एक साल पूरा पर मंत्रिमंडल अधूरा
एक साल पूरा पर मंत्रिमंडल अधूरा
**अब मंत्रिमंडल विस्तार इच्छा से ज़्यादा मजबूरी
आखिर अब स्पष्ट हो ही गया की मंत्रिमंडल विस्तार कब होगा। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल ही में ब्यान दिया है कि मंत्रिमंडल का विस्तार इसी साल होगा। जो इंतज़ार पिछले लगभग एक साल से जारी है वो कुछ दिन और सही। ये ब्यान 8 दिसंबर को ही आया था और आपको याद दिला दें कि वो 8 दिसंबर का ही दिन था जब प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। तब प्रदेश की जनता ने कांग्रेस की झोली में 40 विधानसभा सीटें डाली थी और अब उम्मीदें बढ़ गई है कि जल्द ही तीन नेताओं की झोली में मंत्री पद जाएगा। हालांकि अब ये भी स्पष्ट है कि हिमाचल सरकार विलम्भ करने की स्थिति में नहीं है। इस विलम्भ ने जो नाराज़गी पैदा की है वो कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकती है । प्रतिभा सिंह मुखर है और बार बार सरकार पर संगठन की नज़रअंदाज़गी के आरोप लगा रही है। कई अन्य पार्टी नेता भी सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से नाराज़गी ज़ाहिर कर चुके है। कांग्रेस हाल ही में चार राज्यों में चुनाव हारी है। देश में अब अपने दम पर कांग्रेस की महज़ 3 राज्यों में सरकार है। भाजपा लगातार ऑपरेशन लोटस के दावे करती है। ज़ाहिर है इन तमाम परिस्थितियों के मद्देनज़र कांग्रेस शेष तीन राज्यों में कोई भी कोताही बरतने की स्थिति में नहीं है। जो गलती कांग्रेस ने अन्य राज्यों में की वो यहाँ नहीं दोहराई जा सकती। सरकार पर स्पष्ट दबाव है और अब मंत्रिमंडल विस्तार इच्छा से ज़्यादा मजबूरी बन गया है ।
अपेक्षित है कि इस विस्तार से मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय, जातीय और पार्टी के अंदरूनी संतुलन को बैठाने का हर संभव प्रयास किया जाएगा। फिलवक्त मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को मिला कर कुल 9 मंत्री है। शिमला संसदीय क्षेत्र से पांच, काँगड़ा से एक, हमीरपुर से दो और मंडी से एक। सिर्फ एक मंत्री होने के चलते सरकार पर कांगड़ा की अनदेखी का आरोप लगता रहा है। क्षेत्रीय संतुलन के लिए काँगड़ा से कम से कम दो और मंत्रियों की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक़ एक मंत्री मंडी संसदीय क्षेत्र से भी हो सकता है। जातीय समीकरणों के लिहाज़ से एक और एससी विधायक को मंत्री बनाया जा सकता है। वहीँ पार्टी के अंदरूनी समीकरणों को साधना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि फिलवक्त पलड़ा एक तरफ ही भारी दिखता है।
अब बात करते है उन नामों की जिनकी एंट्री मंत्रिमडल में हो सकती है। पहला नाम है घुमारवीं से कांग्रेस विधायक राजेश धर्माणी का। धर्माणी के अलावा सुजानपुर से कांग्रेस विधायक राजेंद्र राणा का नाम भी चर्चा में है। हालांकि, मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के गृह जिला से होने के चलते उनके मंत्री बनने में अभी पेच फंसा हुआ है। ये दोनों ही नेता हमीरपुर संसदीय क्षत्र से है जहाँ से मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री स्वयं है। धर्माणी मुख्यमंत्री के करीबी माने जाते है वहीँ राजेंद्र राणा की हाईकमान से करीबियां हैं। मगर सारा मसला क्षेत्रीय संतुलन पर आकर अटक जाता है। वहीँ कयास ये भी है कि राणा को पार्टी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतार सकती है। हालांकि राणा खुद इसके लिए तैयार नहीं दीखते।
