कांग्रेस ने कद्र नहीं की, भाजपा में गए और मुख्यमंत्री बन गए
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम ऐसे राज्य है जहाँ वर्तमान में भाजपा की सरकार है। पर इन तीनो में एक और बात समान है। दरअसल, इन तीनों राज्यों में ऐसे नेता मुख्यमंत्री है जो कभी कांग्रेस में हुआ करते थे। कांग्रेस ने न कद्र की और न तवज्जो दी, तो ये नेता समर्थकों सहित भाजपा में चले गए। आज तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है। बीते एक दशक की राजनीति पर गौर करें तो काफी संख्या में कांग्रेस के नेता भजपा में शामिल हुए है। इनमे से कई मंत्री बने है, कई मुख्यमंत्री, तो कई को भाजपा में जाकर विशेष तवज्जो मिली है। जिस तेजी से भाजपा में कांग्रेस के नेता शामिल हुए हैं उससे यह कलई भी खुलती है कि भाजपा कैडर आधारित पार्टी है। फिलहाल अगर हम एक पार्टी के रूप में भाजपा पर इसके प्रभाव देखें तो इसका सबसे ज्यादा बुरा असर कार्यकर्ताओं पर पड़ता है। भाजपा कार्यकर्ता अपने आप को छला महसूस करता है। उन्हें लगता है कि लंबे समय तक पार्टी के लिए मेहनत वो करें और दूसरी पार्टी से कोई भी नेता आकर चुनाव जीत जाएगा, मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री की कुर्सी भी पा लेगा। बड़ा सवाल ये है कि भले ही कई राज्यों में भाजपा सत्तासीन हो जाये लेकिन क्या पार्टी का संगठन तैयार हो पाएगा ? या यूँ कहे आर्गेनिक संगठन तैयार हो पायेगा। हालांकि राजनीति में ये आम बात है, किसी ज़माने में कांग्रेस इस तरह से जीत हासिल करती थी। फिर जनता दल-जनता पार्टी ने कांग्रेस का अनुसरण किया और आज भाजपा भी उसी राह पर है।
6 महीने में ही भाजपा ने बना दिया था सीएम
मार्च 2017 में पूर्वोत्तर के मणिपुर में एन बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही पहली बार भाजपा की सरकार बनी थी। दिलचस्प बात ये है कि एन बीरेन सिंह अक्टूबर 2016 में ही कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा से जुड़े थे। बीरेन कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में मंत्री पद संभाल चुके थे। बावजूद उसके भाजपा ने उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि भाजपा विधायक थोंगम विश्वजीत भी इस पद के दावेदार थे, पर आखिरकार बाजी बीरेन सिंह के हाथ लगी। एन बीरेन सिंह ने वर्ष 2002 में डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी कैंडिडेट के तौर पर पहला विधानसभा चुनाव जीतने के बाद बीरेन सिंह मंत्री बने। वर्ष 2007 में वह कांग्रेस के टिकट पर जीते और फिर सरकार में मंत्री बने। अक्टूबर, 2016 में बीरेन सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ बगावत करते हुए मणिपुर विधानसभा और कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे।
33 विधायकों सहित भाजपा में गए थे और सीएम बन गए खांडू
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी कांग्रेस में रह चुके हैं। 2010 में कांग्रेस के तवांग जिलाध्यक्ष पद से करियर शुरू करने वाले पेमा खांडू, वर्ष 2011 में पिता की सीट मुक्तो से निर्विरोध विधानसभा चुनाव जीते थे। कांग्रेस सरकार में 37 वर्ष की उम्र में 17 जुलाई 2016 को खांडू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। पर नाराजगी के बाद 16 सितंबर 2016 को पेमा खांडू पार्टी के 43 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन सरकार बनाई। इसे लेकर जब पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल ने खांडू के खिलाफ कार्रवाई शुरू की तो 31 दिसंबर 2016 को वह पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल के 33 विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और सरकार बना ली। 2019 में हुए अरुणाचल प्रदेश विधानसभा की 60 सीटों पर हुए चुनाव में बहुमत हासिल करते हुए 41 सीटों पर जीत दर्ज की, जिसके बाद फिर पेमा खांडू फिर मुख्यमंत्री बने।
कांग्रेस से नाता तोड़ पूरा हुआ सीएम बनने का सपना
कभी कांग्रेस में रहते हुए असम का मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले हिमंता बिस्वा सरमा का सपना भाजपा में जाकर पूरा हुआ। कहते है 20 साल पहले उन्होंने अपनी पत्नी से कहा था कि वे एक दिन सीएम बनेंगे, तब वे कांग्रेस में हुआ करते थे। जुलाई 2014 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद भाजपा का दामन थामा था। तब वह कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री थे और मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। उनके साथ करीब 38 विधायक भी थे, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने उनकी मांग नजरअंदाज कर दी थी। तब हिमंता बिस्वा सरमा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए इस्तीफा दे दिया था और भाजपा में शामिल हुए थे। इसके बाद साल 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद तो वह मुख्यमंत्री बनने में सफल नहीं हुए, लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में उनकी मेहनत को देखते हुए पार्टी ने निवर्तमान मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की जगह उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया।