जेसीसी पर टिकी कर्मचारी वर्ग की निगाहें
करीब ढाई माह पहले पंजाब सरकार ने नेशनल पेंशन स्कीम के अधीन आने वाले कर्मचारियों को एक बड़ी राहत दी थी। पंजाब सरकार ने केंद्र की 2009 की अधिसूचना को लागू करने का फैसला लिया था। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का ये ऐलान पंजाब के लाखों कर्मचारियों के लिए तो राहत भरा फैसला था ही, साथ ही हिमाचल के लाखों कर्मचारियों के लिए भी उम्मीद की एक किरण बनकर आया था। दरअसल, हिमाचल प्रदेश भी अपने कर्मचारियों को आर्थिक लाभ देने के लिए पंजाब को फॉलो करता है। जाहिर है ऐसे में यहां के कर्मचारियों को भी अब आस है कि पुरानी पेंशन न सही पर कम से कम 2009 की अधिसूचना लागू करने की सौगात तो जयराम सरकार दे ही सकती है। इस पर उपचुनाव में जो झटका भाजपा को लगा है उसके बाद कर्मचारी वर्ग की उम्मीद और प्रबल है। पुरानी पेंशन बहाली किसी एक संगठन का मुद्दा नहीं है अपितु अमूमन हर कर्मचारी इससे जुड़ा हुआ है। ऐसे में माना जा रहा है कि मिशन रिपीट का स्वपन साकार करने के लिए जयराम सरकार कर्मचारी हित में 2009 की अधिसूचना को लागू करने का निर्णय ले सकती है।
इसमें कोई संशय नहीं कि प्रदेश का कर्मचारी वर्ग नई पेंशन स्कीम नहीं चाहता। नए पेंशन सिस्टम को कर्मचारी अपने मौलिक अधिकारों का हनन मानते है। हिमाचल प्रदेश में आए दिन कर्मचारी प्रदेश सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते है, इसके साथ ही केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करने हेतु भी आवाज़ उठाई जाती है ,जो अब और प्रखर हो गई है। 27 नवंबर को जेसीसी कि बैठक है और हिमाचल के कर्मचारी वर्ग को उम्मीद है कि पंजाब की तर्ज पर हिमाचल में भी 2009 की अधिसूचना लागू होगी। गौरतलब है कि अब तक उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, असम, हरियाणा , तेलंगाना और पंजाब राज्य 2009 की अधिसूचना का लाभ कर्मचारियों को दे चुके है।
ये है 2009 की अधिसूचना
केंद्र सरकार की 2009 की अधिसूचना में यह प्रावधान है कि अगर नौकरी के दौरान किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या वो कर्मचारी दिव्यांग हो जाता है तो उसके परिवार को पुरानी पेंशन योजना के तहत मिलने वाले लाभ प्रदान किए जाते हैं। यानि उस कर्मचारी के परिवार को पेंशन दी जाती है। चूँकि ये अधिसूचना हिमाचल प्रदेश में लागू नहीं की गई है तो ऐसे में यदि हिमाचल के किसी कर्मचारी की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो जाती है या किसी दुर्घटना में वे दिव्यांग हो जाते है तो उनके परिवार को कोई भी पेंशन नहीं दी जाती। कर्मचारी के जाने के बाद उसके परिवार को आर्थिक मदद के लिए कोई नीति नहीं बनाई गयी है। यही वजह है कि हिमाचल के कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर सुरक्षित महसूस नहीं करते।