बजट से झलकेगी सुक्खू सरकार की नीति और नियत
** बढ़ते कर्ज की बाधा को खुलकर स्वीकार कर रही सुक्खू सरकार
** कर्ज का कारण, आमदनी कम और खर्च ज्यादा
हिमाचल प्रदेश की सत्ता पर कांग्रेस के काबिज होने के बाद से ही प्रदेश पर बढ़ते कर्ज का मसला चर्चा में बना हुआ है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू खुलकर बढ़ते कर्ज पर बोल भी रहे है, इसे प्रदेश के विकास में रोड़ा भी मान रहे है और कड़े फैसले लेने की बात भी दोहरा रहे है। कर्ज के मसले पर सियासत भी खूब हो रही है। सीएम सुक्खू पूर्व की जयराम सरकार द्वारा विरासत में छोड़ा गया 75 हज़ार करोड़ का कर्ज भी बार-बार गिना रहे है और करीब 11 हज़ार करोड़ की देनदारियां भी। उधर, भाजपा भी कर्ज के बावजूद 6 सीपीएस की तैनाती सहित कई खर्चों पर सुक्खू सरकार को घेर रही है। बहरहाल राजनीति अपनी जगह है पर बढ़ता कर्ज हिमाचल प्रदेश के लिए बड़ी चिंता है, इसमें कोई दो राय नहीं है। अच्छी बात ये है कि सरकार खुलकर इसे स्वीकार भी कर रही है और आम आदमी को इससे लगातार अवगत भी करवा रही है।
सीएम सुक्खू के बयानों पर निगाह डाले तो सरकार की मंशा साफ है, सरकार कर्ज की बैसाखियों पर आगे नहीं बढ़ाना चाहती। पर ये होगा कैसे, ये फिलवक्त स्पष्ट नहीं है। कड़े फैसलों से सीएम का क्या तात्पर्य है, ये भी स्पष्ट नहीं है। बहरहाल, निगाहें आगामी बजट पर टिकी है और संभवतः सुक्खू सरकार का पहला बजट सरकार की नीति और नियत, दोनों को पूरी तरह स्पष्ट कर देगा। 14 मार्च से हिमाचल विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है और इस बजट में कर्ज घटाने को लेकर सरकार की दूरदर्शी सोच क्या है, इस पर सबकी निगाह रहेगी।
साधारण अर्थशास्त्र के लिहाज से बात करें तो कर्ज लेने की नौबत तब आती है जब आय से अधिक खर्च होता है। हिमाचल प्रदेश की स्थिति भी ऐसी ही है, आमदनी कम है और खर्चा ज्यादा। लिहाजा सरकार के पास एक ही चारा बचता है और वो है कर्ज लेना। बीते करीब दो दशक में हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है। 2007 तक प्रदेश पर करीब 20 हज़ार करोड़ का कर्जा था जो 2012 तक करीब 27500 करोड़ जा पंहुचा। 2017 के अंत तक प्रदेश पर करीब 46000 करोड़ का कर्ज था। वहीँ सीएम सुक्खू का कहना है कि जयराम सरकार ने प्रदेश पर करीब 75 हज़ार करोड़ का कर्ज छोड़ा है। निसंदेह ये बढ़ता कर्ज प्रदेश के लिए बड़ी चिंता है।
अब सुक्खू सरकार के पास दो उपाय दिखाई देते है, एक गैर जरूरी खर्च कम करें और दूसरा आय बढ़ाई जाएं। आगामी बजट में इन दोनों पर सरकार कितना गौर करती है, ये देखना रोचक होगा। माना जा रहा है कि सरकार आम आदमी पर बोझ बढ़ाने के साथ -साथ कई सरकारी खर्चों में कटौती की दिशा में आगे बढ़ सकती है। संभवतः नेताओं को मिलने वाली सुविधाओं पर भी कुछ कैंची चलाई जा सकती है ताकि आम आदमी पर यदि बोझ बढ़े तो मुखालफत की स्थिति न आएं। वहीँ माना जा रहा है कि पन बिजली योजनाओं से आय बढ़ाने के साथ-साथ पर्यटन पर सरकार का मुख्य फोकस होगा।