इन दोनों के अलावा काँगड़ा जिले से दो नाम चर्चा में है। एक है यादविंद्र गोमा और दुसरे है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुधीर शर्मा। दरअसल जिला कांगड़ा से अभी तक सुक्खू मंत्रिमंडल में सिर्फ एक मंत्री चंद्र कुमार हैं। प्रदेश के सबसे बड़े जिला से और मंत्री बनाने का पार्टी और सरकार पर कई तरफ से दवाब है। यादविंदर गोमा अनुसूचित जाति कोटे से मंत्री बनाए जा सकते हैं। बताया जा रहा है कि गोमा को मंत्री बनाकर पार्टी ने जातीय समीकरण साधने का फैसला लिया है। वहीँ सुधीर पूर्व मंत्री हैं, और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी। वो कांगड़ा से पार्टी का बड़ा चेहरा भी हैं। इनकी दावेदारी को अनेदखा नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक अन्य नाम की भी चर्चा है जो कांग्रेस के डार्क हॉर्स साबित हो सकते है। ये नाम है भवानी पठानिया। पार्टी का अंदरूनी संतुलन बैठाने की कोशिश में भवानी की लोटरी लग सकती है।
इस पूरी लिस्ट में एक नए नाम की एंट्री हुई है। ये नाम है सीपीएस सूंदर ठाकुर का। सूंदर ठाकुर मंडी लोकसभा क्षेत्र से आते है। लोकसभा चुनाव नज़दीक है और चारों लोकसभा क्षेत्रों में से सबसे कम मंडी लोकसभा क्षेत्र का रेप्रेज़ेंटेशन सरकार में दिखाई देता है। सुक्खू कैबिनेट में मंडी संसदीय क्षेत्र से केवल एक ही मंत्री है और वो है जगत सिंह नेगी। इसके अलावा सिर्फ एक ही सीपीएस है और वो है खुद सुन्दर सिंह ठाकुर। अगर अन्य संसदीय क्षेत्रों की बात करें तो शिमला को सबसे अधिक तवज्जो है यहाँ पांच मंत्री और तीन सीपीएस है, काँगड़ा से एक मंत्री, दो सीपीएस और विधानसभा अध्यक्ष है। वहीँ हमीरपुर से खुद मुख्यमंत्री और उप मुख्या मंत्री है। स्पष्ट है कि मंडी की झोली हल्की है। ऐसे में क्षेत्रीय समीकरण के लिहाज से यदि दूसरी एंट्री की संभावना दिखी तो सुंदर ठाकुर का दावा सबसे पहला और मजबूत होगा। लोकसभा की हर सीट कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है और इसलिए कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह को मंत्री बनाने की चर्चा हो रही है। अब इन तमाम सियासी गुणाभाग के बाद संतुलन बैठा पाना उतना ही मुश्किल है जितना उड़ती चिड़िया की आँख भेदना। अब ऐसे में पार्टी अन्य विकल्प भी तलाश सकती है।
ये विकल्प वर्तमान मंत्रिमंडल में फेरबदल हो सकता है। मुमकिन है कि मौजूदा मंत्रियों में से कुछ की विदाई हो। सूत्रों की माने तो दो मंत्रियों को लोकसभ चुनाव लड़वाया जा सकता है, वहीँ पीसीसी चीफ का दायित्व भी किसी मंत्री को दिया जा सकता है। हालांकि बताया ये जा रहा है कि कोई भी मंत्री लोकसभा चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं है, पर आलाकमान से फरमान आया तो सब कुछ मुमकिन है। इस लिस्ट में शिमला संसदीय क्षेत्र से स्वास्थ्य मंत्री कर्नल डॉ धनीराम शांडिल का नाम है। हालाँकि माना जाता है कि कर्नल साहब आलाकमान के वीटो से मंत्री बने है और उन्हें हटाना मुश्किल होगा। इस पर वे कैबिनेट में इकलौते एससी फेस भी है। हालांकि किसी एससी चेहरे की कैबिनेट में एंट्री करवाकर संतुलन बनाया जा सकता है। कहा जा रहा है कि कर्नल केंद्र की राजनीति में जाने के इच्छुक नहीं है, लेकिन फिर भी वे उम्मीदवार हो सकते है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। इस लिस्ट में अगला नाम चौधरी चंद्र कुमार का है। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस आखिरी बार 2004 में जीती थी और तब सांसद बने थे चौधरी चंद्र कुमार। अब चौधरी साहब प्रदेश के कृषि मंत्री है। चंद्र कुमार बड़ा ओबीसी चेहरा है और मुमकिन है कि पार्टी उन्हें कांगड़ा से चुनाव लड़वा दें।
वहीँ शिमला संसदीय क्षेत्र से वर्तमान में पांच मंत्री है और यहाँ से एक मंत्री को संगठन का दायित्व दिए जाने की अटकलें भी लगती रही है। पीसीसी चीफ प्रतिभा सिंह अब सीडब्ल्यूसी की सदस्य है और सम्भवतः वे ही मंडी से फिर मैदान में होगी। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले उनका कार्यभार भी कम किया जा सकता है। बहरहाल दो से तीन मंत्रियों के बदले जाने की सम्भावना को खारिज नहीं किया जा सकता है। लगातार बदल रहे सियासी समीकरणों में हिमाचल कांग्रेस में कुछ भी मुमकिन है। यानी सुक्खू कैबिनेट की तस्वीर अभी काफी बदल सकती है