हाटी समुदाय अब तक अपने अधिकारों से वंचित
दूरदराज़ क्षेत्र से होने के बावजूद भी उन्हें अनुसूचित जनजाति के दर्जे के साथ आने वाली प्रतिष्ठित सरकारी परिलब्धियां नहीं मिल पाई है। हम बात कर रहे है सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र की 144 पंचायतों में रहने वाले हाटी समुदाय की। इस समुदाय के प्रतिनिधि कई वर्षों से अपनी मांगों को लेकर संघर्षरत है। मगर हुक्मरानों को शायद हाटी समुदाय का मुद्दा सिर्फ चुनाव के दौरान ही याद आता है। हम ऐसा इसलिए कह रहे है क्यूंकि लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव यह मुद्दा हमेशा हर पार्टी का एजेंडा रहा है, मगर अब तक कोई भी सरकार इस मुद्दे का हल नहीं कर पाई है। कई दशकों से गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय के लोग जनजातीय दर्जे की मांग कर रहे है, कई सरकारें आई और कई गई मगर अब तक हल नहीं निकल पाया है। 2022 के चुनाव भी नजदीक है और चुनावी फिजा में अब नेताओं ने इस मुद्दे को फिर हवा दे दी है। परन्तु अब हाटी समुदाय के लोग किसी झांसे में आने के मूड में नहीं है। वे भी इस मुद्दे पर नेताओं से अपना स्पष्ट रुख चाह रहे हैं। केंद्र और प्रदेश, दोनों में ही भाजपा की सरकार है इसलिए उम्मीदें भी बहुत है और सरकार भी इस ओर सकारात्मक रुख अपनाए हुए है अब बस देखना ये है कि क्या जयराम सरकार के कार्यकाल में केंद्र सरकार इस मांग पर मोहर लगाती है या फिर हाटी समुदाय के लोगों को संघर्ष जारी रखना होगा ।
दरअसल लम्बे समय से गिरिपार का हाटी समुदाय उत्तराखंड के जौनसार बाबर क्षेत्र के जोंसारी समुदाय की तर्ज पर जनजातीय दर्जे की मांग कर रहा है। बता दें कि पूर्व में उत्तराखंड का जौनसार बाबर क्षेत्र सिरमौर रियासत का ही एक भाग था।1815 में सिरमौर रियासत से अलग होने वाला जौनसार बाबर को 1967 में केंद्र सरकार ने जनजाति का दर्जा दिया था। जौनसार बाबर और सिरमौर के गिरिपार की लोक संस्कृति, लोक परंपरा, रहन-सहन एक समान है। इनके गांवों के नामों और भाषा में भी समानता है। गिरिपार क्षेत्र में दुर्गम पहाड़ पर उत्तराखंड की सीमा से सटा एक छोटा सा गांव है शरली। बीच में टौंस नदी और सामने है उत्तराखंड के जोंसार बाबर क्षेत्र का सुमोग गांव। दोनों ही गांवों के लोगों की बोली, पहनावा, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, परंपराएं और जीवन स्तर भी एक जैसा है। मगर टौंस नदी के उस पार जौनसार समुदाय को एसटी का दर्जा है और इस पार हाटी समुदाय जनजातीय दर्जे के लिए करीब 49 साल से संघर्ष कर रहा है। सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र की 144 पंचायतों में करीब पौने तीन लाख आबादी हाटी समुदाय की है। परन्तु ये लोग उन अधिकारों से वंचित रह गए जो उन्हें जनजातीय क्षेत्र होने के कारण मिलने चाहिए थे।
इतिहास : गिरीपार व् जौनसार-बावर क्षेत्र एक प्रशासनिक इकाई थे
वर्ष 1833 तक हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर का गिरीपार क्षेत्र तथा उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र तत्कालीन सिरमौर रियासत की एक प्रशासनिक इकाई थे। इन क्षेत्रों में निवासी हाटी और जौनसारा नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दोनों क्षेत्रों के निवासी एक ही पूर्वज के वंशज है। इन दोनों इलाकों के निवासियों को भौगोलिक परिस्थितियां, परंपराएं, रीति-रिवाज, भाषा, संस्कृति, आहार-व्यवहार, रहन-सहन, खान-पान तथा मान्यताएं एक समान हैं तया एक दूसरे की अनुपूरक हैं। गिरीपार क्षेत्र के निवासियों के लिए इन दुर्गम क्षेत्रों में कहीं भी बाजार उपलब्ध नहीं था। लोग समूह के रूप में आवश्यक वस्तुओं की खरीद करने तथा अपने उत्पादों को बेचने के लिए समीपवर्ती बाजारों में जाते थे (जो मैदानों में स्थित थे)। लोग अपनी पीठ पर सामान लाद कर लाते व ले जाते थे। पूरे क्षेत्र के लोग कोई एक दिन निश्चित कर लेते थे और उस दिन सभी अपनी पूरी तैयारी करके, रास्ते का भोजन तथा विक्रय योग्य सामान को पीठ पर लाद