दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के निर्वाचन क्षेत्र में बरागटा ने खिलाया था कमल
जुब्बल - कोटखाई, वो विधानसभा क्षेत्र जहाँ कमल खिलाना बड़े -बड़े दिग्गजों के लिए एक सपना सा था। कभी इस सीट को कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीटों में माना जाता था। कारण था पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल का इस सीट से संबंध । कांग्रेस के दो मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल और वीरभद्र सिंह यहाँ से विधायक रह चुके थे। ये हिमाचल की एकलौती सीट है जिसने दो मुख्यमंत्री दिए है, और दोनों कांग्रेसी ही थे। पर 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ये गढ़ ढह गया, और कांग्रेस के इस अभेद किले को फ़तेह करने वाले थे स्व. नरेंद्र बरागटा। दिलचस्प बात ये है कि इससे पहले नरेंद्र बरागटा 1998 में शिमला सीट से विधायक बने थे। तब वे धूमल सरकार में बागवानी मंत्री थे। बतौर बागवानी मंत्री उन्होंने हमेशा बागवानों के मुद्दों को आवाज दी, बागवानों का दर्द समझा। यही कारण है कि 2003 में उन्हें भाजपा ने जुब्बल - कोटखाई सीट से मैदान में उतारा। हालांकि वे चुनाव हार गए, लेकिन विपक्ष में रहते हुए भी वे पांच साल जुब्बल - कोटखाई की आवाज बने रहे। नतीजन 2007 में उन्हें जुब्बल - कोटखाई की जनता ने वोट रुपी आशीर्वाद दिया और पहली बार इस सीट पर भाजपा विजयी हुई।
भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र बरागटा के कद का अंदाजा इसी बात से पता चलता है कि 1998 में पहली बार विधायक बनते ही उन्हें धूमल सरकार में बागवानी राज्य मंत्री बनाकर स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। इसके बाद प्रेम कुमार धूमल की सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें कैबिनेट दर्जा दिया गया। बागवानी विभाग के अलावा तकनीकी शिक्षा विभाग का जिम्मा दिया गया था। 2012 में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर राजीव बिंदल के त्यागपत्र देने के बाद स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा भी उन्हें सौंपा गया था। 2017 में नरेंद्र बरागटा तीसरी बार विधायक बने और प्रदेश में जयराम सरकार बनी। भाजपा की बदली हुई सियासत ने उन्हें मंत्रिपद से तो वंचित रखा गया, लेकिन उन्हें पूरी तरह दरकिनार करना भी मुमकिन नहीं था, सो उन्हें मुख्य सचेतक बनाकर कैबिनेट दर्जा दिया गया।
बेहद रोचक है जुब्बल - कोटखाई सीट का इतिहास
जुब्बल - कोटखाई पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल का निर्वाचन क्षेत्र रहा है। वे यहाँ से 1967 से 1982 तक लगातार चार चुनाव जीते। इस दौरान वे मुख्यमंत्री भी रहे। इसके बाद 1985 के चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुद जुब्बल - कोटखाई से मैदान में उतरे और जीत दर्ज की। फिर आया 1990 का चुनाव और मैदान में थे सीएम वीरभद्र सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल ठाकुर। तब तक ठाकुर रामलाल कांग्रेस से किनार कर चुके थे जनता दल से मैदान में थे। दो मुख्यमंत्रियों के इस चुनावी घमासान में वीरभद्र सिंह पस्त हो गए। खेर 1993 का चुनाव आते -आते ठाकुर रामलाल की घर वापसी हो चुकी थी और इसके बाद 1993 और 1998 में वे कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीते। 2003 के चुनाव में ठाकुर रामलाल की मृत्यु के बाद उनके पोते रोहित ठाकुर ने परिवार की सियासी विरासत को संभाला और जुब्बल - कोटखाई से मैदान में उतरे और एक बार फिर ये सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी। पर 2007 में नरेंद्र बरागटा ने कांग्रेस और ठाकुर रामलाल के इस तिसिस्म को तोड़ दिया।
अपनी ही सरकार को दिखाया था आईना
सत्ता में हाे या फिर विपक्ष में, स्व. बरागटा प्रदेश के बागवानों के हर मसले की आवाज बने। विधानसभा सदन से लेकर केंद्र सरकार तक बागवानों की आवाज बुलंद करने में उन्होंने काेई कमी नहीं छाेड़ी। वर्तमान जयराम सरकार में वे मुख्य सचेतक थे और विधानसभा के हर सत्र में वे बागवानाें के हितों की बात करते दिखते थे। सेब पर कमीशन हाे या फिर फसल बीमा कंपनियों की ओर से भ्रष्टाचार का मसला, इन सभी एजेंडों पर स्व. बरागटा ने सरकार के समक्ष ठाेक-बजा कर बागवानाें का पक्ष रखा। यहां तक की देश की विभिन्न मंडियाें में बिकने वाले विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का मुद्दा भी स्व.बरागटा उठाते रहे। 1998 की धूमल सरकार में बागवानी मंत्री रहते हुए नरेंद्र बरागटा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेयी के समक्ष भी ये मामला उठाया था, ताकि प्रदेश के बागवानों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। इसके बाद अगली धूमल सरकार में भी वे बागवानी मंत्री थे ओर यूपीए सरकार के सामने ये विषय रखा। जब भी बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के चलते बागवानों की फसल नष्ट होती, ताे उस समय एक ही नेता सामने आता रहा, वह थे नरेंद्र बरागटा। हाल ही में हुई बारिश और ओलावृष्टि के बाद स्व. बरागटा ने प्रदेश सरकार से मांग की थी कि वह तुरंत सेब क्षेत्रों में टीमें भेजे और बागवानों किसानों को तुरंत मुआवजा प्रदान करे। अपनी ही सरकार को आईना दिखाते हुए उन्होंने कहा था कि केवल आंकलन करने से कुछ नहीं होगा क्योंकि पिछले साल हुए नुकसान पर भी सरकार केवल आंकलन ही करती रह गई थी।