हिमाचल प्रदेश में बनेगा देश का पहला एपीआई उद्योग
इस समय भारत दुनिया की नई फार्मेसी बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस समय भारत का फार्मा उद्योग करीब 42 अरब डॉलर का है। माना जा रहा है कि यह 2026 तक 65 अरब डॉलर और 2030 तक 130 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच सकता है। निःसंदेह कोरोना संक्रमण की आपदा भारत के लिए फार्मा और कोरोना वैक्सीन का मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का अवसर लेकर आई है। फार्मा उद्योग की इस प्रतिस्पर्धा में हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन का बीबीएन क्षेत्र भी तेज़ी से भाग रहा है। बीबीएन की पहचान एशिया के सबसे बड़े फार्मा हब के तौर पर की जाती है। कोरोना के समय में इस एरिया की अहमियत और भी बढ़ी है। बता दें कि कोरोना महामारी की पहली लहर में दुनिया जब वैक्सीन के लिए रिसर्च कर रही थी तब ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी डीसीजीआई (DCGI) ने रूस की कोरोना वैक्सीन स्पूतनिक-वी (Sputnik-V) बनाने के लिए हिमाचल के बद्दी में स्थित पैनेशिया बायोटेक को मंजूरी दी। पैनेशिया बायोटेक पहली कंपनी है, जिसने स्पूतनिक-वी का निर्माण भारत में किया। स्पूतनिक-वी बनाने के लिए कुल 6 कंपनियों ने रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड (RDIF) के साथ एग्रीमेंट किया था, जिनमें पैनेशिया बायोटेक भी शामिल थी। वैश्विक महामारी कोविड-19 से उपजे संकट के इस दौर में जहां हिमाचल का फार्मा उद्योग देश व प्रदेश की दवा जरूरतों को प्राथमिकता से पूरा कर रहा है, वहीं कोरोना के उपचार से संबंधित आवश्यक दवाओं के उत्पादन में अग्रणी राज्य बनने की ओर अग्रसर है। बता दें कि देश में बिकने वाली हर तीसरी दवा का निर्माण हिमाचल के फार्मा उद्योगों में हुआ है। इसके अलावा सालाना 15 हजार करोड़ से ज्यादा की दवाओं का निर्यात यह से किया जा रहा है।
कोरोना काल में अमेरिका को भेजी गई यहां बनी दवा
दुनिया में जिस समय वैश्विक महामारी कोरोना का संकटपूर्ण दौर आया, सबसे पहले चर्चा में आने वाला शब्द हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन था। पहली लहर में उक्त दवा के लिए दुनिया की नजरें भारत पर थीं। दुनिया भर में जितनी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन तैयार होती है, उसका सत्तर फीसदी भारत में बनता है। देश में भी अधिकांश हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बीबीएन में बनती है। अमेरिका को भी यहीं से सप्लाई दी गई थी। हिमाचल में करीब 700 दवा उद्योग स्थापित हैं, जिनमें से 200 से ज्यादा ईयू से, इतने ही डब्ल्यूएचओ व जीएमपी से तथा अन्य इकाइयां यूएसएफडीए से मंजूर हैं। ऐसे में यदि बीबीएन में और अधिक फार्मा इकाइयों को लाइसेंस मिल जाए तो देश भर की दवाइयों की जरूरत अकेले बीबीएन पूरी कर सकता है। हिमाचल में मात्र चार से पांच फीसदी दवा निर्माताओं के पास क्लोरोक्वीन व एंटीबॉयोटिक एजिथ्रोमाइसिन टैबलेट का लाइसेंस है। यदि प्रदेश के हर फार्मा उत्पादक को लाइसेंस मिल जाता है तो पूरे देश के लिए यह दवा यहां से उपलब्ध करवाई जा सकती है।
सिंगल विंडो क्लियरिंग एजेंसी
उद्यमियों की सुविधा के लिए हिमाचल सरकार ने बद्दी में सिंगल विंडो क्लियरिंग एजेंसी ऑफिस खोला है। यदि कोई निवेशक पांच करोड़ रुपए तक की मशीनरी का प्लांट लगाता है तो उसे कहीं भटकने की जरूरत नहीं है। मंजूरी से संबंधित सभी औपचारिकताएं इसी कार्यालय से पूरी हो जाती हैं। इससे ऊपर की मशीनरी लागत वाली इकाइयां मुख्य कार्यालय शिमला से मंजूर होती हैं। प्लांट व मशीनरी पर पचास फीसदी उपदान यानी सब्सिडी मिलती है। इसके अलावा सेंट्रल ट्रांसपोर्ट सब्सिडी की सुविधा है। उधमियों के लिए प्लांट व भूमि नो प्रॉफिट-नो लॉस के आधार पर उपलब्ध है।