फिर कर्ज ले रही है सरकार :
सुक्खू सरकार प्रदेश में आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने की बातें तो कह रही है मगर कर्ज लेने का सिलसिला भी बदस्तूर बरकरार है। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व की नई कांग्रेस सरकार 2,000 करोड़ का कर्ज लेने जा रही है। इसके लिए दो अधिसूचनाएं भी जारी की गई है। 700 करोड़ रुपये का कर्ज 9 साल की अवधि के लिए लिया जाएगा और 1,300 करोड़ रुपये का दूसरा कर्ज 15 साल की अवधि के लिए लिया जाएगा। बता दें कि प्रदेश सरकार इससे पहले 1,500 करोड़ रुपये का ऋण ले चुकी है। कर्ज लेने का कारण हिमाचल प्रदेश में विकास कार्यों के लिए इसका इस्तेमाल करना बताया गया है।
शांता ने बताया, कैसे कर्ज मुक्त हुआ था हिमाचल
हिमाचल प्रदेश में जब भी कर्ज की बात होती है तो शांता सरकार का जिक्र जरूर होता है। बेशक बतौर मुख्यमंत्री शांता कुमार अपनी दोनों पारियां पूरी न कर सके हो लेकिन उनके कई निर्णय काबिल -ए -तारीफ़ रहे है। ख़ास बात ये है कि शांता कुमार ने दोनों दफे जब सीएम पद छोड़ा तो प्रदेश की आर्थिक स्थिति बेहतर थी। क्या था शांता कुमार का इकोनॉमी विज़न और सुक्खू सरकार को उनकी क्या नसीहत है, इसे लेकर फर्स्ट वर्डिक्ट ने शांता कुमार से बात की।
शांता कुमार बताते है कि आपातकाल के दौरान 19 महीने तक जेल में रहने के बाद जब 1977 में वे पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो प्रदेश पर लभग 50 करोड़ का ओवर ड्राफ्ट था, मगर जब तक शांता ने कुर्सी छोड़ी तो प्रदेश कर्ज मुक्त हो चुका था। शांता कहते है कि प्रदेश को कर्ज मुक्त करने की शुरुआत उन्होंने खुद से की। फिजूल खर्च कम किये, अपने दफ्तर में टेबल पर रखे चार फोन में से दो फोन कटवा दिए। प्रदेश भर के दफ्तरों में अधिकारियों के अनावश्यक टेलीफोन कटवाए। मुख्यमंत्री के साथ चलने वाला गाड़ियों का काफिला बंद कर करवा दिया। अफसरों को आदेश दिए गए कि मुख्यमंत्री की अगवानी करने के लिए दूसरे जिलों में डीसी और एसपी नहीं आएंगे। शनिवार और रविवार को अफसरों की ओर से सरकारी गाड़ियों का प्रयोग बंद करवाया गया। ये छोटे -छोटे खर्च कम करके बतौर मुख्यमंत्री पहले ही साल उन्होंने 40 करोड़ बचाए। ये समय ये बड़ी राशी थी। ये पैसा बचा कर पीने के पानी पर लगाया गया। हर घर नल पहुंचाए गए।
शांता कुमार कहते है कि 1992 में जब वे सीएम पद से हटे तब हिमाचल सरकार पर एक रुपये भी कर्ज नहीं था। हिमाचल में साधन बढ़ाने के लिए पन बिजली योजना को निजी भागीदारी में लाया गया। सभी योजनाओं में सरकार को 12 प्रतिशत रॉयल्टी दिलाई गई। कभी विरोधी उनकी इस सोच पर हंसते थे लेकिन अब हर साल इससे सरकार को हजारों करोड़ रुपये की आय होती है।
सुक्खू सरकार को नसीहत : शांता कुमार कहते है कि हवा में उड़ने से ज्यादा अगर सड़कों पर चला जाए तो प्रदेश पर कर्ज कम हो सकता है। शांता का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री सरकार को अपना घर समझ कर चलाएंगे तो बचत होगी ही।