बुछेन एक अदुभत पंरम्परा: छह सौ साल पुरानी परम्परा का आज भी होता है निर्वहन
लाहुल स्पिति में आज भी बुछेन परम्परा करीब छह सौ वर्षो से मनाई जा रही है। स्पिति घाटी के पिन घाटी में इस परम्परा का निर्वहन करने के लिए पांच से छह समूह पीढ़ी दर पीढ़ी लगे हुए है। यह एक धार्मिक मान्यता पर आधारित परम्परा है जो एक थाड0 तोड0 ज्ञालवो नाम के सिद्ध पुरूष पर समर्पित है। कुछ दशकों पूर्व इस परम्परा का निर्वहन करने वाले समूहों की संख्या 20 से अधिक थी,लेकिन अब कई समूहों ने इस परम्परा का अनुसरण करना बंद कर दिया है।
स्पिति के पिन घाटी के सगनम गांव में रहने वाले छेतन गटुक ने बताया कि बुछेन का अर्थ होता है बड़ा अध्यात्मिक पुत्र। ये पत्थर तोड़ने की परम्परा है। ज्ञालवो कागयुद परम्परा के स्काॅलर थे। इन्होंने महामुद्रा और महासम्पन्न में शिक्षा हासिल की हुई थी। भोट रवजंग पंचाग के अनुसार थाड0 तोड0 ज्ञलवो का जन्म तिब्बत के उपरी सांग प्रांत ल्हसे में 1385 में हुआ था, जो पंचाग के अनुसार बुड ऑक्स साल का छठा चक्र था। थाड0 तोड0 ज्ञालवो सिद्ध पुरूष होने के साथ साथ एक बहुत ही अच्छे इंजीनियर भी थे। उन्होंने अपने हुनर से कई पुल, नांव और कई स्तूपों का भी निर्माण स्वयं किया था। भवन निर्माण निपुणता के कारण ही थाड0 तोड0 ज्ञालवो को चांग सेम पा कहा जाता था। उस दौर में आसानी से लोग एकत्रित नहीं होते थे तो थाड0 तोड0 ज्ञालवो लोगों को मनोरंजन करने के कार्यक्रम आयोजित करते थे। जब लोग इन कार्यक्रमों को देखने आते थे तो थाड0 तोड0 ज्ञालवो पुल निर्माण के लिए आवश्यक चीजों को चंदे के तौर पर देने की मांग करते थे, जैसे की लोहा, कोयला, लकड़ी आदि दें।
थाड0 तोड0 ज्ञलवो रिद्धी बल में काफी मजबूत थे। उन्होंने अपनी अध्यात्मिक शक्तियों का प्रयोग तब किया जब तिब्बत के ल्हासा में भंयकर महामारी फैली थी और इस महामारी को नियंत्रित किया था। जानकार छेतन गटुक ने बताया जाता है कि जब महामारी फैली थी तो कोई भी चिकित्सक वैद्य इसका इलाज नहीं ढूंढ पा रहा था। लोग घरों में ही मर रहे थे। यही रिन्पोछे तत्कालीन राजा थे। उन्हें किसी प्रसिद्ध व्यक्ति ने बताया कि इस बीमारी का इलाज केवल थाड0 तोड0 ज्ञालवो ही कर सकते है। राजा ने अपने दरबार से कुछ लोग थाड0 तोड0 ज्ञालवो के पास भेजे। लेकिन जब लोग थाड0 तोड0 ज्ञालवो के पास पहुंचे और राजा के बुलावे के बारे में बताया। ज्ञालवो ने कहा कि आप चलिए मैं स्वयं राज महल पहुंच जाउंगा। थाड0 तोड0 ज्ञलवो खुद एक गिद्ध पर सवार होकर महामारी को नियंत्रित करने के ल्हासा ल्हासा पहुंच गए।
ज्ञालवो को राजा रे रिन्पोछे ने महामारी के बारे में विस्तृत रूम से बताया। ज्ञालपो ने कहा कि इस महामारी का इलाज मैं करता हूं। आप चिंता न करें। इसके बाद थाड0 तोड0 ज्ञालवो महल से बाहर खुले मैदान में चले जाते है। लेकिन कोई भी व्यक्ति घरों से बाहर निकल नहीं रहा था। ज्ञालपो का मानना था जब तक लोगों के दिलों में बैठा हुआ डर नहीं निकलेगा। इस बीमारी से कोई निजात नहीं दिलवा पायेगा। उन्होंने लोगों को घरो से बाहर निकालने के लिए काफी कोशिश की, लेकिन कोई आ ही नहीं रहा था। फिर ज्ञालपो ने अपनी रिद्धि सिद्धि बल का इस्तेमाल करते हुए एक बार फिर उन्होंने अपनी अध्यात्मिक शक्ति से अपने हाथ की पांच उंगलियों के आधार पर स्वंय को छोड़ चार अँगुलियों से चार अन्य कलाकार बनाए। ऐसे वे पांच कलाकार बनाए और कार्यक्रम पेश किया। जब इन पांचों ने मैदान में कार्यक्रम पेश करके लेागों को हंसाना शुरू किया तो लोगों घरों की खिड़कियों से देख रहे थे कि इन पांच को तो कुछ हो नहीं रहा है। फिर धीरे धीरे लोग अपने घरों से बाहर निकल कर बाहर आने लगे और कार्यक्रम देखने लगे। कुछ मिनटों में सारे लोग घरों से बाहर निकल मैदान में पहुंच गए। यहीं वजह थी कि आज भी बुछेन में पांच ही कलाकार होते। फिर जब भीड़ बढ़ती गई तो थाड0 तोड0 ज्ञालवो ने लोगों को मणी जाप करवाया जो उस वक़्त पूजा पाठ का अहम हिस्सा था। पूरी मान्यता यह है कि कोई भी महामारी या आपदा होती है तो उसके पीछे कोई कारक होता है। थाड0 तोड0 ज्ञालवो महामारी के कारण को निकालना चाहते थे। भोटी भाषा में कारक को नेदक कहते है। फिर उन्होंने लोगों को कहा कि जो लोग महामारी की चपेट में उनमें नेदक भी होगा। मुझे नेदक चाहिए। उन्होंने अपनी सिद्धी बल से एक पत्थर ढूंढा। इसके बाद उन्होंने उस नेदक को उक्त पत्थर में मंत्रों के साथ समा दिया। थाड0 तोड0 ज्ञालवो के पास एक आयु और फुरवा नमक दो अस्त्र से उक्त पत्थर को तोड़ दिया। यही वजह है कि बुछेन में लोग आज भी पत्थर तोड़ते है। अब बुछेन में छाती पर पत्थर तोड़ते है। जैसे जैसे समय बीतने लगा कि बड़े से बड़ा पत्थर बुछेन में इस्तेमाल होने लगा। अब भी बुछेन परम्परा को इसलिए मनाया जाता है कि गांव में कुछ होने वाला हो या फिर कुछ अप्रिय घटित हो गया हो तो मंत्रो उच्चारण से उस पत्थर में समा देते है। बुछेन में पांच सदस्य होते है इनमें सेदो उन्पा जोकि हंसाने का कार्यक्रम पेश करते है। एक मुख्य सदस्य होता है जिसे मुख्य बुचेन यानि मेमे बुचेन। इसके साथ ही णांवा भी होते है जो हेल्पर की तरह होते है। जब यह बुचेन का प्रर्दशन करते है तो काफी लाभप्रद प्रवचन देते है।