कर चल पड़ते थे। उस वक्त घोड़े-खच्चरों पर सामान ढोने का प्रचलन था। इसमें से कुछ लोग ऐसे भी होते थे जिनके पास विक्रय हेतु कुछ भी नहीं होता था। वे अपने साथ पहले से संचित सोना ले जाते थे, जिसे बेचकर आवश्यक वस्तुएं क्रय करके ले आते थे। व्यापारी इन्हें किसी स्थान अथवा जाति से सम्बंधित करने की अपेक्षा इन्हें हाटी कहकर संबोधित करते थे, जिस कारण ये ‘हाटी’ के नाम से पहचाने जाने लगे। नाहन के समीप जहां ये लोग विश्राम करते थे, उस स्थान को हाटी का विश्राम, जहां पानी पीते थे, उसे हाटी की बावड़ी कहा जाता था, जिसे आज भी प्रतीक स्वरूप देखा जा सकता है। शिरगुल देव की दिल्ली हाट की यात्रा का उल्लेख संस्कृति में मिलता है।
क्या है हाटी समाज
गिरिपार क्षेत्र के लोग किसी समय अपनी फसलों को पीठ पर उठाकर एक साथ नजदीकी हाट में ले जाते थे और उन फसलों के बदले में वर्ष भर के लिए गुड़, सिरा, कपडे़, नमक ले आते थे। एक साथ हाट में सामान ले जाने वालों को बाहरी लोग उस दौरान हाटी कहते थे।
क्या है गिरिपार
हाटियों का गिरिपार क्षेत्र प्रदेश के अन्य भागों से अलग-थलग है। गिरि नदी इसे सिरमौर के अन्य भागों से नहीं शिमला और सोलन से भी अलग करती है। उत्तर में बर्फ से ढकी चूड़धार की चोटियां है और पूर्व में टौंस नदी इसे उत्तराखंड के जोंसार बाबर से विभाजित करती है। टोंस नदी के इस पार यानी सिरमौर क्षेत्र के अंतर्गत को गिरिपार कहा जाता है और उस पार यानी उत्तराखंड क्षेत्र को जौनसार बाबर कहा जाता है।
कोई भी प्रधानमंत्री जनजातीय दर्जा नहीं दिला पाया
कई सरकारे आई और गई, लेकिन हाटी समुदाय को कोई भी प्रधानमंत्री जनजातीय दर्जा नहीं दिला पाया। पहले मनमोहन सिंह और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सिरमौर जिले के गिरिपार को जनजातीय दर्जा दिलाने की फरियाद लगाई गई, लेकिन आज तक हाटी समुदाय अपने हक के लिए लड़ रहा है। सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद जनजातीय दर्जे का मामला आरजीआई के कार्यालय में अटका हुआ है। पांच दशकों से गिरिपार के लोग जनजातीय दर्जे की मांग कर रहे है लेकिन अब तक किसी भी सरकार के प्रयास नाकाफी रहे है।
1978 से मामला लंबित क्यों?
1978 में पहली बार गिरीपार क्षेत्र के लिए जनजातीय दर्जे की मांग के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को पत्र भेजा गया। 1979 में जब पहली रिपोर्ट आई तो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग जनजाति के लिए सिफारिश की गयी लेकिन उसके बाद भी मामला लंबित पड़ा रहा। इसके बाद विधानसभा में इसके तहत एक कमेटी गठित की गई जिसका नाम कन्हैया लाल कमेटी रखा गया। ट्राइबल कमीशन के सदस्य टीएस नेगी की कमेटी ने इलाके का दौरा किया और रिपोर्ट भी सौंपी। 1983 में केंद्रीय हाटी समिति बनाई गयी। वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी। राज्य सरकार ने प्रदेश विश्वविद्यालय के जनजातीय शोध एवं अध्ययन संस्थान को यह जिम्मा सौंपा। वर्ष 2011 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी। राज्य सरकार ने प्रदेश विश्वविद्यालय के जनजातीय शोध एवं अध्ययन संस्थान को यह जिम्मा सौंपा। वर्ष 2016 में इसकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी गई। जिसके बाद मामले की फाइल रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के पास लंबित थी। सितंबर 2018 में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने स्वयं हाटी मुद्दे को लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह से चर्चा की। छह दिसंबर 2018 को सांसद वीरेंद्र कश्यप के नेतृत्व में केंद्रीय हाटी समिति का एक प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री से मिला। आरजीआई को गृहमंत्री ने जल्द कार्यवाही के निर्देश दिए गए।
जनजातीय घोषित होने पर मिलेगा ये फायदा
-गिरिपार के युवाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलेगा, रोजगार के नए द्वार खुलेंगे।
-केंद्र सरकार से विकास कार्यों के लिए अतिरिक्त मदद मिलेगी।
