वे फिर भारी गोलाबारी में वे 7 जवानों के साथ आगे बढे और दो और बंकरों को नष्ट कर दिया। युद्ध के दौरान, कपटिन नय्यर ने 9 पाकिस्तानी सैनिकों का खात्मा कर डाला और तीन मध्यम मशीन गन बंकरों को नष्ट कर दिया। इसके बाद कंपनी ने आखिरी बचे बंकर पर हमला करना शुरू कर दिया, लेकिन इसे साफ करते समय, एक दुश्मन आरपीजी ने सीधे कैप्टेन नय्यर को टक्कर मार दी, जिससे उनकी जान चली गई।
इस बीच पाकिस्तानी घुसपैठियों ने वापस आकर प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना चाहा, लेकिन पीछे से दूसरी टीम के साथ कैप्टन बत्रा पहुंच चुके थे। उन्होंने घुसपैठियों का काम तमाम कर दिया। तिरंगा फहराने से पहले कप्तान बत्रा भी दुश्मन की गोलियों की बौछार से शहीद हो गए। हालांकि 4875 पर 7 जुलाई को ही झंडा फहरा दिया गया। पिंपल कॉम्प्लेक्स पर जीत ने टाइगर हिल पर फिर से कब्जा करने का मार्ग प्रशस्त किया जिससे अंततः पाकिस्तान को नियंत्रण रेखा के पार वापस जाना पड़ा। तिरंगे में लिपटे कैप्टन अनुज की शहादत यात्रा जब निकली थी तो 3 किलोमीटर के दायरे में सड़कें दोनों ओर भरी पड़ी थीं। लोग नम आंखों से इस वीर सपूत को नमन कर रहे थे। कैप्टन अनुज नैय्यर को युद्ध में अनुकरणीय वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र (भारत का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार) दिया गया।
जंग पर जाने से पहले लौटे सगाई की अंगूठी :
बताते हैं कि कैप्टन अनुज नैय्यर जंग पर अपनी सबसे कीमती चीज़, यानी सगाई की अंगूठी नहीं ले जाना चाहते थे। उन्होंने अपने सीनियर को वो अंगूठी दी और कहा था कि ये अंगूठी उनकी मंगेतर को वापिस लौटा दें। सीनियर ने कहा कि तुम खुद देना, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि मैं जंग पर जा रहा हूं वापस लौटूंगा या नहीं, मालूम नहीं। लौट आया तो दोबारा इसे पहन लूंगा वरना आप इसे मेरे घर भेज देना और मेरा संदेश दे देना। दुर्भाग्यवश इस जंग से अनुज वापस नहीं लौट सके, लेकिन वह पूरे देश के हीरो हैं।
10 सितम्बर को होने वाली थी शादी
अनुज नय्यर की मां बताती है कि अनुज ने उन्हें ये नहीं बताया था की वो जंग में जा रहे है। वो उनसे ये कह कर गए थे की उन्हें श्रीनगर में पोस्ट किया जा रहा है। कुछ समय बाद जब उनके कुछ दोस्त अनुज के घर उनका कुछ सामान लेने आए तब उनकी मां को ये मालूम हुआ की उनका बेटा जंग के मैदान में है। उनकी मां बताती है की अनुज ने उन्हें एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने ये लिखा था की वो वापिस आकर अपने मां बाबा की एनिवर्सरी मनाएंगे। 28 अगस्त को अनुज का जन्मदिन था और 10 सितम्बर को उनकी शादी होने वाली थी मगर वो लौट कर नहीं आ पाए।