महंगाई की मार : खौलती महंगाई के बीच अब बोलने लगा आम आदमी
"आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया" हिंदी का ये मुहावरा अब सिर्फ एक मुहावरा ही नहीं रह गया बल्कि आम आदमी के जीवन की वास्तविकता बन गया है। पहले कोरोना महामारी ने आम आदमी की कमर तोड़ी और अब ये दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करती महंगाई आम आदमी की जान लेने पर तुली है। महंगाई की मार रसोई के तड़के से लेकर गैराज में खड़ी गाड़ी तक पहुँच गई है। हर तरफ हाहाकार है। आम आदमी की आमदनी तो वहीं ठहरी है, लेकिन जीवन यापन के लिए आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान छूते जा रहे है। इस पर त्योहारी सीजन है सो जाहिर है आम आदमी की परेशानी में और इजाफा हुआ है। सरकार से पूछा जाए तो "इस पर हमारा नियंत्रण नहीं है" कह कर नेता अपना पल्ला झाड़ लेते है और विपक्ष इस महंगाई को आम आदमी की समस्या से ज़्यादा चुनावी मुद्दे की तरह देखता है। यानी चुनाव के दौरान तो पेट्रोल और भाजी के दाम पर बड़े बड़े भाषण दिए जाते है परन्तु बाद में इसके समाधान पर चर्चा तक नहीं की जाती। हिमाचल में एक सप्ताह के भीतर प्याज में 20 रुपये की बढ़ोतरी के साथ ही दाम 50 रुपये और टमाटर में करीब 30 रुपये की बढ़ोतरी के साथ दाम 65 रुपये प्रति किलो पहुंच गए है। तर्क दिया जा रहा है की परिवहन खर्च बढ़ने और मैदानी इलाकों में मानसून में जोरदार बरसात के चलते प्याज की फसल खराब होने से रेट बढ़े हैं। ऊना में प्याज 50 और टमाटर 80 रुपये, जिला कांगड़ा में प्याज 50, टमाटर 65 रुपये किलो हैं। दाल पर भी महंगाई का तड़का लग चुका है। आटे का पांच किलो का पैकेट 40 तो ब्रेड का पैकेट 10 रुपये महंगा हो गया है। रसोई गैस के दाम 907 रुपये प्रति सिलेंडर पहुंच गया। वहीं, पेट्रोल 102.53 रुपये और डीजल 94.58 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। इससे आम लोगों का बजट बिगड़ने लगा है।
प्रदेश में निर्माण कार्य भी महंगा हो गया है। हाल ही में सीमेंट के दामों में 10 रूपए की बढ़ोतरी हुई और अब कुछ ही दिनों में 10 रूपए और बढ़ाए जा सकते है। सीमेंट कंपनियों रेट 10 रुपये और बढ़ाने के संकेत दिए हैं। शिमला शहर में सीमेंट की 50 किलो की बोरी 413 रुपये में मिल रही थी, जो अब 423 रुपये पहुँच गई है। इन बढ़ते दामों पर उद्योग विभाग के अधिकारीयों का कहना है कि सीमेंट के दाम प्रदेश सरकार निर्धारित नहीं करती करती है, क्योंकि सीमेंट पर कोई नियंत्रण नहीं है। सीमेंट कंट्रोल्ड आइटम में शामिल नहीं है। सीमेंट कंपनियां स्वयं सीमेंट के दाम तय करती हैं और फिर इसे खुले बाजार में बेचा जाता है। इसी तरह प्रदेश में पेट्रोल की कीमतों ने भी शतक पार कर लिया है। आलम यह है कि आधे हिमाचल में पेट्रोल के दाम 100 रुपये प्रति लीटर से ऊपर पहुंच गए हैं, जबकि बाकी हिस्से में 100 के करीब हैं। सूबे में पिछले दस महीने में पेट्रोल की कीमतों में 19 रुपये से ज्यादा का इजाफा हुआ है। जनवरी को शिमला में पेट्रोल की कीमत 81.77 रुपये, पावर पेट्रोल के दाम 85.34 रुपये थे। डीजल के दाम 73.65 रुपये थे।
इससे पहले माहौल बने सत्ता पक्ष को सोचना होगा
यूँ तो महंगाई लगातार बढ़ती आ रही है पर ध्यान देने योग्य बात ये है कि जो आम आदमी अब तक चुप दिख रहा था वो अब बोलने लगा है। इसमें कोई संशय नहीं कि केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा को बीते कुछ सालों में जनता का भरपूर समर्थन मिला है और आम आदमी ने महंगाई जैसे मुद्दों पर अन्य संवेदनशील मुद्दों को तरजीह दी है। पर अब इस बेलगाम महंगाई के बीच आम आदमी बोलने लगा है। इससे पहले कि आम आदमी की ये आवाज बुलंद हो और एक माहौल तैयार हो, सत्ता पक्ष को इस बाबत गंभीरता से सोचना होगा।
आंकड़ों में गिरावट, धरातल स्थिति वैसी ही
हालहीं में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार ख़ुदरा मंहगाई में पिछले पांच माह में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज़ की गई है। सरकार का कहना है कि सितंबर महीने में मंहगाई की दर घटकर 4.35 फ़ीसदी रह गई। एक महीने पहले यानी अगस्त के महीने में ये 5.3 फ़ीसदी पर थी। सरकार का ये भी दावा है कि सितंबर में खाने-पीने के सामानों के दाम भी अगस्त के 3.11 प्रतिशत के मुक़ाबले 0.68 प्रतिशत गिरे है। पर आम जनता को सरकार के ये आकड़े सिर्फ आकड़े ही नज़र आ रहे है, बाज़ारों में इनकी सत्यता नज़र नहीं आती।
बेहिसाब-बेलगाम मुनाफाखोरी भी है कारण
बेकाबू महंगाई के पीछे एक तर्क ये दिया जा रहा है कि पिछले साल मानसून कमजोर रहा या पर्याप्त बारिश नहीं हुई, जिसके चलते खाद्य सामग्री के दाम बढ़े है। पर सवाल ये है कि क्या इसका असर सभी चीजों पर एकसाथ पड़ा है। कीमत इतनी ज्यादा होने के बावजूद बाजार में किसी भी आवश्यक वस्तु का अकाल-अभाव दिखाई नहीं पड़ता, पर जब आपूर्ति कम होती है तो बाजार में चीजें दिखाई नहीं पड़ती हैं और उनकी कालाबाजारी शुरू हो जाती है। मूल सवाल ये है कि क्या बेहिसाब-बेलगाम मुनाफाखोरी ही तो बेकाबू महंगाई का कारण नहीं है। मसलन जो सब्जी किसान बाजार में 10 रुपये किलोग्राम की दर से बेचता है उसकी कीमत आम आदमी तक पहुँचते-पहुँचते 40 -50 रुपये हो जाती है। सरकार को बाजार पर योजनाबद्ध तरीके से अंकुश लगाना चाहिए। उत्पादन लागत के आधार पर चीजों के विक्रय दाम तय होने चाहिए। सवाल ये भी है कि जब सरकार कृषि उपज के समर्थन मूल्य तय कर सकती है तो वह बाजार में बिकने वाली चीजों की अधिकतम कीमत क्यों नहीं तय कर सकती?