-लुप्त होती जा रही हाटी लोक संस्कृति को नई पहचान मिलेगी।
-क्षेत्र के विद्यार्थियों को शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए आर्थिक मदद मिलेगी।
हाटी खुंबलियों का आयोजन शुरू
जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय दर्जा दिए जाने के मामले में केंद्रीय हाटी समिति ने गिरिपार क्षेत्र की सभी 144 पंचायतों में हाटी खुंबलियों (बैठकों) का आयोजन करने का निर्णय लिया है। गिरिपार क्षेत्र के साथ-साथ नाहन, सोलन, शिमला व चंडीगढ़ की इकाइयों में भी ऐसा आयोजन किया जाएगा, जिसका कार्यक्रम केंद्रीय हाटी समिति ने जारी करके सभी पदाधिकारियों से उचित प्रबंध करने का आग्रह किया है। गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र व हाटी समुदाय को जनजाति घोषित किए जाने का मामला पांच दशकों से लंबित पड़ा हुआ है। हाल ही में इस मामले में आरजीआई की आपत्तियों का प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव ने शोध करवाने के पश्चात बहुत तार्किक उत्तर प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा है, जिससे इस मामले के सिरे चढऩे की उम्मीद करीब पौने तीन लाख लोगों में जगी है। इसी क्रम में आगामी 25 दिसंबर को गिरिपार क्षेत्र की सभी 144 पंचायतों में पंचायत स्तर पर हाटी खुंबलियों के आयोजन का निर्णय लिया गया है। पंचायत हाटी समिति के पदाधिकारी पंचायत में हाटी खुंबली करने का प्रबंध करेंगे और उसमें पंचायत प्रधान व अन्य सदस्य, युवक मंडल व महिला मंडल के पदाधिकारियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाएगा। इन खुंबलियों में हाटी समुदाय को जनजाति व गिरिपार क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित किए जाने के प्रस्ताव पारित करके प्रधानमंत्री को भेजे जाएंगे, जबकि गिरिपार क्षेत्र की पंचायत समितियों व नाहन, सोलन व शिमला की हाटी समिति की इकाइयों की खुंबलियों में भी ऐसे ही प्रस्ताव पारित किए जाएंगे और एसडीएम व उपायुक्त के माध्यम से प्रधानमंत्री को भेजे जाएंगे। इसके अतिरिक्त हाटी समिति चंडीगढ़ की इकाई यह प्रस्ताव पारित करके भाजपा प्रदेश प्रभारी के माध्यम से प्रधानमंत्री को भिजवाएंगे।
सांसद सुरेश कश्यप ने लोकसभा में उठाया मुद्दा
शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद सुरेश कश्यप ने हाल ही में दिल्ली में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा से मुलाकात की। सांसद ने सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय की लंबे समय से चली आ रही जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की मांग उठाई। केंद्रीय मंत्री से आग्रह किया कि जल्द हाटी समुदाय की मांग को पूरा किया जाए। जिला सिरमौर का गिरिपार क्षेत्र उत्तराखंड के जौनसार बाबर के साथ लगता है। इसमें जिले के चार ब्लॉकों की लगभग 144 पंचायतें आती हैं। इनकी आबादी करीब 2 लाख 75 हजार है, जो हाटी समुदाय है। सांसद ने केंद्रीय मंत्री को बताया कि वर्ष 1967 में जौनसार बाबर के लोगों को जनजातीय घोषित कर दिया गया था, लेकिन जिले के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को अब तक जनजातीय क्षेत्र घोषित नहीं किया गया है।उत्तराखंड का जौनसार बाबर एवं जिले का गिरिपार क्षेत्र रियासतकाल में जिला सिरमौर रियासत का ही हिस्सा था। सांसद ने बताया कि इस मांग को लेकर जिले के प्रतिनिधि 20 दिसंबर, 2011 को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं 14 फरवरी 2017 को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिल चुके हैं। संबंधित मंत्रालय की ओर से मांगी गई सारी रिपोर्ट प्रदेश सरकार भेज चुकी है। गिरिपार क्षेत्र की हाटी समुदाय की एथनोग्राफी की आरजीआई को भी भेज दी गई है। सांसद सुरेश कश्यप ने बताया कि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने आश्वासन दिया है कि तुरंत मामले का विवरण मांगकर इस दिशा में आगामी कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।